हल्दी खेती में गिरावट क्यों? इक्रियर की रिपोर्ट से अहम खुलासे
15 जनवरी 2025, नई दिल्ली: हल्दी खेती में गिरावट क्यों? इक्रियर की रिपोर्ट से अहम खुलासे – हल्दी के वैश्विक बाजार में भारत का दबदबा है, जहां देश की हिस्सेदारी 62 प्रतिशत से अधिक है। इसके बावजूद, हल्दी उद्योग कई गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहा है, जो इसकी वृद्धि और किसानों की आय को प्रभावित कर सकती हैं। इक्रियर (भारतीय प्रतिस्पर्धात्मकता संस्थान) और एमवे के सहयोग से जारी एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार, निर्यात बाजारों में हल्दी की स्वीकार्यता में कमी, मूल्य अस्थिरता, और उत्पादों में आवश्यक करक्यूमिन स्तर पूरा न कर पाने जैसे कारक उद्योग के लिए बड़ी बाधाएं बने हुए हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक, हल्दी की खेती से जुड़े लगभग 80 प्रतिशत किसानों की वार्षिक आय का 50 प्रतिशत से भी कम हिस्सा इस फसल से आता है। 262 किसानों, 45 किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) और हल्दी की वैल्यू चेन से जुड़ी 69 कंपनियों के सर्वेक्षण के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया है।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि किसानों की प्राथमिकता अन्य नकदी फसलों जैसे धान, सोयाबीन, मक्का, गन्ना और कपास पर बनी रही है। इसके कारण हल्दी की खेती में पिछले तीन वर्षों में कमी आई है। किसानों की हल्दी से होने वाली आय में गिरावट का मुख्य कारण मूल्य अस्थिरता और निर्यात बाजारों में प्रतिस्पर्धा की चुनौतियां हैं।
हालांकि भारत वैश्विक हल्दी बाजार का प्रमुख खिलाड़ी है, उसे म्यांमार, इंडोनेशिया और थाईलैंड जैसे देशों से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है। इन देशों में हल्दी की कीमतें कम होने के कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में उनका प्रभाव बढ़ा है।
राष्ट्रीय हल्दी बोर्ड का गठन
हल्दी उत्पादन और निर्यात को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार ने महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने हाल ही में राष्ट्रीय हल्दी बोर्ड का उद्घाटन किया। इसका उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय बाजारों का विस्तार करना, हल्दी की नई किस्मों का विकास करना और देश के पारंपरिक ज्ञान पर आधारित मूल्यवर्धित उत्पाद तैयार करना है।
मंत्री पीयूष गोयल ने बताया कि सरकार अगले पांच वर्षों में हल्दी का उत्पादन दोगुना कर 20 लाख टन तक ले जाने की योजना बना रही है। इसके तहत हल्दी आधारित उत्पादों जैसे न्यूट्रास्यूटिकल्स, सौंदर्य प्रसाधन, और रेडी-टू-यूज़ मिश्रणों पर अनुसंधान को बढ़ावा दिया जाएगा। हल्दी में करक्यूमिन के स्तर को बेहतर बनाने और रोग प्रतिरोधक किस्मों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए वैज्ञानिक अनुसंधान को भी प्रोत्साहित किया जा रहा है।
भारत के हल्दी उद्योग के लिए मूल्यवर्धन पर फोकस महत्वपूर्ण है। वित्तीय वर्ष 2022-23 में भारत ने 3.24 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में हल्दी की खेती की, जिससे 11.61 लाख टन उत्पादन हुआ। इसमें से बड़ी मात्रा का निर्यात अमेरिका, यूरोप, और मध्य पूर्व के बाजारों में किया गया। निर्यात से संबंधित सटीक आंकड़ों के अनुसार, भारत ने लगभग 1.54 लाख टन हल्दी उत्पादों का निर्यात किया, जिससे 1,500 करोड़ रुपये की आय हुई।
हल्दी की खेती के लिए विशेष जलवायु और मिट्टी की जरूरत होती है। तेलंगाना, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, कर्नाटक और ओडिशा भारत के प्रमुख हल्दी उत्पादक क्षेत्र हैं। हालांकि, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से उत्पादन में कमी की संभावना है। यह विषय सरकार और किसानों के लिए एक बड़ी चिंता का विषय है।
सरकार किसानों को सब्सिडी, उन्नत बीज, और विपणन सहायता प्रदान करने की योजना बना रही है। राष्ट्रीय हल्दी बोर्ड इन प्रयासों का समन्वय करेगा और निर्यातकों, किसानों, और वैज्ञानिकों के बीच एक सेतु का काम करेगा।
हल्दी की बढ़ती वैश्विक मांग का एक प्रमुख कारण इसके स्वास्थ्य लाभ हैं। विशेष रूप से COVID-19 महामारी के दौरान, हल्दी की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली विशेषताओं के कारण इसका उपभोग बढ़ा। हल्दी आधारित पेय जैसे हल्दी दूध और सप्लीमेंट्स की मांग में तेजी देखी गई है।
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