राष्ट्रीय कृषि समाचार (National Agriculture News)

प्राकृतिक कृषि एक सशक्त और स्थायी कृषि प्रणाली

लेखक: विनीत कुमार जयसवाल, राविसिं कृषि विश्वविद्यालय, ग्वालियार, jaiswalwinit@gmail.com

06 जनवरी 2025, नई दिल्ली: प्राकृतिक कृषि एक सशक्त और स्थायी कृषि प्रणाली – प्राकृतिक कृषि, जिसे अंग्रेजी में ‘Natural farming’ कहा जाता है, एक ऐसी कृषि पद्धति है जो रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों और खरपतवारनाशक के बजाय प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करती है। इसका मुख्य उद्देश्य प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण और पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन को बनाए रखना है। प्राकृतिक कृषि की अवधारणा का उद्देश्य केवल अधिक उत्पादन प्राप्त करना नहीं है, बल्कि पर्यावरणीय, सामाजिक और आर्थिक स्थिरता को भी सुनिश्चित करना है।

प्राकृतिक कृषि का इतिहास और महत्व

प्राकृतिक कृषि का विचार प्राचीन कृषि पद्धतियों से लिया गया है, जब किसान रासायनिक पदार्थों का उपयोग किए बिना भूमि से उत्पादन प्राप्त करते थे। सदियों से मानव ने मिट्टी की उर्वरता, जल और जलवायु को ध्यान में रखते हुए खेती की है।
लेकिन 20वीं शताब्दी में रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों और उच्च तकनीकी उपकरणों के उपयोग के बाद पारंपरिक कृषि पद्धतियाँ पीछे छूट गईं। हालांकि, इन रासायनिक पदार्थों के अत्यधिक उपयोग से मिट्टी की गुणवत्ता में गिरावट आई, जलवायु परिवर्तन बढ़ा और जैव विविधता का संकट उत्पन्न हुआ। इन समस्याओं को ध्यान में रखते हुए प्राकृतिक कृषि को पुन: बढ़ावा देने की आवश्यकता महसूस की गई। प्राकृतिक कृषि पर्यावरणीय संतुलन को बनाए रखने में मदद करती है और यह दीर्घकालिक उत्पादन सुनिश्चित करती है।

प्राकृतिक कृषि के सिद्धांत

प्राकृतिक कृषि के कुछ प्रमुख सिद्धांत होते हैं, जिन्हें किसानों को समझना और अपनाना चाहिए-

  • मिट्टी की उर्वरता का संरक्षण: प्राकृतिक कृषि में रासायनिक उर्वरकों का उपयोग नहीं किया जाता है, बल्कि जैविक खाद, वर्मीकम्पोस्ट, गोबर की खाद, और प्राकृतिक तत्वों का उपयोग किया जाता है। इससे मिट्टी की संरचना, पोषक तत्वों का स्तर और जल धारण क्षमता बनी रहती है।
  • फसल चक्र और अंतर फसल पद्धति: फसल चक्र का पालन करना और अलग-अलग प्रकार की फसलें उगाना प्राकृतिक कृषि का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह कीटों और रोगों से बचाव करता है और मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखता है। उदाहरण के लिए, धान के साथ गेहंू या दालें लगाना, या विभिन्न प्रकार की दलहनी फसलें लगाने से मिट्टी में आवश्यक पोषक तत्वों की भरपाई होती है।
  • रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का नकार: प्राकृतिक कृषि में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का इस्तेमाल पूरी तरह से बंद कर दिया जाता है। इसके बजाय, जैविक कीटनाशक और प्राकृतिक उपचारों का उपयोग किया जाता है जैसे नीम के तेल का उपयोग, प्याज और लहसुन के अर्क से स्प्रे करना आदि।
  • पारिस्थितिकी तंत्र का संरक्षण: प्राकृतिक कृषि में पारिस्थितिकी तंत्र का सम्मान किया जाता है। यह सिद्धांत इस बात पर आधारित है कि खेती से संबंधित सभी कारक – भूमि, जल, पौधे, और जीव- एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करते हैं। प्राकृतिक कृषि में यह सुनिश्चित किया जाता है कि इन सभी तत्वों के बीच संतुलन बना रहे।
  • जल का प्रबंधन: जल का उपयोग प्राकृतिक कृषि में अत्यधिक महत्वपूर्ण है। इसमें जल संचयन तकनीकों का उपयोग किया जाता है, जैसे कि वर्षा जल संचयन, ड्रिप सिंचाई, और जल की पुनर्चक्रण प्रणाली। इसके द्वारा जल का सही तरीके से प्रबंधन किया जाता है और इससे जल संकट से निपटने में मदद मिलती है।

प्राकृतिक कृषि के द्वारा कृषि संकट का समाधान

भारत में प्राकृतिक कृषि से जुड़ी कई सफलताएँ रही हैं, जो कृषि संकट से निपटने में सहायक रही हैं। आजकल किसान प्राकृतिक कृषि को अपनाकर कई समस्याओं का समाधान कर रहे हैं, जैसे-

  • भूमि की उर्वरता का संकट: रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग के कारण भूमि की उर्वरता में गिरावट आई है। प्राकृतिक कृषि के माध्यम से भूमि की गुणवत्ता को फिर से सुधारा जा सकता है और उसे उर्वर बनाया जा सकता है।
  • जल संकट: भारत में जल संकट एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन चुका है। प्राकृतिक कृषि में जल प्रबंधन की तकनीकों का उपयोग कर जल संचयन और जल की बचत की जा सकती है। इससे सूखा प्रभावित क्षेत्रों में खेती करना संभव होता है।
  • कीट और रोग: प्राकृतिक कृषि में जैविक कीटनाशकों और प्राकृतिक उपायों से कीटों और रोगों से बचाव किया जाता है, जिससे कृषि उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार होता है।

