बीज की अच्छी उपज लेने के लिए सस्य सिद्धांतों का महत्व
- सतबीर सिंह जाखड़,
बीज विज्ञान एवं तकनीकी विभाग - सुनील कुमार,
कृषि विज्ञान केंद्र, सिरसा - अनिल कुमार मलिक,
विस्तार शिक्षा विभाग
चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्व विद्यालय, हिसार
14 जुलाई 2021, भोपाल । बीज की अच्छी उपज लेने के लिए सस्य सिद्धांतों का महत्व – अनुसंधानों से पता चला है कि अधिक उपज देने वाली किस्मों के बेहतर गुणवत्ता वाले बीज का उपयोग करके कृषि उत्पादन लगभग 15-20 प्रतिशत तक बढ़ाया जा सकता है। अधिक बीज उत्पादन लेने के लिए निम्नलिखित सस्य सिद्धांतों को भी अपनाया जाना जरूरी है:- उपयुक्त एग्रो-क्लाइमेटिक क्षेत्र का वरण, बीज प्लाट का चयन, बीज फसल का अलगाव, भूमि की तैयारी, किस्म का चयन, उत्तम बीज, बीज उपचार, रोपाई का समय, बीज मात्रा, बुआई का समय, बुआई में बीज की गहराई, अनावश्यक पौधों से निराकरण; परिपूरक परागण; खरपतवार नियंत्रण, बीमारी एवं बीजों का नियंत्रण, पौष्टिकता, सिंचाई, समयानुसार बीज फसल की कटाई, बीजों को सुखाना एवं बीजों का रखरखाव अच्छी तरह करना।
बीज गुणवत्ता एवं शुद्धता का रखरखाव
किसी भी किस्म की उत्पादन क्षमता एवं अन्य गुण उस किस्म के जीनोटाइप के द्वारा नियंत्रित होते हैं। सभी व्ययों की सहायता से किसान की अच्छी या खराब फसल इस बात पर निर्भर करती है कि उसने कौन सी किस्म का चयन खेती के लिए किया है। इसलिए बीज की गुणवत्ता किसान के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। यदि अच्छी किस्मों का शुद्ध बीज है इसका मतलब है कि अच्छी फसल की कटाई करना परन्तु यदि अशुद्ध बीज है तो इसके कारण फसल से अनुमानित उत्पादन प्राप्त नहीं होगा एवं उत्पादन क्षमता कम हो जायेगी तथा बीमारी और कीड़ों की भी समस्या होगी। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि नई किस्मों का बीज किसानों के पास शुद्ध एवं स्वस्थ अवस्था में ही पहुंचना चाहिए एवं इसको निश्चित करने के लिए हमारे देश में राष्ट्रीय बीज विकास निगम, प्रादेशिक बीज विकास निगम एवं कृषि विश्वविद्यालय, बीज प्रमाणीकरण के रूप में संगठित बीज उत्पादन संस्थाएं कार्यरत है। ये संस्थायें मुख्य: रूप से बीज प्रमाणीकरण, उत्तम बीज का उत्पादन एवं वितरण के लिए जिम्मेदार होती है।
बीज वृद्धि के दौरान किस्मों की शुद्धता को बनाये रखने के लिए निम्नलिखित बीज उत्पादन तकनीक अपनानी अति अनिवार्य है:
खेत का चुनाव: किसी भी फसल का बीज तैयार करने के लिए ऐसे खेत का चयन करें जिसमें वही फसल पहले साल न ली हो, यदि ली भी हो तो वह उसी किस्म व उसी दर्जे का बीज बोई हुई हो। ऐसा करना इसलिए जरूरी है कि आपके द्वारा तैयार किए जाने वाले बीज में स्वैच्छिक पौधे के बीजों की मिलावट न हो।
