15 महीने शांतिपूर्वक बैठे किसान… और फिर लाठीचार्ज! तिब्बी के किसानों की आवाज़ क्यों दबाई गई?”
12 दिसंबर 2025, तिब्बी (हनुमानगढ़): 15 महीने शांतिपूर्वक बैठे किसान… और फिर लाठीचार्ज! तिब्बी के किसानों की आवाज़ क्यों दबाई गई?” – तिब्बी (हनुमानगढ़) के किसानों का आंदोलन पिछले 15 महीनों से पूरी तरह शांतिपूर्ण था। राठी खेड़ा पंचायत में एक निजी कंपनी द्वारा प्रस्तावित 450 करोड़ रुपये की एथेनॉल फैक्ट्री को लेकर किसान लगातार विरोध जता रहे थे। किसानों का कहना है कि इस फैक्ट्री से हवा में विषैली गंध फैलेगी, पानी प्रदूषित होगा और क्षेत्र की खेती तथा मानव स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ेगा। उनका भय है कि फैक्ट्री शुरू होने के बाद भूमिगत जल स्रोत भी प्रभावित होंगे, जिससे कृषि पर सीधा संकट आएगा।
किसानों का आरोप है कि इतने लंबे समय तक लगातार धरना देने के बावजूद प्रशासन की ओर से कोई सार्थक संवाद नहीं किया गया। मानवाधिकार दिवस के दिन जब दुनिया मानवाधिकारों की रक्षा की बातें कर रही थी, तब तिब्बी में किसानों के शांतिपूर्ण प्रदर्शन पर अचानक लाठीचार्ज और आंसू गैस का इस्तेमाल किया गया, जिससे स्थिति और तनावपूर्ण हो गई। किसानों का कहना है कि बातचीत से हल निकल सकता था, लेकिन प्रशासन ने संवाद को नजरअंदाज करके हालात को बिगड़ने दिया।
किसानों का रोष और प्रशासन पर सवाल
स्थानीय किसान नेताओं ने आरोप लगाया है कि प्रशासन ने जानबूझकर बातचीत से बचते हुए हालात को इस मोड़ तक पहुंचाया। उनका कहना है कि दोपहर बाद जब भीड़ अधीर होने लगी, तब भी कोई अधिकारी वार्ता के लिए नहीं आया, जिससे गुस्सा भड़क गया। किसानों ने इसे प्रशासनिक विफलता बताते हुए कहा कि शांतिपूर्ण आंदोलन को जबरन कठोर पुलिस कार्रवाई में बदल देना लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन है। उनके मुताबिक, सरकार और पुलिस द्वारा किसानों की आवाज़ को दबाने की कोशिश ने पूरे क्षेत्र में आक्रोश फैला दिया है।
लोकतंत्र में संवाद की जगह डंडा क्यों?
किसान संगठनों का कहना है कि एक लोकतांत्रिक देश में विकास जनता की सहमति के बिना थोपे जाने से न तो शांति कायम रहती है और न ही जनता का भरोसा सरकार पर बना रह सकता है। तिब्बी के किसानों का कहना है कि उनकी जमीन, पानी और जीवन से जुड़े सवालों पर चर्चा करने के बजाय उन पर बल प्रयोग करके उन्हें डराने की कोशिश की गई, जो लोकतांत्रिक सिद्धांतों के विपरीत है। किसान संगठनों ने मांग की है कि सरकार तुरंत किसानों से वार्ता करे, घायलों का उपचार कराए और आंदोलन को दमनकारी नीतियों से न रोके।
तिब्बी का यह घटनाक्रम एक बड़े सवाल को सामने रखता है—अगर किसान अपनी जमीन और भविष्य की रक्षा के लिए शांति से आवाज़ उठाएं, तो क्या उनका जवाब लाठियों से दिया जाएगा? भारत जैसे लोकतंत्र में यह सवाल अनदेखा नहीं किया जा सकता।
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