भारत में बढ़ती सीफूड मांग के बीच मेरीकल्चर को बढ़ावा देने की जरूरत: CMFRI निदेशक
14 अक्टूबर 2025, नई दिल्ली: भारत में बढ़ती सीफूड मांग के बीच मेरीकल्चर को बढ़ावा देने की जरूरत: CMFRI निदेशक – भारत में समुद्री खाद्य (सीफूड) की खपत में लगातार बढ़ोतरी हो रही है, जिसे देखते हुए समुद्री खेती यानी मेरीकल्चर को बढ़ावा देना बेहद जरूरी हो गया है। केंद्रीय समुद्री मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान (CMFRI) के निदेशक डॉ. ग्रिन्सन जॉर्ज ने इस दिशा में गंभीर प्रयासों की जरूरत पर बल दिया है। उन्होंने कहा कि देश को वर्ष 2047 तक मेरीकल्चर उत्पादन को मौजूदा 1.5 लाख टन से बढ़ाकर 25 लाख टन तक पहुंचाना होगा, ताकि देश की समुद्री खाद्य आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके और तटीय समुदायों को स्थायी रोजगार भी मिल सके।
क्या है मेरीकल्चर और क्यों है यह जरूरी?
मेरीकल्चर समुद्र या खारे पानी में मछली, झींगा, केकड़ा और समुद्री शैवाल जैसे जलीय जीवों की संगठित खेती है। मौजूदा समय में भारत हर साल करीब 35 लाख टन समुद्री पकड़ मत्स्य उत्पादन करता है, लेकिन जलवायु परिवर्तन और समुद्री संसाधनों पर बढ़ते दबाव के चलते यह उत्पादन घट सकता है। ऐसे में मेरीकल्चर एक वैकल्पिक और स्थायी उपाय के रूप में उभर रहा है, जिससे न केवल उत्पादन बढ़ाया जा सकता है बल्कि पारिस्थितिकी तंत्र पर भी कम प्रभाव पड़ेगा।
तकनीक और समुद्री शैवाल की अपार संभावनाएं
CMFRI ने भारतीय समुद्री परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए कई आधुनिक तकनीकों को विकसित किया है। केज कल्चर यानी समुद्र में जाल लगाकर मछलियां पालना और आईएमटीए (Integrated Multi-Trophic Aquaculture) जैसे मॉडल पर्यावरण अनुकूल उत्पादन सुनिश्चित करते हैं। वहीं, समुद्री शैवाल की खेती में भी भारत के पास 50 लाख टन तक उत्पादन की क्षमता है, जिसका उपयोग दवाओं, पोषण और उद्योगों में किया जा सकता है।
नीतिगत समर्थन से बनेगा वैश्विक मेरीकल्चर हब
भारत के पास लंबा समुद्री तट, अनुकूल जलवायु और वैज्ञानिक अनुसंधान की मजबूत बुनियाद है, जिससे वह वैश्विक मेरीकल्चर हब बन सकता है। डॉ. जॉर्ज ने इस क्षेत्र में योजनाबद्ध विकास के लिए राष्ट्रीय मेरीकल्चर नीति और कानूनी ढांचे की आवश्यकता पर ज़ोर दिया है। यह न केवल निवेश को आकर्षित करेगा बल्कि तटीय भारत की आर्थिक तस्वीर भी बदल सकता है।
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