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खाद्य तेल उत्पादन में पुनर्योजी कृषि को बढ़ावा – उद्योग, संस्थान और संगठन एकजुट

25 अगस्त 2025, भोपाल: खाद्य तेल उत्पादन में पुनर्योजी कृषि को बढ़ावा – उद्योग, संस्थान और संगठन एकजुट – भारत के खाद्य तेल क्षेत्र को आत्मनिर्भर और टिकाऊ बनाने के लिए उद्योग जगत, अनुसंधान संस्थान और सामाजिक संगठनों ने मिलकर नेशनल एलायंस फॉर रीजेनेरेटिव वेजिटेबल ऑयल सेक्टर (नारवोस) का गठन भोपाल में किया। इस मौके पर साल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (SEA) ने अपनी 800 सदस्य कंपनियों के साथ पुनर्योजी उत्पादों की बायबैक योजना शुरू करने की घोषणा की।

यह पहल सॉलिडरिडाड द्वारा ईयू–भारत साझेदारी के तहत चलाई जा रही है। इसका उद्देश्य टिकाऊ खेती, मृदा स्वास्थ्य सुधार और किसानों को जलवायु परिवर्तन से निपटने में सक्षम बनाना है।

प्रमुख वक्ता-

  • श्री अंग्शु मलिक, उपाध्यक्ष, SEA ने कहा –“भारत खाद्य तेल का सबसे बड़ा आयातक है और हर साल लगभग ₹1.5 लाख करोड़ विदेशी तेल पर खर्च करता है। वहीं किसान मिट्टी की खराब होती हालत और घटती पैदावार से जूझ रहे हैं। पुनर्योजी कृषि हमें आत्मनिर्भरता की दिशा में ले जा सकती है।”
  •  डॉ. मनोरंजन मोहंती, निदेशक, भारतीय मृदा विज्ञान संस्थान (IISS) ने कहा –“आज कृषि क्षेत्र की सबसे बड़ी चुनौती मृदा स्वास्थ्य है। इसे सुधारने और सुरक्षित रखने के लिए ऐसी पहल बेहद जरूरी है।”
  • डॉ. सुरेश मोटवानी, कार्यक्रम संयोजक, सॉलिडरिडाड के अनुसार “पुनर्योजी कृषि सिर्फ तकनीक नहीं, बल्कि खेती का दर्शन है। यह प्रकृति के साथ मिलकर काम करती है। ।”
  • डॉ. बी.वी. मेहता, कार्यकारी निदेशक, SEAने बताया ,“भारत लाखों हेक्टेयर में तिलहन उगाता है, फिर भी उत्पादकता विश्व स्तर से पीछे है। नवाचार और टिकाऊ मॉडल ही इस अंतर को पाट सकते हैं। ”
  • श्री विजया दाता, अध्यक्ष, SEA-रेप मस्टर्ड प्रमोशन काउंसिल ने कहा –“सरसों प्रमुख तिलहन फसल है, लेकिन हमारी औसत पैदावार वैश्विक मानकों से काफी कम है। पुनर्योजी कृषि से मिट्टी का स्वास्थ्य सुधरेगा, जल प्रबंधन बेहतर होगा और किसान कम लागत में ज्यादा उत्पादन ले सकेंगे।”

पृष्ठभूमि : भारत अपनी 60% खाद्य तेल आवश्यकता आयात से पूरी करता है। इस पर सालाना ₹1.5 लाख करोड़ का खर्च होता है। वहीं, अस्थिर कृषि पद्धतियों और मिट्टी की घटती उर्वरता से तिलहन उत्पादन की स्थिरता खतरे में है। वैज्ञानिक मानते हैं कि कम जुताई, आवरण फसलें, सहफसली खेती और जैविक खाद से उपज 20–40% तक बढ़ सकती है और लागत 50% तक घट सकती है।

पुनर्योजी कृषि क्या है?

पुनर्योजी कृषि खेती की ऐसी पद्धति है जो मिट्टी, पानी और पर्यावरण को नुकसान पहुँचाने के बजाय उन्हें बेहतर और उपजाऊ बनाती है।

 मुख्य तकनीकें –

  • कम जुताई – मिट्टी की नमी और जीवांश को बचाना*आवरण फसलें (Cover Crops) – खेत को खाली न छोड़ना
  • सहफसली खेती (Intercropping) – एक साथ दो–तीन फसलें उगाना
  • जैविक खाद/कम्पोस्ट – रसायनों की जगह प्राकृतिक पोषण
  • पानी और पोषक तत्वों का कुशल उपयोग

 लाभ –उपज में 20–40% तक वृद्धि*खेती की लागत में 50% तक कमी*मिट्टी का स्वास्थ्य और उपजाऊ शक्ति बढ़ती है*जलवायु परिवर्तन से बचाव*किसानों की आय में सुधार

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