प्राकृतिक खेती में प्रबंधन जरूरी : डॉ. राजपूत
3 मार्च 2022, भोपाल । प्राकृतिक खेती में प्रबंधन जरूरी : डॉ. राजपूत – खेती में घातक कीटनाशकों के प्रयोग से अनाज की गुणवत्ता तो खराब होती है साथ ही जमीनी पानी भी प्रदूषित होता है। इससे मनुष्य जीवन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। यह सर्वविदित है फिर भी कृषक अनजान बनकर या अधिक उत्पादन की लालसा के लिए कीटनाशकों एवं उर्वरकों का अंधाधुंध प्रयोग कर रहा है। खेती में बढ़ते घातक केमिकल के उपयोग को कम करने के लिए भारत सरकार ने भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति, परम्परागत कृषि योजना, नमामि गंगे जैसे कार्यक्रम प्रारंभ किए हैं।
इस विषय पर भारत सरकार के क्षेत्रीय जैविक केंद्र जबलपुर के निदेशक डॉ. अजय सिंह राजपूत ने कृषक जगत से हुई मुलाकात में बताया कि प्राकृतिक खेती में प्रबंधन जरूरी, जैविक खेती में देसी गाय का गोबर, वर्मी कंपोस्ट, प्राम फास्फेट, रॉक फास्फेट, पीएसबी कल्चर,मठा/छाछ, जीवामृत, घन जीवामृत, बीजामृत आदि विधियों का उपयोग कर कृषक जैविक विधि से फसल उत्पादन कर सकता है। प्रदेश के आदिवासी अंचलों में रसायनिकी का उपयोग सीमित है। यहां से उत्पादित अनाजों की गुणवत्ता श्रेष्ठ रहती है इसको प्रोत्साहन मिलना जरूरी है। डॉ. राजपूत कहते हैं प्रदेश सरकार सभी मंडियों में जैविक अनाज विक्रय के लिए स्थान निर्धारित करे जिससे उत्पादक एवं उपभोक्ता में जागरुकता आएगी। जैविक केंद्र ने नमामि गंगे की तर्ज पर नमामि नर्मदे का प्रस्ताव राज्य सरकार को दिया है। जैविक खेती से कम उत्पादन जैसी भ्रांतियां भी दूर करना आवश्यक है।
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