राज्य कृषि समाचार (State News)फसल की खेती (Crop Cultivation)

खरीफ मौसम में कमाई का नया रास्ता: सिंघाड़ा की खेती

आलेख: श्री हरीश बाथम (एम.एस.सी. (कृषि) एग्रोनॉमी स्कॉलर), कृषि विद्यालय, विक्रांत विश्वविद्यालय, ग्वालियर, (म.प्र.), डॉ.सचिन कुमार सिंह (विभाग प्रमुख), डॉ. हिरदेश कुमार (सहायक प्रोफेसर), Email- Jiharish093@gmail.com

28 जुलाई 2025, भोपाल: खरीफ मौसम में कमाई का नया रास्ता: सिंघाड़ा की खेती – भारत में कृषि की परंपरा सदियों पुरानी है, और आज जब किसान परंपरागत फसलों से हटकर वैकल्पिक और लाभकारी विकल्पों की तलाश कर रहे हैं, तब सिंघाड़ा (Water Chestnut) की खेती एक उभरता हुआ अवसर बन कर सामने आया| सिंघाड़ा एक प्रकार का फल है जो पानी में उगने वाली वनस्पति से प्राप्त होता है। इसे अंग्रेजी में “water chestnut” भी कहा जाता है। यह त्रिकोणीय आकार का होता है और इसके सिर पर सींगों की तरह दो कांटे होते हैं।एक जलीय फल है जो पानी में उगने वाली एक लता में पैदा होता है। यह फल त्रिकोणीय आकार का होता है और इसके सिर पर सींगों की तरह दो कांटे होते हैं। सिंघाड़ा भारत में एक लोकप्रिय फल है और इसे कच्चा या उबालकर खाया जाता है। सिंघाड़े में कई पोषक तत्व पाए जाते हैं, जैसे कि फाइबर, कैल्शियम, प्रोटीन, मैंगनीज और कॉपर। यह एंटीऑक्सिडेंट का भी एक अच्छा स्रोत है। सिंघाड़ा खाने से सेहत को कई फायदे होते हैं, जैसे कि पाचन में सुधार, शरीर को हाइड्रेट रखना और इम्यूनिटी बढ़ाना। 

श्री हरीश बाथम

सिंघाड़ा की खेती का सही समय (Best Time for Singhada Cultivation):-

सिंघाड़ा एक जल आधारित खरीफ फसल है जिसकी खेती मानसून के दौरान की जाती है। इसका सही समय फसल की अच्छी उपज और गुणवत्ता के लिए बेहद महत्वपूर्ण होता है। सिंघाड़ा की रोपाई का उपयुक्त समय जून के मध्य से जुलाई तक होता है, जब बारिश शुरू हो जाती है और तालाबों या जलाशयों में पर्याप्त पानी भर जाता है। इस समय पौधों को अच्छी नमी और तापमान मिलता है, जो उनके विकास के लिए अनुकूल होता है।

फसल की वृद्धि वर्षा ऋतु (जुलाई से सितंबर) के दौरान होती है और फल अक्टूबर से पकने शुरू हो जाते हैं। तुड़ाई का समय अक्टूबर के अंत से लेकर दिसंबर तक रहता है, जब फल पूरी तरह परिपक्व और कठोर हो जाते हैं। ठंडी की शुरुआत के साथ ही फल में मिठास भी बढ़ जाती है, जिससे बाजार में इसकी मांग अधिक होती है।

इस प्रकार, जून मध्य से जुलाई तक रोपाई और अक्टूबर से दिसंबर तक तुड़ाई का समय सिंघाड़ा की सफल खेती के लिए सर्वोत्तम माना जाता है।

जलवायु की आवश्यकता:

  • गर्म और आर्द्र जलवायु उपयुक्त होती है।
  • अच्छी धूप और गहरा पानी फसल की अच्छी वृद्धि में सहायक होता है।
  • ठंडी शुरुआत के समय (अक्टूबर-नवंबर) में फल पकते हैं।

खेती का तरीका:

 1. स्थान का चयन (Selection of Site):

