मध्य प्रदेश से मानसून और फसल बीमा दोनों लापता
(राजेश दुबे )
भोपाल I भारत में कृषि से सम्बंधित एक बहुत ही प्रचलित कहावत है “का वर्षा जब कृषि सुखानी”I
मध्य प्रदेश में खरीफ सीजन 2021 के सन्दर्भ में यह कहावत अपने शाब्दिक अर्थ में और उद्धरण के रूप में दोनों ही तरह से साकार होती नजर आ रही है I जेठ में भरपूर बारिश की आस दिखाकर गायब हुए मानसून से सूखे जाते आषाढ़ के महीने के साथ किसान की उम्मीदें भी सूख रही है I खरीफ की बोनी कर चुका किसान भी परेशान है , उसकी नवजात फसल पानी के आभाव में बढ़ते तापमान के कारण सूख रही है वहीँ बोनी करने के इंतजार में बैठा किसान भी चिंतित है कि बोनी का समय निकलने के बाद वर्षा हुई तो किस काम की I वास्तव में कृषि और मौसम का बहुत गहरा सम्बन्ध है , लेकिन मौसम की चाल को नियंत्रित करने का कोई वैज्ञानिक हल अभी तक नहीं निकला है I इसीलिए जब खेती पर मौसम की मार पड़ती है तो किसान बेबस हो जाता है I इसी कहावत को उद्धरण के रूप में चरितार्थ करती है प्रदेश में प्रधान मंत्री फसल बीमा योजना की स्थिति I
केन्द्रीय सरकार की प्रधान मंत्री फसल बीमा योजना किसान को बोनी के पहले से लेकर कटाई के बाद तक विशेष रूप से मौसमी प्रतिकूलताओं से हुए आर्थिक नुकसान में कुछ हद तक राहत प्रदान करती है I केंद्र की इस योजना के क्रियान्वयन की जवाबदारी राज्यों को दी गई है I लेकिन मध्य प्रदेश में खरीफ की लगभग 50 प्रतिशत बोनी होने के बाद भी फसल बीमा योजना मानसून की तरह लापता है I जबकि अन्य प्रदेशों में योजना अपने अंतिम चरण में हैं और बीमा करा कर किसान निश्चिन्त है तथा राज्य सरकारें तथा बीमा कम्पनियां अपने लक्ष्य प्राप्ति की गणना कर रही हैं I मध्य प्रदेश की उच्च स्तरीय फसल बीमा कमेटी अभी तक योजना को अंतिम रूप ही नहीं दे पाई है I कमेटी अभी भी योजना के राजनैतिक और आर्थिक लाभ – हानि के गुणा भाग में ही उलझी हुई है I बोनी कर चुके किसानों की फसल बरबादी की कगार पर है, यदि फसल बीमा योजना प्रदेश में समय पर लागू हो गई होती तो योजना के प्रावधानों के अनुसार संभवतः उसे कुछ आर्थिक राहत मिल सकती थीI किसानों की हित चिन्तक प्रदेश सरकार ने अभी तो जिलों में फसल बीमा के लिए अधिसूचना ही जारी नहीं की है । 1 हज़ार पन्नों का राजपत्र सरकारी प्रेस में छपने गया है I राजपत्र जारी होने बाद बीमा कम्पनियों के चयन, क्षेत्रवार कंपनियों को आवंटन जैसी लम्बी प्रक्रिया बाकी है I
आंकड़ों के अनुसार प्रदेश के लगभग 1 करोड़ किसानों में से लगभग 35 लाख किसान फसल बीमा योजना में भागीदारी करते हैं I इनमें से लगभग 80 प्रतिशत किसान वह होते हैं जिन्होंने सहकारी अथवा अन्य बैंकों से ऋण लिया होता है I बीमा क्लेम मिलने की स्थिति में बैंक उनके ऋण की भरपाई क्लेम राशि से कर लेते हैं और किसान ऋण मुक्त होता है I सवाल यह उठता है कि राज्य सरकार केंद्र की मंशानुरूप योजना में किसानों की भागीदारी बढ़ाना चाहती है ? या फिर योजना में देरी से किसानों की भागीदारी कम करके अपने खजाने का बोझ कम करना चाहती है ?
बात फिर वही आती है कि “का वर्षा जब कृषि सुखानी”I