मध्यप्रदेश: सुजल-शक्ति अभियान से ग्रामीण जल संकट का समाधान, सामुदायिक सहभागिता की नई मिसाल
08 अक्टूबर 2024, भोपाल: मध्यप्रदेश: सुजल-शक्ति अभियान से ग्रामीण जल संकट का समाधान, सामुदायिक सहभागिता की नई मिसाल – मध्यप्रदेश में जल-जीवन मिशन के तहत आयोजित ‘सुजल-शक्ति अभियान’ ने ग्रामीण इलाकों में जल संरक्षण और सामुदायिक सहभागिता को नया आयाम दिया है। “जल हमारा-जीवन धारा” थीम पर आधारित इस पांच दिवसीय अभियान में सतत और सुरक्षित पेयजल उपलब्धता सुनिश्चित करने के साथ ही जल आपूर्ति प्रणालियों को मजबूत बनाने पर जोर दिया गया। ग्रामीणों ने इसमें बढ़-चढ़कर भाग लिया और जल संरक्षण के महत्व को समझा।
अभियान का सफल संचालन लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग, पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग समेत अन्य विभागों के समन्वय से किया गया। लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री श्रीमती संपतिया उइके और सचिव श्री पी. नरहरि की देखरेख में जल आपूर्ति योजनाओं की समीक्षा, जल गुणवत्ता परीक्षण और जागरूकता कार्यक्रम संचालित किए गए।
प्रमुख गतिविधियां और सामुदायिक सहभागिता
अभियान के दौरान पांच दिनों में विशेष कार्यक्रम आयोजित हुए, जिनमें ग्रामीणों ने सक्रिय भूमिका निभाई:
- अमृत-धारा दिवस: जल स्रोतों की सफाई और जलभराव की समस्याओं का समाधान।
- श्रम-धारा दिवस: श्रमदान के जरिए जल स्रोतों के आसपास सफाई और मरम्मत कार्य।
- शुद्ध-धारा दिवस: फील्ड टेस्ट किट (FTK) से जल गुणवत्ता की जांच और स्वच्छता सुनिश्चित करना।
- दस्तक-धारा दिवस: घर-घर जाकर जल संरक्षण और जलकर भुगतान पर जागरूकता अभियान।
- निरंतर-धारा दिवस: दीर्घकालिक जल आपूर्ति योजनाओं की समीक्षा और जल संरक्षण के लिए “जल-सैनिक नंबर 1” पुरस्कार वितरण।
दीर्घकालिक जल योजनाएं और सामुदायिक सहयोग
2 अक्टूबर को गांधी जयंती के अवसर पर “निरंतर-धारा दिवस” के साथ इस अभियान का समापन हुआ। भोपाल के ग्राम बिलखिरिया में “जल-सैनिक नंबर-1” पुरस्कार प्रदान किया गया। ग्रामीणों ने इस अवसर पर दीर्घकालिक जल संरक्षण की शपथ ली। जल आपूर्ति योजनाओं की समीक्षा और नई कार्य योजना तैयार की गई, जिससे भविष्य में जल संकट से निपटने के स्थायी समाधान सुनिश्चित किए जा सकें।
जल-जीवन मिशन में सुजल-शक्ति अभियान की भूमिका
सुजल-शक्ति अभियान ने ग्रामीण क्षेत्रों में जल संरक्षण और जागरूकता को बढ़ावा देकर जल-जीवन मिशन के लक्ष्यों की दिशा में ठोस कदम बढ़ाए हैं। इससे जल आपूर्ति प्रणालियों में सुधार हुआ और ग्रामीणों में जल संसाधनों के प्रति जिम्मेदारी का भाव पैदा हुआ है।
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