राज्य कृषि समाचार (State News)

सरकारी नलकूप से भी कर सकेंगे खेती, नहीं आएगी पानी की कमी

08 अक्टूबर 2024, भोपाल: सरकारी नलकूप से भी कर सकेंगे खेती, नहीं आएगी पानी की कमी – प्रदेश के किसानों के लिए यह खुशखबरी ही होगी कि वे अपने निजी पानी के संसाधन के साथ ही सरकारी नलकूप से भी खेती के लिए पानी ले सकेंगे। दरअसल प्रदेश की सरकार ने प्रदेश के किसानों हेतु सरकारी नलकूप ठेके पर देने का फैसला लिया है। 

यह नलकूप दस साल के लिए ठेके पर दिए जाएंगे। ऐसा प्रदेश में पहली बार होने जा रहा है। लीज पर दिए जाने वाले नलकूप से सरकार को हर वर्ष 1500 से 3000 हजार रुपए की राशि मिलेगी। पायलट प्रोजेक्ट के रूप में यह काम नर्मदापुरम जिले में शुरू किया जा रहा है और इसके बाद पूरे प्रदेश में यह काम शुरू कर दिया जाएगा।  मप्र सरकार प्रदेश में करीब 40 लाख हेक्टेयर में किसानों को सिंचाई की सुविधा मुहैया कराती है। किसानों को खेती करने सिंचाई के लिए बांध- नहर, नदियों और बावडिय़ों तथा कुओं से पानी मिलता है। साथ ही पॉवर प्रोजेक्ट, उद्योगों को भी पानी मुहैया कराने के एवज में सरकार जलकर की राशि वसूलती है। अभी तक सरकारी नलकूप का उपयोग पीने के पानी के लिए किया जाता रहा है। लेकिन अब 7.5 एचपी पंप से लेकर 18 एचपी पंप लगाने के लिए नलकूप भी दिए जाएंगे। इसके लिए नलकूप का उपयोग करने वाले किसानों, व्यावसायिक संस्थानों को नलकूप लीज पर लेने के लिए प्रतिभूति के रूप में 20 साल के लिए 7500 रुपए से लेकर 20 हजार रुपए तक की राशि जमा करनी होगी, जो लीज अवधि समाप्त होने पर वापस की जाएगी। सरकारी नलकूप लीज पर लेने के लिए बोली लगानी होगी और इसका प्रपत्र 100 रुपए जमा करने पर उपलब्ध हो सकेगा। यह काम प्रदेश में जल संसाधन विभाग द्वारा प्रारंभ किया जा रहा है। यानि सरकार अब हर प्रकार के टैक्स वसूलने की तैयारी में जुट गई है। वैसे जल कर के रूप में सरकार को करीब 400 करोड़ से ज्यादा की आय हर साल होती है। दरअसल , सरकार ने यह निर्णय अपनी आय बढ़ाने के लिए है।  जमीन, भवन ही लीज पर देने का प्रावधान

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मप्र में उद्योगों को 99 साल के लिए भूमि लीज पर दिए जाने का प्रावधान है। पहले यह 30 साल के लिए लागू था। बाद में सरकार ने इसकी अवधि बढ़ा दी। फिर सरकारी भवन संपत्तियों को भी लीज पर दिए जाने लगा। अब सरकार शासकीय नलकूप को लीज पर देने जा रही है। कुएं एवं नलकूप मध्य प्रदेश में सिंचाई के अब भी प्रमुख स्रोत है और कुल सिंचित क्षेत्र के 66.42 प्रतिशत में इसका उपयोग किया जाता है।

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