राज्य कृषि समाचार (State News)

मक्का और गन्ना की ओर बढ़ा रुझान, सोयाबीन उत्पादन में भारी गिरावट की आशंका

28 मई 2025, भोपाल: मक्का और गन्ना की ओर बढ़ा रुझान, सोयाबीन उत्पादन में भारी गिरावट की आशंका – देश के कई हिस्सों में इस खरीफ सीज़न में सोयाबीन की खेती में गिरावट देखने को मिल सकती है. मुनाफे के लिहाज से बेहतर साबित हो रही मक्का और गन्ना फसलों की ओर किसानों का झुकाव बढ़ रहा है. इससे न सिर्फ घरेलू सोयाबीन उत्पादन में कमी आ सकती है, बल्कि भारत की खाद्य तेलों के आयात पर निर्भरता भी और बढ़ने की आशंका है.

किसानों का रुझान बदला, मक्का और गन्ना बने पसंदीदा विकल्प

मध्यप्रदेश के देवास ज़िले के किसान सुभाष परमार ने बताया, “पिछले तीन सालों से सोयाबीन से कोई खास मुनाफा नहीं हुआ. इस बार मक्का की ओर रुख किया है, क्योंकि इससे बेहतर आमदनी हो रही है.” महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे राज्यों में भी कई किसान अब गन्ने की खेती की योजना बना रहे हैं.

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सरकारी MSP के नीचे चल रही मंडी कीमतें

सोयाबीन के लिए सरकार ने इस साल 100 किलोग्राम पर 4,892 रुपये का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) तय किया है, लेकिन अक्टूबर 2024 से अब तक बाजार में कीमतें 10 से 20 फीसदी कम ही बनी हुई हैं. इससे किसानों का उत्साह घटा है.
सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (SOPA) के अनुसार पिछले कुछ महीनों में सोयाबीन की कीमतों में लगातार दबाव देखा गया है, यही कारण है कि किसान दूसरी फसलों की ओर जा रहे हैं.

मानसून सामान्य रहने की उम्मीद, लेकिन खेती की दिशा बदली

मौसम विभाग ने इस साल सामान्य से बेहतर मानसून का पूर्वानुमान दिया है. इसके बावजूद, किसान कम मुनाफे और बाज़ार की अनिश्चितता को देखते हुए कम जोखिम वाली और अधिक लाभदायक फसलों की ओर बढ़ रहे हैं. महाराष्ट्र जैसे राज्य, जो गन्ने के प्रमुख उत्पादक हैं, वहां अच्छी बारिश की उम्मीद के चलते किसान गन्ने जैसी जल-आधारित फसल की ओर बढ़ रहे हैं.

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घट सकता है सोयाबीन उत्पादन, बढ़ेगा खाद्य तेल आयात

सोयाबीन भारत की प्रमुख खरीफ तिलहन फसल है. उत्पादन में गिरावट होने पर देश को पाम ऑयल, सोयाऑयल और सूरजमुखी तेल का आयात बढ़ाना पड़ेगा.
भारत पाम ऑयल मुख्य रूप से इंडोनेशिया और मलेशिया से, जबकि सोयाऑयल और सूरजमुखी तेल अर्जेंटीना, ब्राज़ील, रूस और यूक्रेन से आयात करता है.

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कृषि क्षेत्र में हो रहा यह बदलाव सिर्फ फसल चक्र का मामला नहीं है, बल्कि बाज़ार की मांग, लागत और लाभ के समीकरण से जुड़ा है. यदि यह रुझान जारी रहा तो भारत को खाद्य तेलों के क्षेत्र में अपनी आत्मनिर्भरता बनाए रखना चुनौतीपूर्ण हो सकता है. किसानों के निर्णयों के साथ-साथ वैश्विक बाज़ार भी अब इस बदलाव की दिशा तय करेंगे.

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