टीकमगढ़ में 2700 टन यूरिया पहुंची: संकट में फंसे किसानों को बड़ी राहत,अब असली परीक्षा वितरण की
13 दिसंबर 2025, भोपाल: टीकमगढ़ में 2700 टन यूरिया पहुंची: संकट में फंसे किसानों को बड़ी राहत, अब असली परीक्षा वितरण की – मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ में लंबे समय से चले आ रहे खाद संकट के बीच आखिरकार गुरुवार को एक पूरी ट्रेन यूरिया लेकर
पहुंची, जिससे किसानों की सांस कुछ हल्की हुई। जिले में लगातार बढ़ती अफरातफरी और कालाबाजारी के माहौल को देखते हुए यह खेप एक जरूरी राहत बनकर आई है। कुल 2700 टन यूरिया टीकमगढ़ उतारा गया है, जिसमें से लगभग 65,000 बोरी खाद तुरंत सभी केंद्रों पर भेज दी गई। प्रशासन का दावा है कि मौजूदा खेप से किसानों को फिलहाल बड़ी राहत मिलेगी, बशर्ते वितरण में ईमानदारी दिखाई जाए।
किसानो के विरोध के बाद प्रशासन हरकत में आया
टीकमगढ़ में खाद संकट कोई अचानक पैदा हुई समस्या नहीं थी। किसानों की लंबी कतारें, खाली गोदाम, और कालाबाजारी में बेकाबू दाम। किसानो के विरोध के बाद जिला प्रशासन और सरकार पर दबाव बढ़ा और आखिरकार 2700 टन की खेप भेजी गई। किसानों का कहना है कि मीडिया ने उनकी असली समस्या को सामने रखा, तभी प्रशासन सक्रिय हुआ।
खाद की लाइन में किसान जमुना कुशवाहा की मौत ने पूरे जिले को हिला दिया था
संकट कितना भयावह था, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पलेरा के किसान जमुना कुशवाहा की तीन दिनों तक लाइन में लगने के बाद मौत हो गई थी। इस घटना ने पूरे जिले को आक्रोशित कर दिया। पलेरा, जतारा, खरगापुर, बलदेवगढ़, बड़ागांव और टीकमगढ़ में किसानों ने सड़क पर उतरकर सरकार और प्रशासन के खिलाफ जोरदार विरोध किया। आरोप साफ थे, खाद की आपूर्ति कमजोर, व्यवस्था अस्त-व्यस्त और कालाबाजारी बेकाबू।
270 रुपये की बोरी 600 रुपये में, कालाबाजारी ने हालात बिगाड़े
खाद की किल्लत के बीच सहकारी संस्थाओं और प्राइवेट दुकानों में यूरिया की मूल कीमत पूरी तरह बेअसर हो चुकी थी। 270 रुपये की बोरी 600 रुपये तक बेची जा रही थी। किसानों के लिए यह दोहरी मार थी। एक तरफ फसल का समय निकल रहा था और दूसरी तरफ जेब पर भारी बोझ। अब जब 2700 टन खाद की ट्रेन आ गई है, उम्मीद है कि कीमतें सामान्य होंगी, लेकिन यह तभी संभव है जब प्रशासन कालाबाजारी के खिलाफ सख्त कार्रवाई करे।
वितरण की जिम्मेदारी अब असली चुनौती
65,000 बोरी खाद सभी केंद्रों पर भेजी जा चुकी है। किसानों की नजर अब वितरण की प्रक्रिया पर है। साफ है कि अगर नियमों के अनुसार और बिना किसी गड़बड़ी के खाद बांटी गई, तो उन्हें पर्याप्त मात्रा में यूरिया मिल सकता है। लेकिन जिले की पुरानी स्थितियों को देखते हुए यह भी उतना आसान नहीं है।
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