राज्य कृषि समाचार (State News)

नेवला: खेतों का साहसी मित्र

लेखक: डॉ दीपक हरि रानडे, डॉ मनोज कुमार कुरील एवम डॉ स्मिता अग्रवाल, कृषि महाविद्यालय, खंडवा – 450001

08 अक्टूबर 2025, भोपाल: नेवला: खेतों का साहसी मित्र –

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परिचय

नेवला, जिसे कुछ जगहों पर मुर्गल या नखला भी कहते हैं, भारत के कई हिस्सों में पाया जाता है। यह छोटा, मगर निडर जीव अपने खेतों और आसपास के पर्यावरण में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

कृषि महाविद्यालय, खंडवा का परिसर केवल पौधों की विविधता के लिए ही प्रसिद्ध नहीं है, बल्कि यहाँ जीव-जंतुओं की विविधता भी खूब है। इसी परिसर में नेवला भी देखा जाता है। खेतों में इसकी मौजूदगी न केवल फसलों की रक्षा करती है, बल्कि पारिस्थितिकी तंत्र में संतुलन बनाए रखने में भी मदद करती है।

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कृषि में उपयोगिता

नेवला खेतों के लिए एक छोटे, पर बहुत महत्वपूर्ण रक्षक की तरह है। यह चूहों, छोटे कीट और कभी-कभी साँपों का शिकार करता है। इससे फसलों को नुकसान नहीं होता और किसानों को प्राकृतिक सुरक्षा मिलती है। उसकी उपस्थिति खेतों में रासायनिक कीटनाशकों पर निर्भरता भी कम करती है, जिससे मिट्टी और पर्यावरण दोनों सुरक्षित रहते हैं।

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पारिस्थितिकी में योगदान

नेवला खेतों में जैविक संतुलन बनाए रखने में मदद करता है। यह खुद कुछ बड़े शिकारी जीवों के लिए भोजन बनता है और छोटे कीटों की संख्या को नियंत्रित करता है। इसके शिकार से पैदा होने वाला जैविक कचरा मिट्टी की उर्वरता को भी बढ़ाता है।

शत्रु और शिकार

नेवले के प्राकृतिक शत्रु बड़े पक्षी जैसे बाज और उल्लू, कभी-कभी लोमड़ी या कुत्ते होते हैं। इसके शिकार में छोटे कीट, रॉडेंट्स और कभी-कभी पक्षियों के अंडे शामिल होते हैं। यही कारण है कि नेवला खेतों में संतुलन बनाए रखने वाला एक कुशल रक्षक कहलाता है।

रोचक बातें

नेवला छोटे आकार का होते हुए भी बहुत तेज और चतुर है। यह विषैले साँपों से भी लड़ सकता है। बुंदेलखंड और मध्यप्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में इसे नखला कहा जाता है। कभी-कभी लोग इसे “छोटा सर्प भक्षक” भी कहते हैं। खेतों में इसकी मौजूदगी यह बताती है कि वहां जैविक संतुलन और प्राकृतिक रक्षा अच्छी तरह काम कर रही है। इनके संरक्षण के लिए और शोध की आवश्यकता है, ताकि इनके आवास और व्यवहार को समझा जा सके और संरक्षण प्रयासों को प्रभावी बनाया जा सके।ji

निष्कर्ष

नेवला खेतों का एक निडर और भरोसेमंद मित्र है। यह फसलों की रक्षा करता है, मिट्टी की उर्वरता बनाए रखता है और प्राकृतिक संतुलन में मदद करता है। कृषि महाविद्यालय, खंडवा जैसे स्थानों में इसकी उपस्थिति जैव विविधता की पुष्टि करती है और यह दिखाती है कि इसे संरक्षण की आवश्यकता है।

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