राज्य कृषि समाचार (State News)

खेतों में नरवाई न जलाएं

नरवाई जलाने से नुकसान

7 अप्रैल 2022,  खेतों में नरवाई न जलाएं – गेहूं काटने के पश्चात जो तने के अवशेष बचे रहते हैं उन्हें नरवाई कहते हैं। यह देखा गया है कि किसान फसल काटने के पश्चात इस नरवाई में आग लगाकर उसे नष्ट करते हैं। नरवाई में आग लगाने से हानि होती हैं:-

  • नरवाई में लगभग नत्रजन 0.5, स्फुर 0.6 और पोटाश 0.8 प्रतिशत पाया जाता है, जो नरवाई में जलकर नष्ट हो जाता है।
  • गेहूं फसल के दाने से डेढ़ गुना भूसा होता है। अर्थात् यदि एक हेक्टेयर में 40 क्विंटल गेहूं उत्पादन होगा तो भूसे की मात्रा 60 क्विंटल होगी और इस भूसे से 30 किलो नत्रजन, 36 किलो स्फुर, 90 किलो पोटाश प्रति हेक्टेयर प्राप्त होगा। जो वर्तमान मूल्य के आधार पर लगभग रुपये 300 का होगा जो जलकर नष्ट हो जाता है।
  • भूमि में उपलब्ध जैव विविधता समाप्त हो जाती है।
  • भूमि में उपस्थित सूक्ष्म जीव जलकर नष्ट हो जाते हैं। सूक्ष्मजीवों के नष्ट होने के फलस्वरूप जैविक खाद निर्माण बंद हो जाता है।
  • भूमि की ऊपरी पर्त में ही पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्व उपलब्ध रहते हैं। आग लगाने के कारण ये पोषक तत्व जलकर नष्ट हो जाते हैं।
  • भूमि कठोर हो जाती है जिसके कारण भूमि की जल धारण क्षमता कम हो जाती है और फसलें जल्दी सूखती हैं
  • खेत की सीमा पर लगे पेड़- पौधे (फल वृक्ष आदि) जलकर नष्ट हो जाते हैं।
  • पर्यावरण प्रदूषित हो जाता है। तापमान में वृद्धि होती है और धरती गर्म होती है।
  • कार्बन से नाइट्रोजन तथा फास्फोरस का अनुपात कम हो जाता है।
  • केंचुए नष्ट हो जाते हैं इस कारण भूमि की उर्वराशक्ति कम हो जाती है। नरवाई जलाने से जन-धन की हानि होती है।
  • अत: उपरोक्त नुकसान से बचने के लिए किसान भाई नरवाई में आग न लगायें। नरवाई नष्ट करने हेतु रोटावेटर चलाकर नरवाई को बारीक कर मिट्टी में मिलायें जिससे जैविक खाद तैयार होता है।
नरवाई समाधान इन कृषि यंत्रों का उपयोग करें :

सुपर सीडर– यंत्र से फसल कटाई बाद नमी है तो बुवाई की जा सकती है।
हैप्पी सीडर- इस यंत्र से भी सीधे बोनी की जा सकती है। धान के बाद सीधे गेहूं लगाया जा सकता है।
जीरो टिलेज सीड कम फर्टिलाईजर ड्रिल से नरवाई की अवस्था में भी बुवाई हो सकती है।
रीपर कम बाइंडर से फसल अवशेष जड़ से समाप्त हो जाते हैं।
रोटावेटर – यह यंत्र मिट्टी को भुरभुरी बनाता है तथा गीली -सूखी दोनों प्रकार की भूमि पर इससे जुताई होती है। रोटावेटर चलाने के बाद बोनी की जा सकती है।
कम्बाईन हार्वेस्टर के साथ स्ट्रारीपर का उपयोग करके भूसा बनाया जा सकता है।

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नोट: इन कृषि यंत्रों पर अनुसूचित जाति/ जनजाति, लघु सीमांत तथा महिला कृषकों को लागत का 50 प्रतिशत तथा अन्य कृषकों को लागत का 40 प्रतिशत अनुदान है।

वेस्ट (कचरा) पूसा डीकंपोजर

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राष्ट्रीय जैविक केन्द्र ने वर्ष 2015 में ‘पूसा डीकंपोजर’ का आविष्कार किया जिसके पूरे देश में आश्चर्यजनक सफल परिणाम मिले। इसका प्रयोग जैविक कचरे से तत्काल खाद बनाने के लिए किया जाता है तथा मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार के लिए बड़े पैमाने में केंचुए पैदा होते हैं और पौध की बीमारियों को रोकने के लिए इसका उपयोग किया जाता है। इसको देशी गाय के गोबर से सूक्ष्म जैविक जीवाणु निकाल कर बनाया गया है। वेस्ट डीकंपोजर की 30 ग्राम की मात्रा की पैक्ड बोतल 20 रु. प्रति बोतल बेची जाती है। इसका निर्माण राष्ट्रीय जैविक खेती केन्द्र, गाजियाबाद में होता है। इस वेस्ट डीकंपोजर को आईसीएआर द्वारा सत्यापित भी किया गया है।

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कचरे से वेस्ट डीकंपोजर तैयार करने का तरीका

  • 2 किलो गुड़ को 200 लीटर पानी वाले प्लास्टिक के ड्रम में मिलाएं।
  • अब एक बोतल वेस्ट डीकंपोजर को गुड़ के घोल में मिला दें।
  • ड्रम में सही ढंग से वेस्ट डीकंपोजर मिलाने के लिए लकड़ी के डंडे से मिलाएं।
  • घोल के ड्रम को ढंक दें और प्रत्येक दिन 1-2 बार इसको पुन: मिलाएं।
  • 5 दिनों के बाद ड्रम का घोल क्रीमी हो जाएगा यानि एक बोतल से 200 लीटर वेस्ट डी कंपोजर घोल तैयार हो जाता है।

नोट : किसान उपरोक्तानुसार 200 लीटर तैयार वेस्ट डीकंपोजर घोल से 20 लीटर लेकर 2 किलो गुड़ और 200 लीटर पानी के साथ एक ड्रम में दोबारा घोल बना सकते हैं।

महत्वपूर्ण खबर: निमाड़ सहकारी दुग्ध संघ की स्थापना का प्रस्ताव

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