राष्ट्रीय कृषि समाचार (National Agriculture News)

जीनोम संपादित चावल की नई किस्मों से अधिक उत्पादन, सिंचाई जल में बचत होगी: श्री शिवराज सिंह

केंद्रीय कृषि मंत्री ने देश में विकसित चावल की दो किस्मों का किया लोकार्पण

05 मई 2025, नई दिल्ली: जीनोम संपादित चावल की नई किस्मों से अधिक उत्पादन, सिंचाई जल में बचत होगी: श्री शिवराज सिंह – केंद्रीय कृषि और ग्रामीण विकास मंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने  भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के नई दिल्ली स्थित , एनएएससी कॉम्प्लेक्स में, देश में विकसित विश्व की पहली दो जीनोम संपादित चावल की किस्मों का लोकार्पण किया और वैज्ञानिक शोध की दिशा में नवाचार की शुरुआत की। बड़ी संख्या में वैज्ञानिकों और किसानों ने कार्यक्रम में शिरकत की।

इस अवसर पर केंद्रीय मंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने दोनों किस्मों के अनुसंधान में योगदान करने वाले वैज्ञानिकों को सम्मानित किया। डीआरआर धान 100 (कमला) के अनुसंधान में योगदान के लिए डॉ. सत्येंद्र कुमार मंग्राउथिया, डॉ. आर.एम सुंदरम, डॉ. आर. अब्दुल फियाज, डॉ. सी. एन. नीरजा और डॉ. एस. वी. साई प्रसाद तथा पूसा डीएसटी राइस 1  के लिए डॉ. विश्वनाथन सी, डॉ. गोपाल कृष्णनन एस, डॉ. संतोष कुमार, डॉ. शिवानी नागर, डॉ. अर्चना वत्स, डॉ. रोहम रे, डॉ. अशोक कुमार सिंह, डॉ. प्रांजल यादव व अन्य संयोजकों जिसमें श्री राकेश सेठ, श्री ज्ञानेंन्द्र सिंह और श्री सत्येंद्र मंग्राउथिया को सम्मानित किया गया।

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कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री श्री चौहान ने कहा कि किसान समृद्धि की ओर बढ़ रहे है। आजादी के अमृत महोत्सव में कृषि की चुनौतियों से निपटने के लिए आईसीएआर के वैज्ञानिकों ने नई किस्सों का इजाद कर कृषि क्षेत्र में असाधारण उपलब्धि अर्जित की है।उन्होंने कहा कि इन नई फसलों के विकसित होने से उत्पादन क्षमता बढ़ेगी, साथ ही पर्यावरण के संदर्भ में भी सकारात्मक परिणाम प्राप्त होंगे। इससे ना केवल सिंचाई जल में बचत होगी, बल्कि ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन से पर्यावरण पर पड़ने वाले दबाव में भी कमी आएगी।

श्री चौहान ने कहा कि आने वाले समय में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने, पोषणयुक्त उत्पादन बढ़ाने और देश के साथ-साथ दुनिया के लिए खाद्यान्न की व्यवस्था करते हुए भारत को फूड बासकेट बनाने के ध्येय से काम करना होगा। उन्होंने कहा कि हमें गर्व हैं कि हम बेहतरीन काम कर रहे हैं, वैज्ञानिक बधाई के पात्र भी है, उन्नत प्रयासों का ही परिणाम है कि आज हम 48 हजार करोड़ का बासमती चावल बाहर निर्यात कर रहे हैं।उन्होंने कहा कि सोयाबीन, अरहर, तूअर, मसूर, उड़द, ऑयल सीड की किस्मों सहित दलहन और तिलहन के उत्पादन की दिशा में वृद्धि के लिए हमें और आगे कदम बढ़ाना होगा।

