राज्य कृषि समाचार (State News)

किसानों की आय का आधा हिस्सा उर्वरक – कीटनाशकों में होता खर्च

बालाघाट में प्राकृतिक खेती के लिए  कृषकों को किया जागरूक

27 दिसम्बर 2022, बालाघाट: किसानों की आय का आधा हिस्सा उर्वरक – कीटनाशकों में होता खर्च – मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले कृषि विज्ञान केन्द्र, बड़गांव, द्वारा प्राकृतिक खेती जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम में कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों को इस संबंध में उपयोगी जानकारियां दी।कार्यक्रम में केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ. आर.एल. राऊत ने प्राकृतिक खेती पर कृषकों को जागरूक करते हुए कहा कि वर्षों से खेतो में उपयोग होने वाले रसायनों एवं कीटनाषकों से खेत एवं मानव स्वास्थ्य काफी नुकसान दिखाई दे रहा हैं। इसका मुख्य कारण लगातार हानिकारक कीटनाषकों एवं रासायनिक उर्वरक अंधाधुंध का उपयोग बढ़ता जा रहा हैं। जिससे भूमि के प्राकृतिक स्वरूप में भी बहुत बदलाव हो रहें हैं, जो हमारे लिए काफी नुकसानदायक हो रहे हैं। जिसके फलस्वरूप रासायनिक खेती से प्रकृति के साथ ही मनुष्य के स्वास्थ्य में काफी गिरावट आ रही हैं। किसानों की पैदावार का आधा हिस्सा उनके उर्वरक और कीटनाशकों में ही चला जाता हैं। जिससे खेती की लागत भी दिनोदिन बढ़ रही हैं। प्राकृतिक खेती में सिर्फ प्रकृति के द्वारा निर्मित उर्वरक और अन्य पेड़ पौधों के पत्ते खाद, गाय का गोबर, गौमूत्र खाद के रूप में प्रयोग में लाया जाता हैं। प्राकृतिक खेती में कीटनाषकों के रूप में नीम के पत्ते, गाय के गोबर, गौमूत्र पंचगव्य आदि द्वारा पौधों को पोषक तत्व दिए जाते हैं। प्राकृतिक खेती में प्रकृति में उपलब्ध जीवाणुओं, मित्र कीट और जैविक कीटनाषक द्वारा फसल को हानिकारक जीवाणुओं से बचाया जाता हैं।

चना एवं अलसी में खरपतवार नियंत्रण

केन्द्र के वैज्ञानिक डॉ. एस.आर. धुवारे ने चना एवं अलसी में खरपतवार प्रबंधन पर जानकारी देते हुए बताया की शुरूआत में बुवाई करने के 2-3 दिन के भीतर पेण्डामेथलिन 30 प्रतिशत दवा 1 लीटर या पेण्डामेथलिन 38.7 प्रतिशत दवा 700 मि.ली. प्रति एकड़ की दर से छिड़काव कर दिया जाता हैं तो फसल में खरपतवार की समस्या नहीं होती हैं तथा बाद में आवश्यकता  पड़ने पर एक बार हाथों से निंदाई किया जा सकती हैं। डॉ. धुवारे ने बताया की चने में इल्ली के नियंत्रण के लिए  अंग्रेजी के ’’T’’ आकार की 1.5 से 2 फीट की करीब 18-20 खूंटी चने के खेत में गाड़ देवें जिस पर पंक्षी आकर बैठेगें तथा जैसे ही उन्हें फसल में इल्ली दिखाई देवेगी, उन्हें चुन-चुन कर खाकर उनका नियंत्रण करती रहेगी। इसके अलावा भी यदि चने के खेत में इल्ली दिखाई देती हैं तब शुरूआत में प्रोफेनोफॉस 50 प्रतिशत दवा 350 मि.ली./एकड़ की दर से छिड़काव करें तथा फूल एवं फली बनने की अवस्था में इण्डोक्साकार्ब 14.5 प्रतिषत दवा 160 मि.ली./एकड़ या ईमामेक्टीन बेन्जोएट 5 प्रतिषत दवा 80 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।

Advertisement
Advertisement

केन्द्र के वैज्ञानिक डॉ. रमेश अमूले के द्वारा बताया गया कि प्राकृतिक खेती में किसानों की फसलों पर आने वाली लागत को काफी हद तक कम किया जा सकता हैं साथ ही प्राकृतिक खेती के माध्यम से पैदा होने वाले कृषि उत्पाद रोग और बीमारियों और रोगों से बचा सकते हैं। आज कैंसर जैसी प्राणघातक बीमारी इन कीटनाषकों और रासायनिक खेती की वजह से ही पैदा हो रही हैं। इसलिए समय की मांग हैं, कि किसान प्राकृतिक खेती अपनाएं। डॉ. अमूले ने कहा कि किसान अपनी जमीन के कुछ हिस्से से प्राकृतिक खेती की शुरूआत करें और इसके परिणाम देखकर आगे बढ़े। प्राकृतिक कृषि जहर मुक्त खेती की ओर एक सुखद भविष्य का प्रयास हैं।

महत्वपूर्ण खबर: कपास मंडी रेट (26 दिसम्बर 2022 के अनुसार)

Advertisement8
Advertisement

(नवीनतम कृषि समाचार और अपडेट के लिए आप अपने मनपसंद प्लेटफॉर्म पे कृषक जगत से जुड़े – गूगल न्यूज़,  टेलीग्राम )

Advertisement8
Advertisement
Advertisements
Advertisement5
Advertisement