वर्तमान स्थिति और आंकड़े

वर्तमान में भारत में प्राकृतिक कृषि को लेकर कई योजनाएँ और पहलें चल रही हैं। भारत सरकार ने ‘प्राकृतिक कृषिÓ को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न योजनाओं की घोषणा की है। भारतीय कृषि मंत्रालय ने 2020 में 100,000 हेक्टेयर भूमि में प्राकृतिक खेती को लागू करने का लक्ष्य रखा था। इसके अलावा, राज्य सरकारें भी इसे बढ़ावा देने के लिए किसानों को प्रोत्साहित कर रही हैं।

राष्ट्रीय आंकड़े (2023)

  • प्राकृतिक खेती के तहत भूमि: भारत में वर्तमान में लगभग 5 मिलियन हेक्टेयर भूमि पर प्राकृतिक कृषि हो रही है। इस क्षेत्र में उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश प्रमुख राज्य हैं जहाँ प्राकृतिक खेती को अपनाया गया है।
  • विपणन और जैविक उत्पादों की मांग: भारत में जैविक उत्पादों की मांग बढ़ रही है। 2023 में भारतीय जैविक बाजार का मूल्य लगभग रूपये 10,000 करोड़ से ऊपर अनुमानित किया गया था।
  • कृषि संकट में राहत: पिछले कुछ वर्षों में प्राकृतिक कृषि से जुड़ी समस्याओं का समाधान हुआ है। उदाहरण स्वरूप, उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में प्राकृतिक कृषि अपनाने के बाद किसान की लागत में 30 प्रतिशत की कमी आई और उत्पादकता में 15 प्रतिशत तक की वृद्धि देखी गई।

प्राकृतिक कृषि के द्वारा खेती में बदलाव

प्राकृतिक कृषि की मदद से किसानों ने खेती के पारंपरिक तरीकों से हटकर एक नई दिशा में काम करना शुरू किया है। यह खेती का भविष्य है, जो न केवल किसानों के लिए, बल्कि पर्यावरण के लिए भी बेहतर है।

निष्कर्ष

प्राकृतिक कृषि एक स्थिर, पारिस्थितिकीय और दीर्घकालिक कृषि प्रणाली है। यह हमारे पारंपरिक कृषि पद्धतियों को पुन: स्थापित करने का प्रयास करता है। इसमें न केवल भूमि, जल और जैव विविधता का संरक्षण होता है, बल्कि यह किसानों की आय बढ़ाने, पर्यावरण को बचाने और कृषि संकट को हल करने में भी सहायक होता है। इसे बढ़ावा देने के लिए सरकार, संस्थाएँ और किसान मिलकर काम कर सकते हैं। प्राकृतिक कृषि को अपनाकर हम अपनी आने वाली पीढिय़ों के लिए एक सुरक्षित और स्थायी कृषि प्रणाली तैयार कर सकते हैं।

प्राकृतिक कृषि के लाभ

प्राकृतिक कृषि के कई लाभ होते हैं, जो न केवल किसानों के लिए, बल्कि पूरे समाज और पर्यावरण के लिए फायदेमंद होते हैं-
मिट्टी की उर्वरता में वृद्धि: प्राकृतिक कृषि में जैविक खादों का उपयोग मिट्टी की गुणवत्ता को बेहतर बनाता है। यह मिट्टी के पोषक तत्वों की कमी को दूर करता है और भूमि की उपजाऊ शक्ति को बनाए रखता है।

  • स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित उत्पाद: प्राकृतिक कृषि में उत्पादित होने वाली फसलें रासायनिक अवशेषों से मुक्त होती हैं, जिससे यह अधिक स्वास्थ्यवर्धक और सुरक्षित होती हैं। इसके अलावा, किसान इन उत्पादों को जैविक उत्पाद के रूप में बेच सकते हैं, जिससे उन्हें अधिक लाभ मिलता है।
  • पर्यावरण का संरक्षण: प्राकृतिक कृषि से पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता है। इसमें रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों और प्रदूषण का उपयोग नहीं होता है, जिससे जल, वायु और मिट्टी की गुणवत्ता बनी रहती है।
  • लागत में कमी: प्राकृतिक कृषि में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों की आवश्यकता नहीं होती, जिससे किसानों की कृषि लागत कम होती है। इसके बजाय, किसान स्थानीय और सुलभ जैविक संसाधनों का उपयोग करते हैं, जिससे उनकी लागत घटती है।
  • कृषि उत्पादों में विविधता: प्राकृतिक कृषि में एक ही भूमि पर विभिन्न प्रकार की फसलें उगाई जाती हैं, जिससे जैव विविधता में वृद्धि होती है। यह पर्यावरण के लिए अच्छा है और कीटों और रोगों से बचाव में भी मदद करता है।
  • दीर्घकालिक उत्पादन: प्राकृतिक कृषि में उत्पादित होने वाली फसलें दीर्घकालिक होते हैं, क्योंकि यह जमीन की गुणवत्ता को बनाए रखता है। रासायनिक उर्वरकों के विपरीत, प्राकृतिक पद्धतियाँ भूमि की उर्वरता को स्थिर और लगातार बनाए रखती हैं।

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