  • तालाब, झील, नदी किनारे का पानी भरा क्षेत्र या कोई भी खड़ा जलाशय चुनें।
  • पानी शांत और स्थिर हो।
  • 1–1.5 मीटर गहराई वाला क्षेत्र उपयुक्त है।
  • जल स्रोत सालभर उपलब्ध हो ताकि खेत सूखे नहीं।

 2. मिट्टी की तैयारी (Soil & Bed Preparation):

  • काली चिकनी दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है।
  • खेत में ध्यान रखें कि पानी रुकता हो, और जल निकासी की आवश्यकता ना हो।
  • खेत को मई से जून तक सूखा अवस्था में हल चला कर तैयार करें।
  • आवश्यकतानुसार गोबर की खाद (15-20 टन/हेक्टेयर) डालें।

 3. जल प्रबंधन (Water Management):

  • रोपाई से पहले खेत में 30–50 सेमी पानी भरें।
  • पौधों की वृद्धि के साथ-साथ पानी की गहराई 60–100 सेमी तक बढ़ाई जाती है।
  • जल स्तर पूरा सीजन समान बनाए रखना चाहिए।

 4. बीज या पौध का चयन और रोपाई (Planting Material and Transplanting):

  • बीज के रूप में पुराने परिपक्व सिंघाड़ा फल (जिनमें बीज होते हैं) का प्रयोग किया जाता है।
  • पुराने फल या कंद (corms) को 15-20 दिन पहले अंकुरित किया जाता है।
  • एक हेक्टेयर के लिए 5-6 क्विंटल अंकुरित बीज/कंद की आवश्यकता होती है।
  • रोपाई जून मध्य से जुलाई तक की जाती है।
  • रोपण दूरी:-
    • पंक्ति से पंक्ति – 60 सेमी
    • पौधे से पौधे – 30 सेमी
  • प्रत्येक स्थान पर 2–3 बीज/पौध लगाए जाते हैं।

 5. खाद एवं उर्वरक प्रबंधन (Nutrient Management):

  • 10-15 टन गोबर की खाद / हेक्टेयर खेत की तैयारी के समय डालें।
  • यदि आवश्यक हो तो:
    • 50-60 किग्रा नाइट्रोजन (N)
    • 30 किग्रा फास्फोरस (P₂O₅)
    • 30 किग्रा पोटाश (K₂O)
    • यह मात्रा 2-3 बार में पानी के साथ मिलाई जा सकती है।
  • जैविक खेती करने वालों के लिए केवल गोबर खाद और वर्मी कम्पोस्ट पर्याप्त हैं।

 6. निराई-गुड़ाई और देखरेख (Weeding & Care):

  • खेत में जलकुंभी, जलकांटा, अन्य जल खरपतवार नियमित रूप से हटाते रहें।
  • पौधों की जड़ों में ऑक्सीजन की कमी न हो इसलिए पानी की गुणवत्ता बनाए रखें।
  • पौधे को हवा, सूर्य और जल मिलते रहने चाहिए।

7. मुख्य कीट (Major Insect Pests):

1. पत्ती खाने वाले कीट (Leaf Feeding Caterpillars)

  • यह कीट सिंघाड़ा की पत्तियों को कुतरकर नुकसान पहुंचाते हैं।
  • लक्षण: पत्तियाँ झूलसी हुई, किनारों से कटी-कटी दिखाई देती हैं।
  • नियंत्रण:
    • जैविक उपाय: नीम तेल का 5% घोल छिड़काव करें।
    • रासायनिक उपाय: आवश्यकता पर Spinosad 45 SC @ 1 ml/L पानी में मिलाकर छिड़काव।

2. Aphids (चेपा)

  • ये छोटे आकार के कीट होते हैं जो रस चूसते हैं।
  • लक्षण: पत्तियाँ सिकुड़ने लगती हैं, विकास रुकता है।
  • नियंत्रण:
    • जैविक: नीम पर आधारित कीटनाशक।
    • रासायनिक: Imidacloprid 17.8 SL @ 0.3 ml/L छिड़काव करें।

3. Snails & Water Insects (घोंघे व जल कीट)

  • जलाशय में रहने वाले कीड़े पौधों की जड़ों को नुकसान पहुँचाते हैं।
  • नियंत्रण:
    • घरेलू उपाय: राख या चूना पानी की सतह पर छिड़कें।
    • रासायनिक: Metaldehyde 5% bait का सीमित उपयोग।

