पितृ पक्ष का महत्व
25 सितम्बर 2024, भोपाल: पितृ पक्ष का महत्व – हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार आश्विन माह के कृष्ण पक्ष से अमावस्या तक अपने पितरों के श्राद्ध की परंपरा है। यानी कि 12 महीनों के मध्य में छठे माह भाद्र पक्ष की पूर्णिमा से (यानी आखिरी दिन से) 7वें माह अश्विन के प्रथम पांच दिनों में यह पितृ पक्ष का महापर्व मनाया जाता है। सूर्य भी अपनी प्रथम राशि मेष से भ्रमण करता हुआ जब छठी राशि कन्या में एक माह के लिए भ्रमण करता है तब ही यह सोलह दिन का पितृ पक्ष मनाया जाता है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस अवधि में हमारे पूर्वज मोक्ष प्राप्ति की कामना लिए अपने परिजनों के निकट अनेक रूपों में आते हैं। इस पर्व में अपने पितरों के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता व उनकी आत्मा की शांति देने के लिए श्राद्ध किया जाता है और उनसे जीवन में खुशहाली के लिए आशीर्वाद की कामना की जाती है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार जिस तिथि में माता-पिता, दादा-दादी आदि परिजनों का निधन होता है। इन 16 दिनों में उसी तिथि पर उनका श्राद्ध पुत्र या पौत्र द्वाराकरना उत्तम रहता है।
ज्योतिष में नवग्रहों में सूर्य को पिता व चंद्रमा को मां का कारक माना गया है। जिस तरह सूर्य ग्रहण व चंद्र ग्रहण लगने पर कोई भी शुभ कार्य का शुभारंभ मना होता है, वैसे ही पितृ पक्ष में भी माता-पिता, दादा-दादी के श्राद्ध के पक्ष के कारण शुभ कार्य शुरू करने की मनाही रहती है, जैसे-विवाह, मकान या वाहन की खरीदारी इत्यादि।
कैसे करें श्राद्ध पितृ पक्ष में तर्पण और श्राद्ध सामान्यत: दोपहर 12 बजे के लगभग करना ठीक माना जाता है। इसे किसी सरोवर, नदी या फिर अपने घर पर भी किया जा सकता है। परंपरा अनुसार, अपने पितरों के आवाहन के लिए भात, काले तिल व घिक का मिश्रण करके पिंड दान व तर्पण किया जाता है। इसके पश्चात विष्णु भगवान व यमराज की पूजा-अर्चना के साथ-साथ अपने पितरों की पूजा भी की जाती है।
पित पृक्ष में पिंड दान अवश्य करना चाहिए ताकि देवों व पितरों का आशीर्वाद मिल सके। अपने पितरों के पसंदीदा भोजन बनाना अच्छा माना जाता है। सामान्यत: पितृ पक्ष में अपने पूर्वजों के लिए कद्दू की सब्जी, दाल-भात, पूरी व खीर बनाना शुभ माना जाता है। पूजा के बाद पूरी व खीर सहित अन्य सब्जियां एक थाली में सजाकर गाय, कुत्ता, कौवा और चींटियों को देना अति आवश्यक माना जाता है। कहा जाता है कि कौवे व अन्य पक्षियों द्वारा भोजन ग्रहण करने पर ही पितरों को सही मायने में भोजन प्राप्त होता है, क्योंकि पक्षियों को पितरों का दूत व विशेष रूप से कौवे को उनका प्रतिनिधि माना जाता है।
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