मध्य प्रदेश के कृषि मंत्री किसानों के सोयाबीन आंदोलन से अनभिज्ञ
07 सितम्बर 2024, इंदौर: मध्य प्रदेश के कृषि मंत्री किसानों के सोयाबीन आंदोलन से अनभिज्ञ – सोयाबीन के कम दाम को लेकर मध्यप्रदेश के किसान आक्रोशित हैं। इसे लेकर विभिन्न किसान संगठनों द्वारा प्रत्येक ग्राम पंचायत के सचिव/सरपंच को 1 से 7 सितंबर तक मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन दिए जा रहे हैं, जिसमें सोयाबीन का दाम न्यूनतम 6 हज़ार रुपए करने की मांग की गई है। अगले चरण में सांसदों एवं विधायकों को ज्ञापन दिए जाएंगे। ज्ञापनों को लेकर धार जिले के एक किसान द्वारा मध्यप्रदेश के कृषि मंत्री से की गई बातचीत का ऑडियो खूब वायरल हो रहा है , जिसमें कृषि मंत्री ने ज्ञापनों की जानकारी के प्रति अनभिज्ञता प्रकट की है।
आंदोलनरत किसान आश्वस्त थे कि उनके द्वारा दिए गए ज्ञापनों पर सरकार तुरंत विचार कर किसानों के हित में जल्द ही कोई उचित फैसला लेगी , लेकिन उनकी आशाओं पर तब पानी फिर गया जब धार जिले के एक किसान श्री सुनील पाटीदार ने राज्य के कृषि मंत्री श्री ऐदल सिंह कंषाना को सीधे फोन लगाकर पूछ लिया कि सोयाबीन के भावों को लेकर किसानों द्वारा गांव-गांव ,तहसील में जो ज्ञापन दिए जा रहे हैं। आपके पास कुछ जानकारी है या नहीं। इस पर कृषि मंत्री ने स्पष्ट कह दिया कि मेरे पास कोई जानकारी नहीं आई है। इस पर किसान ने फिर कहा कि हम तहसीलदार /कलेक्टर को ज्ञापन दे रहे हैं। यह आपके पास आ रही है या नहीं आ रही है। कृषि मंत्री ने पुनः कहा कि मेरे पास कोई जानकारी नहीं आई है। इस पर किसान ने कलेक्टरों के खिलाफ कार्रवाई करने को कहा। हम परेशान हो रहे हैं। श्री कंषाना ने पूछा आपने कौनसे कलेक्टर को दिया है, मुझे बताओ ,मैं बात कर लेता हूँ। किसान श्री पाटीदार ने कहा संबंधित कलेक्टर से पूछिए कि किसान ज्ञापन दे रहे हैं कि नहीं। वहां के एसडीएम से पूछिए। इस पर कृषि मंत्री ने कहा बात करता हूँ। कृषक जगत इस ऑडियो की पुष्टि नहीं करता है।
लेकिन यहाँ विचारणीय बात यह है कि सोयाबीन के दामों को लेकर किसान करीब एक पखवाड़े से सक्रिय हैं। किसानों की बैठकों का दौर चल रहा है। किसान एक सप्ताह से पंचायतों में एवं तहसीलदार / कलेक्टर को ज्ञापन दे रहे हैं। अखबारों ,टीवी और सोशल मीडिया पर यह मामला लगातार चल रहा है, लेकिन आश्चर्य की बात है कि प्रदेश के कृषि मंत्री को इसकी जानकारी ही नहीं है। क्या यह किसानों की समस्या से मुंह मोड़ने का प्रयास है
? अथवा सरकारी सूचना तंत्र की विफलता ? लगता है प्रशासन इसकी अनदेखी कर रहा है, जबकि यह आंदोलन पूरे राज्य में तेज़ी से फैल रहा है। कहीं ऐसा न हो कि किसान आंदोलन की यह आग जब दावानल बन जाएगी तब सरकार चेतेगी और कुछ निर्णय लेगी। लेकिन तब तक बहुत देर हो जाएगी।
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