 मुख्य रोग (Major Diseases):

1. Leaf Spot (पत्ती धब्बा रोग)

  • कारक: Cercospora sp.
  • लक्षण: पत्तियों पर भूरे-काले धब्बे दिखाई देना।
  • नियंत्रण:
    • फफूंदनाशी: Mancozeb 75 WP @ 2.5 g/L का छिड़काव करें।
    • रोगग्रस्त पत्तियों को हटा दें।

2. Anthracnose (एन्थ्रेक्नोज)

  • लक्षण: पत्तियों पर गहरे धब्बे, धीरे-धीरे सूखने लगती हैं।
  • नियंत्रण:
    • Copper oxychloride @ 3 g/L का 10 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें।

3. Root Rot / Rhizome Rot (जड़ गलन)

  • कारक: जल में ऑक्सीजन की कमी, संक्रमणित मिट्टी।
  • नियंत्रण:
    • पानी की गुणवत्ता बनाए रखें।
    • Trichoderma viride का उपयोग 5 kg/हेक्टेयर।

 समेकित कीट व रोग प्रबंधन (IPM Tips):

  • जल की सफाई रखें, जलकुंभी व काई हटाते रहें।
  • उच्च घनत्व रोपण से बचें, पौधों के बीच उचित दूरी रखें।
  • जैविक नियंत्रण को प्राथमिकता दें।
  • रोगमुक्त गाठियों (बीज) का चयन करें।
  • रोग या कीट दिखने पर तुरंत कार्रवाई करें — देरी उपज को भारी नुकसान पहुंचा सकती है।

1. तुड़ाई (Harvesting of Singhada):

 तुडाई का सही समय:

  • जब फल पूरी तरह परिपक्व, काले या गहरे हरे रंग के और कड़े (firm) हो जाते हैं।
  • आमतौर पर फसल अक्टूबर के अंतिम सप्ताह से लेकर दिसंबर तक तैयार हो जाती है।
  • जिन क्षेत्रों में ठंड जल्दी शुरू हो जाती है, वहाँ तुड़ाई अक्टूबर के पहले सप्ताह से ही की जा सकती है।

 तोड़ने का तरीका:

  • तुड़ाई हाथ से की जाती है, खेत में पानी में उतरकर या नाव के सहारे।
  • हाथ से फल को तोड़कर टोकरी या बोरी में इकट्ठा किया जाता है
  • एक खेत में 3–5 बार में तुड़ाई की जाती है क्योंकि सारे फल एक साथ नहीं पकते।

 तुड़ाई के बाद प्रोसेसिंग:

  • ताजे सिंघाड़ों को पानी से धोकर साफ किया जाता है।
  • अगर आटा बनाने के लिए उपयोग करना हो तो सुखाकर छिलका हटाया जाता है और फिर पीसा जाता है।

 2. उपज (Yield of Singhada):

 औसत उपज (Per Hectare):

खेती की स्थितिउपज (क्विंटल / हेक्टेयर)
सामान्य देखभाल80–100 क्विंटल
अच्छी देखभाल, उन्नत किस्म120–150 क्विंटल
जैविक खेती70–90 क्विंटल
  • 1 एकड़ में औसतन 20–35 क्विंटल तक उपज ली जा सकती है।

 आमदनी का अनुमान:

  • मंडियों में ताजे सिंघाड़े का रेट ₹20–₹40 प्रति किलो (सीजन पर निर्भर करता है) तक जाता है।
  • यदि आप सिंघाड़े का आटा (Singhada Flour) बनाते हैं तो ₹80–₹120 प्रति किलो तक बिक सकता है।
  • एक हेक्टेयर से अच्छे प्रबंधन पर ₹1.5–₹2.5 लाख तक की आमदनी संभव है।

 उपज बढ़ाने के टिप्स:

  • सही समय पर रोपण करें (जून मध्य – जुलाई तक)।
  • बीज अच्छे, स्वस्थ और अंकुरित होने चाहिए।
  • जल स्तर स्थिर और साफ रखें।
  • खरपतवारों और कीटों पर नियंत्रण रखें।
  • समय पर तुड़ाई करें ताकि जरूरत से ज्यादा से नुकसान न हो।

