छत्तीसगढ़ में मखाना खेती से किसानों की आमदनी हुई दोगुनी, महिलाएं बन रही आत्मनिर्भर
16 सितम्बर 2025, भोपाल: छत्तीसगढ़ में मखाना खेती से किसानों की आमदनी हुई दोगुनी, महिलाएं बन रही आत्मनिर्भर – मखाना की आधुनिक खेती छत्तीसगढ़ के किसानों और महिला स्व-सहायता समूहों के लिए आय बढ़ाने का नया रास्ता बन गई है। यह पहल न सिर्फ आर्थिक रूप से फायदेमंद है, बल्कि स्वास्थ्य के लिहाज से भी समाज को नई दिशा दे रही है। प्रशासन का मकसद है कि आने वाले वर्षों में मखाना खेती को बड़े स्तर पर बढ़ावा दिया जाए ताकि किसान धान की बजाय इसे बेहतर विकल्प के रूप में अपना सकें।
धमतरी में सुपरफूड मखाना, जिसे काला हीरा भी कहा जाता है, अपनी अलग पहचान बना रहा है। स्वास्थ्यवर्धक और पोषण से भरपूर मखाने की खेती ने जिले के किसानों और महिला स्व-सहायता समूहों के जीवन में नई उम्मीदें जगाई हैं। जिला प्रशासन ने इसे प्राथमिकता देते हुए धान की खेती का विकल्प बनाने का संकल्प लिया है ताकि किसानों की आय दोगुनी हो और ग्रामीण आजीविका मजबूत हो।
पायलट प्रोजेक्ट के तहत मखाना खेती
कुरूद विकासखंड के ग्राम राखी, दरगहन और सरसोंपुरी को पायलट प्रोजेक्ट के रूप में चुना गया है। इन गांवों के तालाबों में लगभग 20 हेक्टेयर क्षेत्र में मखाने की खेती हो रही है। राखी गांव में करीब 5 हेक्टेयर क्षेत्र की फसल अब कटाई के लिए तैयार हो चुकी है। कटाई-छंटाई का काम प्रशिक्षित मजदूरों की मदद से हो रहा है क्योंकि मखाना की खेती में खास दक्षता की जरूरत होती है।
मखाना: स्वास्थ्य और आय का वरदान
मखाना केवल आर्थिक रूप से ही नहीं, बल्कि स्वास्थ्य के लिहाज से भी अमूल्य है। इसमें विटामिन, कैल्शियम, मैग्नीशियम, आयरन, जिंक और फाइबर भरपूर मात्रा में होते हैं। यह डायबिटीज और हृदय रोग के मरीजों के लिए फायदेमंद है। हड्डियों और जोड़ों के दर्द में राहत देता है, रात को लेने से अच्छी नींद और तनाव कम करता है। प्रोटीन और फास्फोरस से भरपूर होने के कारण यह शरीर को ऊर्जा और मजबूती भी देता है।
महिलाओं की बढ़ती भागीदारी
इस नई पहल से गांवों में उत्साह का माहौल बन गया है। खासकर महिला स्व-सहायता समूहों की भागीदारी बहुत अच्छी रही है। ग्राम देमार की शैलपुत्री महिला समूह और नई किरण महिला समूह ने मखाना की खेती और प्रसंस्करण का प्रशिक्षण लेकर इसे आजीविका का जरिया बनाना शुरू कर दिया है। महिलाओं की यह भागीदारी न केवल उन्हें आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बना रही है, बल्कि पूरे परिवार की जीवनशैली में सुधार भी ला रही है।
तकनीकी सहयोग और लाभ
कृषि विस्तार अधिकारी और इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर के विशेषज्ञ लगातार किसानों के साथ जुड़े हुए हैं और तकनीकी मार्गदर्शन देते हैं। तालाबों में केवल 2-3 फीट पानी में यह फसल आसानी से तैयार हो जाती है और लगभग छह महीने में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। मखाना खेती से लाभ भी ज्यादा होता है। जहां धान की खेती में औसतन 32,698 रुपये का शुद्ध लाभ होता है, वहीं मखाने की खेती से किसानों को करीब 64,000 रुपये तक की आय हो रही है।
इस वजह से जिला प्रशासन ने अगले रबी सीजन में 200 एकड़ तालाबों में मखाना खेती के विस्तार का लक्ष्य रखा है।
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