विकास के इंजिन में ईंधन की दरकार !
12 फ़रवरी 2025, नई दिल्ली: विकास के इंजिन में ईंधन की दरकार ! – भारत कृषि प्रधान देश है और कृषि करना सम्मानजनक माना जाता रहा है तभी तो यह कहावत बनी … उत्तम खेती मध्यम बान, निकृष्ट चाकरी भीख निदान, लेकिन समय के साथ कृषि का दर्जा धीरे-धीरे कम होने लगा। अब चाकरी यानी नौकरी का स्थान सबसे ऊपर आ गया है। किसानों को अन्नदाता के रूप में सभी मान्यता देते हैं लेकिन किसानों की परिस्थितियों को सुधारने के लिये अभी तक जो भी कदम उठाए गए हैं, वे नाकाफी सिद्ध हो रहे हैं। भले ही सरकार किसानों को हर साल छह हजार रूपये की सहायता राशि प्रधानमंत्री सम्मान निधि योजना के तहत प्रदान कर रही है लेकिन कृषि में बढ़ती लागत, कृषि ऊपज की असामान्य कीमतें और प्राकृतिक आपदाओं से किसान प्राय: हर साल दो कदम आगे बढ़कर उतने ही कदम पीछे हो जाते हैं।
हालांकि कृषि और संबद्ध गतिविधियां’ भारतीय अर्थव्यवस्था का आधार है तथा इसने राष्ट्रीय आय और रोजगार में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। भारत में खाद्य सुरक्षा और भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ कृषि ही है। इसीलिए केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा में वित्त वर्ष 2025-26 का बजट पेश करते समय विकसित भारत के सपने को साकार करने के लिए कृषि पर जोर देते हुए कहा कि विकास और अर्थव्यवस्था का पहला इंजन कृषि ही है। उन्होंने कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के लिए वर्ष 2025-26 में 137756 करोड़ रुपये के बजट का प्रावधान किया है। अधिकांश योजनाओं का आवंटन पिछले साल के बराबर ही रखा गया है। प्रधानमंत्री धनधान्य कृषि योजना, कॉटन मिशन, दालों में आत्मनिर्भरता और 100 जिलों में राज्यों के साथ मिलकर उत्पादकता और आय में बढ़ोतरी की योजनाएं लागू करने की घोषणा की गई है पर न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कोई पहल नहीं की। हरियाणा सीमा पर चल रहे किसान आंदोलन के मद्देनजर उम्मीद थी कि वे इस सम्बंध में कोई पहल करेंगी। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि में भी वृद्धि नहीं की गई जबकि किसानों को उम्मीद थी कि सहायता राशि बारह हजार रूपये तक हो सकती है । किसान क्रेडिट कार्ड की सीमा को बढ़ाकर पांच लाख रूपये कर दिया है जिससे बड़े किसानों को अधिक फायदा होगा जबकि देश में 80 प्रतिशत से अधिक लघु और सीमांत किसान हैं। बैंकों द्वारा किसान क्रेडिट कार्ड के तहत रकबा, जोत और सिंचाई के आधार पर ऋण दिया जाता है। ऐसी स्थिति में लघु और सीमांत किसानों को किसान क्रेडिट कार्ड की सीमा बढ़ाने का फायदा कम ही मिल पाएगा। इस सम्बंध में वित्त मंत्री को स्पष्ट करना चाहिये था कि लघु और सीमांत किसानों को भी किसान क्रेडिट कार्ड से 5 लाख रूपये तक का ऋण मिलेगा। इससे देश के सभी राज्यों के किसानों को फायदा होता।
वित्त मंत्री ने कृषि को विकास के लिए सभी क्षेत्रों में सबसे ऊपर रखकर कृषि का मान तो बढ़ाया है लेकिन कृषि को लाभ का धंधा बनाने और किसानों की आय को दोगुना करने पर मौन साध लिया। कृषि को विकास का पहला इंजिन कहने से काम नहीं चलेगा। इंजिन के लिये ईंधन की व्यवस्था प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि से दी जाने वाली राशि से नहीं हो सकती। इसके लिये किसानों की प्रमुख समस्याओं जैसे भूमि का अधिकार, फसल का सही मूल्य, अच्छी गुणवत्ता के बीज, सिंचाई व्यवस्था, मिट्टी का क्षरण और परीक्षण, मशीनीकरण, स्थानीय स्तर पर भंडारण, कृषि आदानों का आसान परिवहन, पूंजी की कमी और प्रसंस्करण आदि पर ध्यान देने की जरूरत है। इन सभी विषयों पर गम्भीरता से विचार कर ऐसी योजनाएं बनाने की जरूरत हैं जिनके केंद्र में लघु और सीमांत किसान रहें ताकि देश के अधिसंख्य किसान लाभांवित हो सकें।
हालांकि केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने बजट पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि पानी का कुशल प्रबंधन, फसल का विविधिकरण, प्रोसेसिंग, कोल्ड स्टोरेज और वेयरहाउस की चेन, ऋण आदि से कृषि की उत्पादकता बढ़ेगी। श्री चौहान ने फल और सब्जियों की उत्पादन और उपभोक्ता के बीच कीमत के अन्तर को कम करने का प्रयास करने पर भी बल दिया है। टीओपी यानि टमाटर, प्याज और आलू की फसलों के साथ अन्य फसलों के ठीक दाम मिल सकें, इसके भी प्रयास करेंगे। श्री चौहान को विश्वास है कि इन सभी प्रयत्नों से कृषि में लगे करोड़ों किसानों की आय बढ़ेगी। कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री को यह भी जानना जरूरी है कि इन दिनों टमाटर के दाम इतने कम हैं कि किसान खेतों में ही टमाटर नष्ट कर रहे हैं। इस दिशा में केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को केवल टमाटर ही नहीं बल्कि अन्य सभी फसलों की कीमतों को स्थिर रखने के बारे में नीति बनाने पर काम करना होगा ताकि विकास के इंजिन कृषि के सुचारू संचालन के लिये किसान ईंधन यानि अपनी जरूरतों की पूर्ति कर सकें। यदि ऐसा करने में सफल रहते हैं तो निश्चित ही कृषि को फिर से उत्तम कार्य का दर्जा हासिल हो सकता है। ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन भी रूकेगा और स्थानीय स्तर पर रोजगार भी सृजित होंगे ।
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