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श्री चौहान ने यह भी कहा कि हमें माइनस 5 और प्लस 10 के फॉर्मूले को अपनाते हुए काम करना होगा। इस फॉर्मूले का मतलब है 5 मिलियन (50 लाख) हेक्टेयर चावल का एरिया कम करना है और 10 मिलियन (एक करोड़) टन चावल का उत्पादन उतने एरिया में ही बढ़ाना है। इस उद्देश्य से काम करने से जो क्षेत्रफल बचेगा, उसमें दलहन और तिलहन की खेती पर जोर दिया जाएगा।
कार्यक्रम में कृषि सचिव श्री देवेश चतुर्वेदी, आईसीएआर के महानिदेशक डॉ. मांगी लाल जाट, आईसीएआर के उप महानिदेशक डॉ. देवेन्द्र कुमार यादव, भारतीय चावल अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद के निदेशक डॉ. आर.एम. सुंदरम, आईसीएआर के पूर्व निदेशक डॉ. अशोक कुमार सिंह, आईसीएआर के निदेशक डॉ. सीएच. श्रीनिवास राव, उप निदेशक डॉ विश्वनाथन भी शामिल रहें।

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चावल की नई किस्में

आईसीएआर ने भारत की पहली जीनोम-संपादित चावल की किस्में – डीआरआर धान 100 (कमला) और पूसा डीएसटी राइस 1 विकसित की हैं। ये किस्में अधिक उत्पादन, जलवायु अनुकूलता और जल संरक्षण में क्रांतिकारी बदलाव लाने की क्षमता रखती हैं।इन नई किस्मों को जीनोम संपादन तकनीक (सीआरआईएसपीआर-कैस) आधारित जीनोम एडिटिंग तकनीक से विकसित किया गया है, जिससे जीवों के मूल जीन में सूक्ष्म बदलाव किए जाते हैं, और कोई विदेशी डीएनए नहीं जोड़ा जाता। एसडीएन 1 और एसडीएन 2 प्रकार के जीनोम एडिटिंग को सामान्य फसलों के अंतर्गत भारत सरकार के जैव सुरक्षा नियमों के तहत मंजूरी प्राप्त हो चुकी है।

आईसीएआर ने 2018 में राष्ट्रीय कृषि विज्ञान निधि के तहत दो प्रमुख धान की किस्मों – सांबा महसूरी और एमटीयू 1010 – को बेहतर बनाने हेतु जीनोम एडिटिंग अनुसंधान आरंभ किया था। इसका परिणाम हैं दो उन्नत किस्में, जो यह  लाभ प्रदान करती हैं:

• उपज में 19% तक वृद्धि
• ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 20% तक की कमी
• सिंचाई जल की 7,500 मिलियन घन मीटर की बचत
• सूखा, लवणता व जलवायु दबाव के प्रति बेहतर सहनशीलता

डीआरआर धान 100 (कमला)

इस  किस्म को आईसीएआर-आईआईआरआर, हैदराबाद द्वारा विकसित गया है। सांबा महसूरी (बीपीटी 5204) के जरिए यह किस्म विकसित की गई है। जिसका उद्देश्य प्रति बाली अनाज की की संख्या बढ़ाना है। इसकी फसल 20 दिन पहले पकती है (~130 दिन) और अनुकूल परिस्थितियों में 9 टन/हेक्टेयर तक उपज की क्षमता रखती है। कम अवधि होने के कारण इस किस्म की खेती में पानी एवं उर्वरकों की बचत करने और मीथेन गैस के उत्सर्जन को कम करने में मदद करेगी। इसका तना मजबूत है तथा गिरती नहीं । यह किस्म में चावल की गुणवत्ता में मूल किस्म यानी सांबा महसूरी जैसी हैं।

पूसा डीएसटी राइस 1

इस  किस्म को  आईसीएआर, आईएआरआई, नई दिल्ली द्वारा विकसित किया गया है। यह एमटीयू 1010 किस्म पर आधारित है। यह किस्म खारे व क्षारीय मिट्टी में 9.66% से 30.4% तक उपज में वृद्धि देने में सक्षम है। 20% तक उत्पादन बढ़ने की क्षमता।

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इन राज्यों के लिए विकसित की

यह दोनों  किस्में आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु, पुडुचेरी, केरल (जोन VII), छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश (जोन V), ओडिशा, झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल (जोन III) राज्यों के लिए विकसित की गई है।

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