सरकारी सहायता योजनाएं

 1. राष्ट्रीय जल मिशन / जल स्रोत विकास योजनाएं

 योजना का नाम:

प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना – (PMKSY – Watershed & Per Drop More Crop)”

 लाभ:

  • तालाब खुदवाने / सुधारने के लिए 50% से 60% सब्सिडी
  • जल संरक्षण और सिंचाई के साधनों पर सहायता
  • सिंघाड़ा जैसी जल आधारित खेती को बढ़ावा देने के लिए तालाब/खेत तालाब निर्माण में मदद

 कहां संपर्क करें:

  • जिला कृषि विभाग या कृषि अभिकरण (ATMA Office)
  • ग्रामीण विकास विभाग / पंचायत विभाग

 2. राष्ट्रीय बागवानी मिशन (NHM – MIDH)

 लाभ:

  • बागवानी आधारित विशेष फसलें, जैसे सिंघाड़ा के लिए खेती उपकरण, पौध रोपण, जैविक खाद पर 40-50% तक सब्सिडी
  • तालाब के आसपास फसल विविधीकरण के लिए सहायता।

 3. राज्य स्तरीय कृषि योजनाएं (मध्यप्रदेश कृषि विभाग)

 संभावित सहायता:

  • तालाब विकास योजना – निजी या सामुदायिक तालाबों के सुधार पर अनुदान
  • कृषि यंत्र योजना – स्प्रिंकलर, वाटर पंप, जैविक खाद यूनिट, सस्ती दर पर

 mpkrishi.mp.gov.in पर आवेदन या जानकारी मिल सकती है


 4. MP Matsya Vibhag (मत्स्य पालन विभाग) द्वारा सहायता:

यदि सिंघाड़ा की खेती को मछली पालन के साथ मिलाकर किया जाए (Integrated Farming), तो आपको निम्न लाभ मिल सकते हैं:

  • तालाब निर्माण/मरम्मत पर 60% तक अनुदान (SC/ST हेतु 75%)
  • तालाब सुधार, बाड़ fencing, और मल्टी यूटिलिटी फार्मिंग के लिए वित्तीय मदद

संपर्क: जिला मत्स्य विकास अधिकारी, जिला पंचायत कार्यालय


 5. कृषि यांत्रिकरण योजना (Agricultural Mechanization Scheme)

  • सिंघाड़ा की प्रोसेसिंग (जैसे सिंघाड़ा छिलने, सुखाने, आटा बनाने की मशीन) पर 40-50% सब्सिडी
  • जरूरत के हिसाब से बैटरी चालित नाव, ट्रॉली आदि पर छूट संभव

निष्कर्ष (Conclusion) – सिंघाड़ा की खेती

सिंघाड़ा की खेती कम लागत और अधिक लाभ देने वाली जल आधारित फसल है, जो विशेषकर खरीफ मौसम में की जाती है और अक्टूबर-नवंबर में तैयार होकर अच्छी आमदनी देती है। यह खेती उन किसानों के लिए एक शानदार अवसर है जिनके पास तालाब, जलभराव वाली भूमि या सिंचित क्षेत्र उपलब्ध है।

 मुख्य बिंदु:

  • सही समय: जून–जुलाई में रोपण, अक्टूबर–दिसंबर में तुड़ाई
  • उपज: 80–150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक
  • बाजार मांग: त्योहारों व व्रत के समय अधिक, सिंघाड़ा आटे की भी भारी मांग
  • सरकारी सहायता: तालाब निर्माण, जैविक खेती, उपकरणों पर 40–60% तक सब्सिडी

 यदि वैज्ञानिक विधि, अच्छी देखभाल और सरकारी योजनाओं का लाभ उठाया जाए, तो सिंघाड़ा की खेती किसानों के लिए लाभदायक व्यवसाय बन सकती है। यह न सिर्फ आय बढ़ाती है बल्कि जल संरक्षण और मत्स्य पालन के साथ मिलकर समेकित कृषि प्रणाली का हिस्सा भी बन सकती है।

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