किसानों के जख्मों पर पट्टी, न मरहम
(विशेष प्रतिनिधि)
म.प्र. सरकार का राष्ट्रीय फसल बीमा योजना खरीफ-2015 का 4414 करोड़ की दावा राशि का समारोहपूर्वक वितरण किसानों के लिये खोखला दावा सिद्ध हुआ। सूखे के घाव से आहत किसानों को पट्टी तो क्या मरहम भी नहीं मिल पाया। इस समारोह के प्रत्येक जिले को लगभग 10 लाख रु. आवंटित किये गये। लेकिन यह राशि भी अव्यवस्था की भेंट चढ़ गई।
प्रदेश के जिला मुख्यालयों पर हुए कार्यक्रम में दूरदराज से किसान लाये गये। परंतु अधिकतर स्थानों पर न तो ढंग से भोजन नसीब हुआ न ही पानी। करेला ऊपर से नीम चढ़ा की तर्ज पर नुकसान की भरपाई के लिये आये किसानों को मात्र कुछ सौ रु. के दावा राशि से संतोष करना पड़ा। हालांकि शासन का दावा है कि आजादी के बाद देश में किसी राज्य की सबसे बड़ी फसल बीमा दावा राशि है। दावेदार किसान असमंजस में है कि वह इस पर गर्व करें या रोयें। प्रदेश के 51 जिलों में संभवत: सबसे कम 154 किसानों को दावा राशि मिलने वाले जिले अशोकनगर में तो किसानों के आक्रोश के कारण कार्यक्रम को समय से पूर्व ही समाप्त करना पड़ा। जिले के किसानों ने शासन पर भेदभाव का आरोप लगाया। सर्वाधिक लाभान्वित जिलों में देवास, मंदसौैर, राजगढ़, सीहोर, उज्जैन व विदिशा जिले शामिल हैं। इन जिलों में क्रमश: 1 लाख 58 हजार 5 सौ, 1 लाख 48 हजार 160, 1 लाख 20 हजार 497, 1 लाख 44 हजार 936, 1 लाख 41 हजार 538 तथा 1 लाख 06 हजार 898 किसान लाभान्वित हुए।
रतलाम जिला जहां 41 हजार 829 किसानों को दावा राशि मिली, वहां के किसानों का कहना है कि हमने फसल बीमा की प्रीमियम 1000 रु. से 2000 रु. तक भरी लेकिन दावा राशि 231 रु. से 475 रु. तक ही मिली। हरदा जिले में तो कार्यक्रम के दौरान कलेक्टर ने स्वीकार किया कि एक किसान को लिपिकीय त्रुटि के कारण 5 लाख के स्थान पर 50 हजार रु. का ही दावा स्वीकृत हो पाया। शिवराज सरकार की कबीना मंत्री श्रीमती अर्चना चिटनीस ने स्वीकार किया कि फसल बीमा राशि वितरण में असमानता के चलते नीमच में एक लाख किसानों को 206 करोड़ रुपए बांटे गए वहीं बुरहानपुर के 1980 किसानों को केवल 5 करोड़ रुपए ही मिले। इसी तरह इन्दौर जिले के देपालपुर क्षेत्र के 12 गांव के 2657 किसानों को फसल बीमा का लाभ ही नहीं मिल पाया जबकि शासन ने इन गांव को नुकसान के दायरे में मानते हुए कर्ज को किश्तों में अदायगी और नए ऋण राशि के आदेश दिए थे। कलेक्टर ने भी इन ग्रामों को नुकसान वाले ग्रामों की सूची में शामिल करने के आदेश दिए थे। फसल बीमा से जुड़े सूत्र बताते हैं कि दावे की गणना बीमित फसल की पिछले पांच या तीन साल के औसत उपज, बीमित अवधि में फसल की औसत उपज तथा जिले के उस फसल के लिये ऋणमान के आधार पर की जाती है। यदि बीमित अवधि में फसल की औसत उपज तथा गत 5 या 3 वर्षों की औसत उपज का अंतर कम है तो गणना के अनुसार दावा राशि कम निकलती है। यहां यह उल्लेखनीय होगा कि अलग-अलग जिलों में एक ही फसल के लिये ऋणमान भी अलग-अलग होता है। जिले में ऋणमान का निर्धारण जिलास्तरीय समिति करती है।
हालांकि नई प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में इस तरह की कई विसंगतियों को दूर करने का प्रयास किया गया है। परंतु यह आने वाला समय ही बतायेगा कि फसल बीमा वास्तव में किसान के लिये मरहम-पट्टी का काम करेगा या फिर शासन का खुद की पीठ थपथपाने का प्रयोजन सिद्ध होगा। यह जरूर है कि इस कशमकश में बीमा कंपनियां किसानों की खून-पसीने की कमाई से बिना मेहनत किये प्रीमियम के रूप में करोड़ों रु. की कमाई करने में जरूर सफल हो गई और सरकार इस आयोजन पर हनुवंतिया के गुब्बारे की तरह फूल रही है।