पर्यावरण चेतना का प्रतीक बना गायत्री वृक्ष तीर्थ
(राजीव कुशवाह, नागझिरी)
यदि मन में किसी कठिन कार्य को करने का जूनून हो, तो तस्वीर बदली जा सकती है. ऐसा ही एक प्रयास खरगोन से 7 किमी दूर पूर्व दिशा में स्थित ग्राम मेहरजा के पास 25 वर्ष पहले बंजर भूमि को उपवन में बदलने का किया गया था, जो आज लहलहाते सैकड़ों वृक्षों के कारण वृक्ष तीर्थ के रूप में स्थापित होकर पर्यावरण चेतना का प्रतीक बन चुका है
इस बारे में यहां के प्रबंधक श्री कृष्णराव शर्मा ने कृषक जगत को बताया कि 1997 में ग्राम मेहरजा के पास गायत्री परिवार के सदस्यों ने जन सहयोग से चरनोई की बंजर भूमि को उप वन में बदलने की की शुरुआत की थी. जो आज सैकड़ों लहलहाते पेड़ों से आच्छादित है. 34 एकड़ में वृक्ष तीर्थ बनाया गया है , जहां 5 एकड़ में सागवान के 3 हजार से अधिक वृक्ष हैं. यहां फलदार वृक्षों के बजाय पलाश, अशोक , बोस और करंज के पेड़ लगाए गए हैं . पुराने पेड़ों की देखभाल के साथ नये पौधों की परवरिश भी नन्हे बच्चे की तरह की जाती है.करीब दस हजार पेड़ों का मई -जून की तपती गर्मीं में भी जल सिंचन किया जाता है , जिससे ग्रीष्म ऋतु में भी शीतलता का अहसास होता है. श्री शर्मा ने बताया कि पीपल, नीम या बरगद का एक पेड़ पांच करोड़ की नि:शुल्क ऑक्सीजन देता है., फिर भी लालची इंसान इन पर कुल्हाड़ी चलाने से नहीं चुकता.
श्री शर्मा ने बताया कि यहां एक गौ शाला भी है ,जहां बड़ी संख्या में गौ पालन होता है.यहां जैविक तरीकों से खाद का निर्माण किया जाता है.केंचुआ खाद के अलावा नाडेप पद्धति से बने गोबर खाद को बेचा जाता है. गोबर खाद से भूमि की उर्वरा शक्ति लम्बे समय तक बनी रहती है. गोबर गैस संयत्र से प्रति वर्ष एक लाख रुपए के ईंधन की बचत हो रही है. यहां गौशाला में मृत पशुओं को दफनाकर समाधि खाद भी तैयार किया जाता है, इसके उपयोग से धरती सोना उगलने लगती है. खाद निर्माण से यहां मजदूरों को नियमित रोजगार भी मिल रहा है.इस वृक्ष तीर्थ एवं गायत्री मंदिर को देखने कई स्वयंसेवी संस्थाओं के अलावा अन्य लोग भी आते हैं. आडंबर से परे मौन साधक के रूप में जल, जंगल, ज़मीन,जीव और जगदीश के प्रति आस्था प्रकट कर कार्य करने के यहां के तरीकों की तारीफ़ दूर -दूर तक हो रही है.