आईसीएआर-सीएसडब्ल्यूआरआई में भेड़ पालन पर राष्ट्रीय सेमिनार, सब्सिडी और ब्याज सहायता पर चर्चा
24 दिसंबर 2025, नई दिल्ली: आईसीएआर-सीएसडब्ल्यूआरआई में भेड़ पालन पर राष्ट्रीय सेमिनार, सब्सिडी और ब्याज सहायता पर चर्चा – भारत सरकार के मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के पशुपालन एवं डेयरी विभाग (डीएएचडी) द्वारा आईसीएआर–केंद्रीय भेड़ ऊन अनुसंधान संस्थान (आईसीएआर-सीएसडब्ल्यूआरआई) के सहयोग से 22 दिसंबर 2025 को राजस्थान के अविकानगर में भेड़ पालन पर एक राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया। सेमिनार में भेड़, मटन और ऊन क्षेत्र के समग्र विकास, निवेश की संभावनाओं, सरकारी योजनाओं, सब्सिडी और ब्याज सहायता जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर विस्तार से चर्चा की गई।
सेमिनार में डीएएचडी के सचिव श्री नरेश पाल गंगवार, पशुपालन आयुक्त डॉ. प्रवीण मलिक, डीएएचडी के संयुक्त सचिव डॉ. मुथुकुमारसामी बी, हिमाचल प्रदेश सरकार के पशुपालन विभाग के सचिव श्री रितेश चौहान सहित केंद्र और राज्य सरकारों के वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित रहे। इसके अलावा देशभर से विभिन्न राज्यों के पशुपालन विभागों, आईसीएआर के संस्थानों, केंद्रीय ऊन विकास बोर्ड, राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड, उद्योग समूहों, स्टार्ट-अप, गैर-सरकारी संगठनों, उद्यमियों और भेड़ पालक किसानों ने भी भागीदारी की।
भेड़ पालन में उद्यमिता को बढ़ावा देने पर जोर
सेमिनार को संबोधित करते हुए डीएएचडी के संयुक्त सचिव डॉ. मुथुकुमारसामी बी ने बताया कि विभाग राष्ट्रीय पशुधन मिशन (एनएलएम) के अंतर्गत भेड़ नस्ल सुधार और उद्यमिता विकास कार्यक्रमों पर विशेष ध्यान दे रहा है। उन्होंने बताया कि एनएलएम के उद्यमिता विकास कार्यक्रम (ईडीपी) के तहत 500 भेड़/बकरियों की क्षमता वाली परियोजनाओं के लिए 50 प्रतिशत तक (अधिकतम 50 लाख रुपये) की पूंजी सब्सिडी दी जा रही है, जिसे लेकर किसानों और उद्यमियों से अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही है।
उन्होंने यह भी जानकारी दी कि पशुपालन अवसंरचना विकास कोष (एएचआईडीएफ) के अंतर्गत अपशिष्ट से धन सृजन, वैक्सीन उत्पादन इकाइयों और प्राथमिक ऊन प्रसंस्करण इकाइयों जैसी गतिविधियों के लिए 3 प्रतिशत ब्याज सब्सिडी प्रदान की जा रही है। साथ ही उन्होंने किसानों और उद्यमियों के प्रशिक्षण में निजी क्षेत्र की भागीदारी को भी आवश्यक बताया।
आनुवंशिक सुधार और पशु स्वास्थ्य सेवाओं पर चर्चा
सेमिनार में भेड़ पालन की उत्पादकता बढ़ाने के लिए आनुवंशिक सुधार और कृत्रिम गर्भाधान सेवाओं के विस्तार पर भी जोर दिया गया। वक्ताओं ने मोबाइल पशु चिकित्सा वैन के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों तक पशु स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचाने की आवश्यकता पर बल दिया।
भारत सरकार के पशुपालन आयुक्त डॉ. प्रवीण मलिक ने कहा कि उपलब्ध संसाधनों की पहचान कर उसी के अनुरूप नीतियां बनाना समय की मांग है, ताकि भेड़ पालन क्षेत्र की वास्तविक क्षमता का उपयोग किया जा सके।
‘गरीबों का एटीएम’ है भेड़ पालन
सेमिनार को संबोधित करते हुए डीएएचडी के सचिव श्री नरेश पाल गंगवार ने कहा कि डेयरी और पोल्ट्री क्षेत्रों की तरह भेड़ और बकरी क्षेत्र में भी मजबूत एकीकृत मूल्य शृंखला विकसित करने की आवश्यकता है। उन्होंने बताया कि भारत वैश्विक दूध उत्पादन में लगभग 25 प्रतिशत का योगदान देता है और अंडा उत्पादन में दुनिया में दूसरे स्थान पर है।
उन्होंने भेड़ और बकरी क्षेत्र को ‘गरीबों का एटीएम’ बताते हुए कहा कि यह ग्रामीण आजीविका का एक महत्वपूर्ण साधन है। उन्होंने शोध आधारित समाधानों को सीधे किसानों तक पहुंचाने और मांस एवं ऊन की उत्पादकता बढ़ाने पर जोर दिया। साथ ही रोग नियंत्रण के लिए पीपीआर टीकाकरण कार्यक्रमों को और मजबूत करने की आवश्यकता बताई।
तकनीकी सत्र और न्यूजलेटर का विमोचन
सेमिनार के दौरान ‘सीएसडब्ल्यूआरआई एट ए ग्लांस’ नामक न्यूजलेटर का विमोचन भी किया गया। इसके अलावा ऊन, मटन, दूध, भेड़ के आनुवंशिक संसाधन और भेड़ पालन में उद्यमिता पर आधारित तकनीकी सत्र आयोजित किए गए, जिनमें किसानों, उद्यमियों और विशेषज्ञों ने भेड़ क्षेत्र से जुड़े मुद्दों पर गहन विचार-विमर्श किया।
सेमिनार में यह सहमति बनी कि भेड़ पालन क्षेत्र में निवेश, तकनीक, प्रशिक्षण और सरकारी सहायता के माध्यम से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती दी जा सकती है।
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