मप्र में प्राकृतिक खेती को मिलेगा प्रोत्साहन, सीएम मोहन यादव ने की मंडियों में अलग व्यवस्था की घोषणा
27 जून 2025, जबलपुर: मप्र में प्राकृतिक खेती को मिलेगा प्रोत्साहन, सीएम मोहन यादव ने की मंडियों में अलग व्यवस्था की घोषणा – मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा कि मध्यप्रदेश में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए योजनाएं तैयार की जाएंगी, और इसके तहत मंडियों में प्राकृतिक और रासायनिक खेती से उत्पादित फसलों की खरीद के लिए अलग व्यवस्था लागू की जाएगी। सीएम जबलपुर के मानस भवन में आयोजित “प्राकृतिक खेती के नाम एक चौपाल” कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे।
इस दौरान, मुख्यमंत्री ने कहा कि रासायनिक खेती के दुष्परिणाम अब सामने आ रहे हैं, इसलिए प्राकृतिक खेती का विचार भविष्य का समाधान है। उन्होंने बताया कि वे खुद भी खेती कर चुके हैं और पहले रासायनिक खादों का प्रयोग नहीं करते थे।
गौशालाओं से मिलेगा सहयोग
मुख्यमंत्री ने कहा कि गौपालन को बढ़ावा देकर प्राकृतिक खेती को बल मिलेगा। राज्य में गौशालाएं बन रही हैं, जिनके उत्पादों से जीवामृत जैसे जैविक घटकों का उपयोग किया जा सकेगा। उन्होंने बताया कि मध्यप्रदेश में दुग्ध उत्पादन फिलहाल 9 प्रतिशत है, जिसे 25 प्रतिशत तक ले जाने का लक्ष्य है। साथ ही, कहा कि भैंस के दूध को अधिक लाभदायक बताकर देशी गाय के दूध को महत्वहीन दिखाने का षड्यंत्र रचा गया, जबकि देशी गाय का दूध स्वास्थ्यवर्धक है और इसके उपयोग को बढ़ावा दिया जाएगा।
प्राकृतिक खेती जीवन के लिए जरूरी: आचार्य देवव्रत
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने कहा कि उन्होंने खुद 5 एकड़ जमीन पर प्राकृतिक खेती शुरू की, जिससे पहले ही साल में बेहतर परिणाम मिले। उन्होंने बताया कि प्राकृतिक खेती में प्रकृति के इकोसिस्टम के अनुरूप उत्पादन होता है, जो धरती और मानव स्वास्थ्य दोनों के लिए फायदेमंद है।
मंत्री राकेश सिंह बोले – यह सिर्फ विचार नहीं, वैज्ञानिक प्रणाली है
लोक निर्माण मंत्री राकेश सिंह ने कहा कि प्राकृतिक खेती कोई कल्पना नहीं बल्कि प्राचीन भारतीय वैज्ञानिक पद्धति है। उन्होंने ऋषियों द्वारा लिखे वृक्षोर्वेद और बृहत संहिता का उदाहरण देकर वर्षा पूर्वानुमान के ज्ञान को भी रेखांकित किया।
कार्यक्रम में ये रहे उपस्थित
इस अवसर पर कृषि मंत्री श्री ऐदल सिंह कंषाना, महापौर श्री जगत बहादुर सिंह अन्नू, सांसद श्रीमती सुमित्रा बाल्मीकि, विधायकगण और बड़ी संख्या में किसान और नागरिक मौजूद थे।
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