बीज वाली फसल की अन्य किस्मों से अलगाव दूरी: बीज वाली फसल के खेतों के चारों ओर एक निश्चित अलगाव दूरी तक अन्य किस्मों के पौधे नहीं होने चाहिए। पर-परागण वाली फसलों में यह दूरी ज्यादा होती है जबकि स्वयं परागण वाली फसलों जैसे गेहूं, चना, ग्वार, मूंग, उड़द इत्यादि में यह दूरी कम होती है।
सस्य क्रियाएं: बीज वाली फसल उगाने के लिए बीज की मात्रा साधारण फसल की बीज मात्रा से कुछ कम रख सकते हैं ताकि पौधों की छंटनी करने में आसानी रहे व बीज भी सुडौल बने। अन्य कृषि/सस्य क्रियाएं विभिन्न फसलों के लिए निर्धारित सिफारिशों के अनुसार ही करें।
अवांछनीय पौधों को निकालना (रोगिंग): बीज की शुद्धता को बनाए रखने के लिए अवांछनीय पौधों का बीज खेत से निकालना बहुत जरूरी है। दूसरी किस्मों व रोगों से ग्रस्त पौधों को फसल के बढ़वार के समय, फूल आने पर तथा पकने पर अवश्य निकालें। पर-परागण वाली फसलों में बढ़वार के समय तथा फूल आने से पहले की छंटनी महत्वपूर्ण होती है।
अवांछनीय पौधों को निकालना
बीज प्रमाणीकरण: बीजोत्पादन की विभिन्न अवस्थाओं पर बीज गुणवत्ता को प्रभावित करने वाले सभी कारकों पर प्रभावी ढंग से नियंत्रण करने की प्रक्रिया को ही बीज प्रमाणीकरण कहते हैं। बीज प्रमाणीकरण का मुख्य उद्देश्य आनुवंशिक रूप से शुद्ध व अन्य प्रकार से अच्छे बीज किसानों को सुलभ करवाना है।
बीज के पंजीकरण की प्रक्रिया: बीज उत्पादक प्रजनक एवं आधार बीज किसी भी बीज उत्पादक संस्थाओं से खरीदकर उस संस्था के माध्यम से या सीधे बीज प्रमाणीकरण संस्था में पंजीकरण के लिए आवेदन कर सकता है।
- इस आवेदन पत्र के साथ फसल व किस्म की जानकारी, बोये गये बीज की श्रेणी, टैग का क्रमांक, उत्पादन संस्था का चालान/बिल क्रमांक की पूरी जानकारी दें।
- फसल बिजाई के 20 दिन के अन्दर निर्धारित निरीक्षण व पंजीयन शुल्क का डिमाण्ड ड्राफ्ट, निदेशक, हरियाणा राज्य बीज प्रमाणीकरण संस्था के नाम बनवाकर संस्था के संभागीय कार्यालय में जमा करें।
क्षेत्र एवं इकाई: बीज प्रमाणीकरण के लिए प्रस्तावित क्षेत्र की अधिकतम सीमा निश्चित नहीं है।
बीज प्रमाणीकरण के अंग: बीज प्रमाणीकरण के पांच मुख्य अंग माने जाते हैं:
बीज प्रमाणीकरण के लिए आवेदन: बीज उत्पादक को अपना बीज प्रमाणित करवाने के लिए बीज प्रमाणीकरण संस्था को एक आवेदन देना होता है। इस आवेदन पत्र में बीज उत्पादक को अपना नाम व पता, प्रमाणीकरण के लिए आवेदित बीज की किस्म/प्रकार, क्षेत्रफल, बीज का प्रकार-आधारबीज/प्रमाणित बीज, बीज का स्रोत, (टैग संख्या), अलगाव दूरी एवं बोने की सही या प्रस्तावित तिथि बतानी होती है। बीज प्रमाणीकरण संस्था द्वारा इस आवेदन पत्र की जांच की जाती है कि
- किस्म/फसल अधिसूचित है या नहीं? बीज अनिधियम के तहत केवल अधिसूचित किस्मों के बीजों का ही प्रमाणीकरण किया जा सकता है।
- स्रोत बीज उपयुक्त प्रकार का है या नहीं?
