National News (राष्ट्रीय कृषि समाचार)

मध्य प्रदेश में कृषि केबिनेट का कर्मकांड

Share

डॉ. जी. एस. कौशल, पूर्व कृषि संचालक, मध्य प्रदेश मो. 9826057424

भोपाल। मध्य प्रदेश में कृषि केबिनेट का कर्मकांड जब प्रशासनिक चुस्ती के लिए , लाल फीता शाही कम करने के लिए , मंडी में बिचोलियों को ख़तम करने के लिए, निर्णयों के दोहराव को ख़तम करने, शासन में सुशासन लाने के लिए सतत मंथन जारी है, तब मध्य प्रदेश सरकार ने  कैबिनेट के ऊपर या कह लीजिए कैबिनेट के साथ एक और कैबिनेट का गठन किया है।

मध्य प्रदेश में कृषि और उससे जुड़े मामलों को समग्र रूप से शामिल कर योजना बनाने और निर्णय लेने के लिये राज्य शासन ने मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता में कृषि केबिनेट (cabinetkrishi cabinet ) का गठन किया है।

कृषि केबिनेट में मंत्रि-परिषद् के जिन सदस्यों को शामिल किया गया है, उनमें गृह, जेल, संसदीय कार्य, विधि एवं विधायी कार्य मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा, लोक निर्माण, कुटीर एवं ग्रामोद्योग मंत्री श्री गोपाल भार्गव, जल-संसाधन, मछुआ कल्याण तथा मत्स्य विकास मंत्री श्री तुलसीराम सिलावट तथा किसान कल्याण एवं कृषि विकास मंत्री श्री कमल पटेल को शामिल किया गया है। इसके साथ ही महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती इमरती देवी, पशुपालन, सामाजिक न्याय एवं नि:शक्तजन कल्याण मंत्री श्री प्रेम सिंह पटेल, नवीन एवं नवकरणीय ऊर्जा, पर्यावरण मंत्री श्री हरदीप सिंह डंग, उद्यानिकी एवं खाद्य प्र-संस्करण (स्वतंत्र प्रभार), नर्मदा घाटी विकास मंत्री श्री भारतसिंह कुशवाह, राज्य मंत्री आयुष (स्वतंत्र प्रभार), जल-संसाधन श्री रामकिशोर (नानो) कावरे, लोक स्वास्थ्य एवं यांत्रिकी राज्य मंत्री श्री बृजेन्द्र सिंह यादव और किसान कल्याण तथा कृषि विकास राज्य मंत्री श्री गिर्राज डण्डोतिया को भी सदस्य के रूप में शामिल किया गया है। मुख्य सचिव समिति के सचिव और कृषि उत्पादन आयुक्त समिति के समन्वयक होंगे।

क्या औचित्य ?

जब किसानों को उचित भाव मिल सके, इसके लिए मंडी से बिचौलियो को हटाये जाने की जरूरत महसूस की जा रही है। उसी आधार पर पूर्णकालीन  कैबिनेट होने के बाद कृषि कैबिनेट के गठन का कोई औचित्य नहीं है।इसके कारण प्रशासनिक निर्णय लेने में देरी ही होगी। कृषि कैबिनेट के बाद अंतिम मोहर तो पूर्ण कैबिनेट की लगना ही होगी।इस परिस्थिति  में बिचौलिये के रूप में कृषि कैबिनेट की  जरूरत नहीं है।

कृषि विभाग और सरकार किसानों के हितों में कार्य करे इसके लिये विभाग को तकनीकी स्वरुप देना  जरूरी है।वर्तमान में तो एग्रीकल्चर, हॉर्टिकल्चर, बीज निगम,मण्डी बोर्ड,एम पीएग्रो इन्डस्ट्री,कहीं भी तकनीकी  योग्यता वाले प्रमुख अधिकारी  नियुक्त नहीं है।पूर्व में इन सभी पदों पर कृषि डिग्रीधारी अनुभवी अधिकारी ही रखे जाते थे।इसी प्रकार फील्ड में अधिकतर पद रिक्त हैं,जिसके कारण कृषकों को जानकारी और योजनाओं का लाभ  समय पर मिल ही नहीं पाता है। अतः इन बिंदुओं पर काम करना चाहिए।

कृषि केबिनेट की जगह, अनुभवी कृषि विशेषज्ञ,अधिकारियो अवं प्रगतिशील किसानों को सलाहकारों के रुप में रखना चाहिए।

पूर्व में कई समितियों द्वारा महत्वपूर्ण recommendations दी गई थी, इन पर कार्यवाही करना ज्यादा  जरुरी है। 2011-12 में मानव अधिकार आयोग द्वारा ,किसानों की आत्महत्या के अध्ययन करने के लिये डॉ साधुराम शर्मा पूर्व गन्ना आयुक्त  एवं  मेरी सम्मिलित  कमेटी का गठन किया था । समिति  द्वारा 2012 में रिपोर्ट दी गई थी।रिपोर्ट के आधार पर आयोग ने सरकार को 150 से अधिक recommendations, भेजी थी।इनमें से अधिकतर पर कार्यवाही लंबित  है।

 शिवराज सरकार द्वारा पूर्व कार्यकाल  में  बनाई गयी जैविक  कृषि नीति पर अमल होना शेष है l. इसी के साथ मण्डला जैविक  सम्मलेन में कई निर्णय लिए थे,परन्तु इन पर आज भी कार्यवाही करना शेष है।

तीन साल पूर्व भी कृषि कैबिनेट का गठन किया गया था।परन्तु उसके द्वारा कोई उल्लखेनीय उपलब्धि  नहीं हासिल हुई । प्याज के गिरते दाम , भण्डारण के अभाव में सड़ता अनाज ये विकत स्थितियां बिना कैबिनेट के भी सम्हलसकती थीं। ये केवल समय और धन की बर्बादी के अलावा कुछ नहीं होगा. समग्र रूप से कृषि कैबिनेट का पूर्व इतिहास ,कार्य प्रणाली का विश्लेषण करें तो सरकार का कृषि कैबिनेट का गठन मध्य प्रदेश के  कृषि फलक पर  कोई घनात्मक प्रभाव दिखाएगा, उम्मीद कम है।

Share
Advertisements

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *