जिंक की कमी से निपटने और पोषण सुधारने के लिए लॉन्च हुई नई हाई-जिंक चावल किस्म ‘स्पूर्ति (GNV 1906)’
11 जुलाई 2025, नई दिल्ली: जिंक की कमी से निपटने और पोषण सुधारने के लिए लॉन्च हुई नई हाई-जिंक चावल किस्म ‘स्पूर्ति (GNV 1906)’ – भारत में किसानों को एक नई हाई-जिंक युक्त चावल की किस्म ‘स्पूर्ति (GNV 1906)’ का बीज वितरित किया जा रहा है। इसका उद्देश्य जिंक की कमी से लड़ना और मुख्य भोजन चावल के माध्यम से पोषण में सुधार करना है। इस किस्म को व्यावसायिक खेती के लिए 2023 में आधिकारिक रूप से मंजूरी मिली थी।
बीज वितरण कार्यक्रम – कर्नाटक और तेलंगाना में किसानों तक पहुंच
IRRI (अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान), ICAR – इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ राइस रिसर्च (IIRR) और कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय, रायचूर ने कर्नाटक के रायचूर और तेलंगाना के नलगोंडा जिले के मर्रीगुडेम गांव में प्रशिक्षण और बीज वितरण कार्यक्रम आयोजित किए। रायचूर में विश्वविद्यालय परिसर और गांव स्तर पर आयोजित कार्यक्रमों के दौरान 50 क्विंटल बीज चुने गए किसानों को दिया गया, ताकि आगे उत्पादन कर अधिक किसानों तक इसे पहुंचाया जा सके।
स्पूर्ति की खासियत – पोषण के साथ उत्पादन में भी दमदार
स्पूर्ति किस्म को IRRI, IIRR और रायचूर कृषि विश्वविद्यालय के साथ मिलकर तैयार किया गया है। यह भारत में जिंक बायोफोर्टिफिकेशन नेटवर्क के तहत विकसित की गई एकमात्र चावल किस्म है जिसे पिछले तीन वर्षों में AICRIP (ऑल इंडिया कोऑर्डिनेटेड राइस इम्प्रूवमेंट प्रोग्राम) से मंजूरी मिली है।
स्पूर्ति में पॉलिश किए गए चावल में 26 पीपीएम जिंक पाया जाता है, जो सामान्य किस्मों की तुलना में कहीं अधिक है (सामान्यतः 12-16 पीपीएम)। यह महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों में पाई जाने वाली जिंक की कमी को दूर करने में मददगार हो सकती है।
उत्पादन की दृष्टि से भी यह किस्म IR64 और MTU1010 जैसी लोकप्रिय किस्मों की बराबरी करती है, जिनका औसत उत्पादन 4.5 से 6.5 टन प्रति हेक्टेयर है। इसका मतलब यह है कि किसान पोषण का लाभ उठाते हुए उत्पादन से कोई समझौता नहीं करेंगे।
तेजी से पहुंच बढ़ाने की रणनीति
कई चावल की किस्में हर साल मंजूरी पाती हैं, लेकिन समय पर बीज उत्पादन और किसान जागरूकता के अभाव में वे खेतों तक नहीं पहुंच पातीं। स्पूर्ति को लेकर बीज उत्पादन का कार्य पहले ही तेलंगाना (हैदराबाद) और कर्नाटक (रायचूर) में शुरू कर दिया गया है, ताकि जल्द से जल्द अधिक किसानों तक इसे पहुंचाया जा सके।
इसके साथ-साथ किसानों को जागरूक करने के लिए प्रशिक्षण और जानकारी अभियान भी चलाए जा रहे हैं, जिससे वे यह समझ सकें कि सिर्फ उपज ही नहीं, पोषण भी किस्म चुनने का एक महत्वपूर्ण आधार हो सकता है।
“पोषण को भी मिले उतनी ही अहमियत” – डॉ. स्वामी
IRRI के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. बी.पी. मल्लिकार्जुन स्वामी ने कहा, “अभी भी कई किसान केवल उत्पादन या कीट प्रतिरोध को देखकर किस्म चुनते हैं, पोषण को नहीं। हम यही सोच बदलने के लिए काम कर रहे हैं।”
आगे की दिशा – सरकारी योजनाओं में समावेश की तैयारी
भविष्य में फोकस होगा बीज की उपलब्धता बढ़ाने और स्पूर्ति को पोषण आधारित सरकारी योजनाओं से जोड़ने पर। इसमें महिला एवं बाल विकास विभाग, मिड-डे मील योजनाएं और सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) के जरिए इसका विस्तार करने की योजना है।
डॉ. स्वामी ने बताया, “हम महिला एवं बाल विकास विभाग, स्कूल मील कार्यक्रमों और निजी क्षेत्र के साथ मिलकर स्पूर्ति को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाने की योजना बना रहे हैं।”
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