- बीज फसल की खेत संबंधी अपेक्षाएं प्रमाणीकरण मानकों के अनुरूप हैं अथवा नहीं। यह सब जांच कर ही प्रमाणीकरण संस्था उक्त आवेदन को स्वीकार या अस्वीकार करती है।
बीज फसल का निरीक्षण: जब बीज उत्पादन का आवेदन पत्र स्वीकृत हो जाता है तो फिर प्रमाणीकरण संस्था द्वारा बीज फसल के खेत का निम्नलिखित अवसरों पर निरीक्षण किया जाता है:
बीज बोने के समय, फूल आने से पहले, फूल आने पर, फसल पकने पर व कटाई के समय।
अगर बीज फसल बीज उत्पादन के निर्धारित मानकों पर खरा उतरती है तो बीज फसल को पास किया जाता है अन्यथा फेल। फसल के अच्छी तरह पकने पर कटाई करके खेत में ही अच्छी तरह सुखा कर गहाई कर लें। कटाई व गहाई के समय बीज में दूसरी किस्म, खरपतवार व मिट्टी इत्यादि की मिलावट न होने पाए।
संसाधन के दौरान बीज का निरीक्षण: संसाधन का अर्थ है साफ करना, सुखाना, उपचारित करना, वर्गीकरण करना एवं अन्य कार्य जो कि बीज की गुणवत्ता को बढ़ाते हैं। ऐसे खेत के बीज जो कि प्रमाणित मानकों को खेत में फसल की अवस्था में निश्चित करते हों, कटाई व गहाई के बाद जितनी जल्दी हो सके उनको प्रोसेसिंग प्लांट में प्रोसेसिंग के लिए लाना चाहिए एवं निर्दिष्ट छेदवाली छलनी के द्वारा निर्दिष्ट फसल के अनुसार सफाई एवं वर्गीकरण (ग्रेडिंग) करें जिससे कि खराब बीज, घासफूस, मिट्टी, पत्थर के टुकड़े, बीज के टुकड़े एवं अन्य अवांछनीय वस्तुएं निकल जाये।
मशीन की सफाई
बीज परीक्षण: संसाधन के दौरान बीज निरीक्षण के बाद लिए गए नमूने का परीक्षण बीज परीक्षण प्रयोगशाला में किया जाता है। बीज परीक्षण प्रयोगशाला में बीज की आनुवंशिकी व भौतिक शुद्धता की जांच की जाती है। अंकुरण, परीक्षण एवं नमी की जांच की जाती है। बीज का अनुमोदन प्रयोगशाला परीक्षण रिपोर्ट के पश्चात ही किया जा सकता है।
बीज उपचार: यदि किसी किस्म का बीज बीजजनित रोग के रोगाणुओं के लिए सुग्राही है तो बीज प्रमाणीकरण संस्थाओं के लिए यह आवश्यक है कि प्रमाणीकरण से पहले बीज उपचारित हो। यदि बुआई से पहले बीज को उपचारित करना आवश्यक हो तो सिफारिश की गई मात्रा के अनुसार दवा को माप करके प्लास्टिक थैली में बीज की थैलियों के अन्दर रखना चाहिए। बीज की थैली में भी स्पष्ट रूप से उपचार से सम्बन्धित जानकारी होनी चाहिए।
यदि बीज को उपचारित किया गया हो तो निम्नलिखित जानकारी दें:
- उपचारित बीज द्य दवा का नाम
- यदि उपयोग में लाई गई दवा मनुष्यों या जानवरों के लिए नुकसानदायक है तो स्पष्ट रूप से लिख दें कि खाने या तेल के उपयोगी नहीं है।
- मरकरीयुक्त या जहरीले पदार्थ के लिए स्पष्ट रूप से लाल बड़े अक्षरों में ‘जहरÓ लेबल पर लिखा होना चाहिए।
उपचारित व अनउपचारित बीज
प्रमाणीकरण: बीज उत्पादकों द्वारा बीज प्रमाणीकरण के लिए दिए गए आवेदन पत्र की जांच से लेकर सभी तरह के निरीक्षणों व परीक्षणों में बीज के पास होने पर ही बीज को प्रमाणित किया जाता है तथा बीज प्रमाणीकरण संस्था द्वारा अपना प्रमाणपत्र (टैग) लगाया जाता है जो उक्त संस्था द्वारा प्रमाणित किए जाने का प्रतीक होता है। बीज प्रमाण पत्र (टैग) पर परीक्षण का विवरण लिखा होता है व इसकी वैधता नौ महीने की होती है।
बीज भण्डारण: प्राय: सभी बीजों को कुछ समय (कटाई से लेकर अगली बिजाई तक़) के लिए भण्डारण करना पड़ता है। भण्डारण के समय बीज की गुणवत्ता में कमी आनी शुरू हो जाती है। यद्यपि गुणवत्ता की इस कमी को पूर्णतया तो नहीं रोका जा सकता परन्तु निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखने से कम अवश्य किया जा सकता है:
- सदैव उत्तम गुणवत्ता वाले बीजों का ही भण्डार करें।
- बीज को शुष्क व ठण्डी जगह पर भण्डारित करें।
- भण्डारित बीज में नमी लगभग 9-10 प्रतिशत होनी चाहिए।
- भण्डार का तापमान लगभग 25 डिग्री सैल्सियस होना चाहिए।
यदि बचाव के उपायों के बाद भी कीड़ों का प्रकोप होता है तो भण्डार का प्रद्युमण अल्यूमिनियम फास्फाईड से (7 टिक्की प्रति हजार घन फुट स्थान) करें।