खरीफ फसलों – सोयाबीन, उड़द, मूंगफली की उन्नत किस्में
01 जून 2024, भोपाल: खरीफ फसलों – सोयाबीन ,उड़द . मूंगफली की उन्नत किस्में – उड़द की पीला मौजेक प्रतिरोधक किस्में – इंदिरा उड़द प्रथम, मुकुंदरा, प्रताप उड़द 1, प्रताप उड़द 9, आई.पी.यू. 13-1, कोटा उड़द-2, कोटा उड़द-3, आदि
सोयाबीन की उन्नत किस्में – जे.एस. 20-116, जे.एस. 20-34, जे.एस. 20-94, जे.एस. 20-98, राज सोया 18, आदि, तिल की उन्नत किस्में – टी.के.जी. 306, टी.के.जी. 308, जी.टी. 4, जी.टी. 6,
मूँगफली की उन्नत किस्में – जी.जे.जी.-32, टी.सी.जी.एस. 1694, लेपाक्षी, जे.एल. 501, जे.जी.एन. 3, धान की उन्नत किस्में – जे.आर. 201, जे.आर. 81, जे.आर. 345, पूसा सुगंध 4, पूसा सुगंध 3, एम.टी.यू. 1010
अरहर की उन्नत किस्में – पूसा अरहर 16, पूसा 33, टी.जे.टी. 501, राजीव लोचन आदि
बीजोपचार
फसल को फफूँद जनित बीमारियों से बचाने के लिए जैविक फफूँदनाशक दवा ट्राईकोडर्मा विरिडी 10 मि.ली. या रासायनिक दवा विटावैक्स पॉवर 2 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से बीजोपचार कर बुवाई करना चाहिए। खरीफ फसलों के अधिक उत्पादन के लिए फसलों की बुवाई कतारों में करना चाहिए और फसलों में मिट्टी परीक्षण उपरान्त अनुसंशित मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए।
उर्वरक
दलहनी और तिलहनी फसलों में फास्फोरस की पूर्ति के लिए डी.ए.पी. की जगह सिंगल सुपर फास्फेट का प्रयोग करना चाहिए जिससे फसलों को फास्फोरस के साथ सल्फर और कैल्शियम भी प्राप्त हो जाता है। फसलों में कीट-व्याधियों से बचाव के लिए म्यूरेट ऑफ पोटाश का 15-20 कि.ग्रा. प्रति एकड़ का प्रयोग करना चाहिए।
फसलों की अदल–बदल
किसान भाईयों को एक बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि प्रति वर्ष प्रत्येक खेत में फसलें अदल-बदल कर बोना चाहिए, जिससे फसलों की पैदावार भी अच्छी होगी और कीट-व्याधियों की समस्या भी नहीं होगी।
फसलों की देख रेख
खरीफ की फसलों में नींदा की मुख्य समस्या होती है। यदि फसलों की समय पर निंदाई-गुड़ाई नहीं की गयी तो उत्पादन काफी कम हो जाता है इसलिए खरीफ फसलों में दो बार निंदाई-गुड़ाई करना चाहिए। एक बीज बुवाई के 15-25 दिन में दूसरी बार 35-40 दिन में करना अति आवश्यक है। नींदा जितने दिन फसल के साथ रहेगा उतना ही फसल का भोजन खाकर फसल को कमजोर ओर उत्पादन को प्रभावित करेगा। खरीफ की फसलों में अधिकांशतः किसान किसी भी प्रकार के उर्वरक नहीं डालते हैं या फिर नगण्य मात्रा में डालते हैं। छिडकाव विधि से बुवाई करने से बीज अधिक मात्रा में डालते हैं और नींदा नियंत्रण भी समय पर नहीं करते, जिससे फसलों की उपज से होने वाली आय कम हो जाती है और लागत बढ़ जाती है।