राज्य कृषि समाचार (State News)

जैविक और समन्वित खेती के प्रेरणास्रोत बने रामचरण

15 अक्टूबर 2025, छिंदवाड़ा: जैविक और समन्वित खेती के प्रेरणास्रोत बने रामचरण – जिले के विकासखंड बिछुआ के ग्राम खमारपानी के कृषक श्री रामचरण झाडु ने यह साबित कर दिखाया है कि सही मार्गदर्शन और मेहनत से खेती को न केवल लाभकारी बल्कि टिकाऊ भी बनाया जा सकता है। शासन की आत्मा परियोजना एवं कृषि विभागीय अधिकारियों के सहयोग से उन्होंने परंपरागत खेती से आगे बढ़कर फसल विविधिकरण और समन्वित कृषि को अपनाया। आज वे जैविक खेती और आधुनिक तकनीकों का उपयोग करते हुए अपने गांव में प्रेरणास्रोत बन चुके हैं।

जैविक खेती की ओर कदम –  श्री रामचरण झाडु पिछले कई वर्षों से गेहूं, चना, मक्का और सोयाबीन जैसी पारंपरिक फसलों की खेती कर रहे थे। रासायनिक खाद और दवाइयों पर अधिक निर्भरता के कारण उनकी लागत लगातार बढ़ रही थी और खेत की उर्वरक शक्ति भी कम हो रही थी। लगभग चार वर्ष पूर्व आत्मा परियोजना से जुड़ने के बाद उन्होंने कृषि विभागीय मार्गदर्शन में जैविक खेती की ओर कदम बढ़ाया और तीन एकड़ क्षेत्र में रासायनिक खेती छोड़ दी।  तकनीकी मार्गदर्शन एवं शासन से मिली सहायता से उन्होंने फसल चक्र, फसल विविधीकरण, समन्वित खेती और नरवाई प्रबंधन को अपनाया। पिछले वर्ष से वे सुपर सीडर जैसी आधुनिक तकनीकों का भी उपयोग कर रहे हैं। आज उनके पास 11 एकड़ भूमि के साथ-साथ C2 देसी नस्ल की गिर गाय भी है। पशुपालन से प्राप्त गोबर और गौमूत्र का उपयोग कर वे खेतों में जैविक खाद एवं दवाइयां तैयार करते हैं। फसल चक्र के तहत पारंपरिक फसलों के साथ स्वीट कॉर्न, टमाटर और धनिया की खेती भी कर रहे हैं। स्वीट कॉर्न की फसल से उन्हें 35–40 रुपये प्रति किलो की दर से लगभग 1 लाख 20 हजार रुपये का लाभ मिला। साथ ही अंतरवर्ती फसल से अतिरिक्त आमदनी भी हुई।

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 लाभ और उपलब्धियां – जैविक पद्धति अपनाने से उनकी लागत घटी और आमदनी में वृद्धि हुई। आज वे जीवामृत, नीमास्त्र जैसी जैविक दवाइयाँ स्वयं बनाकर खेतों में उपयोग कर रहे हैं। खेती और पशुपालन के सम्मिलित प्रयासों से उनकी वार्षिक आय 5 से 8 लाख रुपये तक पहुँच चुकी है। वर्ष 2017-18 में उन्हें विकासखंड स्तरीय सर्वोत्तम पशुपालन कृषक पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया।  जैविक खेती वह पद्धति है जिसमें रासायनिक खाद और दवाइयों का प्रयोग नहीं किया जाता, बल्कि गोबर, गौमूत्र, कंपोस्ट, हरी खाद और जैविक कीटनाशकों का उपयोग कर मिट्टी की उर्वरक शक्ति को बढ़ाया जाता है। इस पद्धति से उपजाई गई फसलें न केवल स्वास्थ्यवर्धक होती हैं बल्कि लंबे समय तक भूमि की उत्पादकता भी बनी रहती है। आत्मा परियोजना और कृषि विभागीय अधिकारियों के निरंतर मार्गदर्शन से उन्हें समय-समय पर तकनीकी जानकारी, प्रशिक्षण एवं संसाधनों की सुविधा उपलब्ध कराई गई। यही कारण है कि आज श्री रामचरण झाडु की पहचान जिले में एक सफल व नवाचारक कृषक के रूप में बन चुकी है।

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