आओ जैविक खेती की ओर लौटे
लेखक: श्रीमती कल्पना पटेल, उ.मा.शिक्षक
25 अक्टूबर 2024, नई दिल्ली: आओ जैविक खेती की ओर लौटे – भारत में प्राचीन समय में एक कहावत थी ।”उत्तम खेती मध्यम वान ।अधम चाकरी भीख निदान” यानी सरल शब्दों में कहें तो “सबसे बेहतर काम खेती करना है। फिर व्यापार करना है। फिर कहीं नौकरी और अंत में कुछ ना मिले तो भीख मांग कर अपना गुजारा करना।” लेकिन आज की दौर में तो इसका उल्टा ही है I लोग नौकरी करना ज्यादा पसंद करते हैं । बजाय खेती करने के और जो किसान खेती कर भी रहे हैं तो उन्हें भी खेती छोड़ने को मजबूर होना पड़ रहा है। कारण अनाज उत्पादन में लागत ज्यादा और अनाज उत्पादन कम। लेकिन विगत कुछ वर्षों में भारत में खेती की नई तकनीकी अपनाई जा रही है। जिसे जैविक खेती कहा जाता है। इसमें अनाज उत्पादन में लागत कम और अनाज उत्पादन ज्यादा होता है I

जैविक खेती फसल उगाने की वह नई तकनीकि है। जिसमें रासायनिक खादों व कीटनाशकों का प्रयोग करने की वजह जैविक खाद ,हरी खाद ,गोबर खाद,गोबर गैस खाद ,केंचुआ खाद का प्रयोग किया जाता है । खेती करने के इस नए तरीके को “जैविक खेती”कहा जाता है। जैविक खेती रसायनों से होने वाले दुष्प्रभावों से पर्यावरण का बचाव करती है। भूमि की उपजाऊ क्षमता में वृद्धि करती है। फसलों की पैदावार में बढ़ोतरी करती है ।जैविक खेती विधि द्वारा उगाया गया अनाज उच्च गुणवत्ता के लिए हुए होता है। जो स्वास्थ्य की दृष्टि से अति उत्तम होता है।
जैविक खेती अपनाने का मुख्य कारण है कि सन् 1966-67 के बाद खेती के क्षेत्र में अपनाई गई वह पश्चिमी तकनीक जिसे “हरित क्रांति” के नाम से जाना जाता है।खेती करने के इस तरीके ने खेतों को फसलों से लहलहा तो दिया। लेकिन धीरे-धीरे मिट्टी की सारी उर्वरा शक्ति हड़प ली। फसल तो अच्छी हुई ,लेकिन साथ में इसने कई घातक बीमारियां भी पैदा कर दी। भारत में 60 के दशक में हरित क्रांति का नाम खूब गुंजा। तब इसका उद्देश्य था, देश को भुखमरी से मुक्ति दिलाना । ज्यादा फसल उगाने के लिए खेतों में अत्यधिक रासायनिक खादों तथा कीटनाशकों का प्रयोग किया जाने लगा ।जिससे फसल की पैदावार में अप्रत्याशित वृद्धि हुई जिसे हरित क्रांति का नाम दिया गया। रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग ने भले ही पैदावार में बहुत बढोतरी की हो लेकिन जमीन की उर्वरकता को खत्म ही कर दिया। अधिक से अधिक उत्पादन पाने के लिए रासायनिक खादों और जहरीले कीटनाशकों का उपयोग किया गया। जिससे प्रकृति के जैविक और अजैविक पदार्थों के बीच आदान-प्रदान का चक्र प्रभावित होता गया और धीरे-धीरे भूमि की उर्वरा शक्ति नष्ट हो गई । रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग से वातावरण तो प्रदूषित होता ही है। इससे लोगों के स्वास्थ्य में बुरा प्रभाव पड़ता है। प्रकृति प्रदत्त स्त्रोत स्वाहा से हो गए। जमीन की शक्ति कम हो गई और खेत धीरे-धीरे बंजर से हो गए और खेती करने में लागत ज्यादा पैदावार कम होने लगी और यही कारण है कि अब आम किसान आत्महत्या कर रहा हैं। इस पर गंभीरता से सोचने और कदम उठाने की आवश्यकता है। आज दुनिया भर में खेती, पर्यावरण , और प्राकृतिक संसाधनों को लेकर फिर से एक नई बहस छिड़ चुकी है। यह बहस संसाधनों में पड रहे तकनीकी के असर को लेकर है। इसलिए लोग खेती के इस नए तरीके “जैविक खेती”को अपना रहें हैं। ताकि हमारी आने वाली पीढ़ी को उपजाऊ भूमि,अच्छा अनाज व साफ स्वस्थ पर्यावरण मिल सके जैविक खेती का उद्देश्य मिट्टी की उर्वरा शक्ति बनाए रखने के साथ-साथ फसलों का उत्पादन भी बढ़ाना है वातावरण को प्रदूषित मुक्त बनाना है। मिट्टी की गुणवत्ता को कायम रखना और प्राकृतिक संसाधनों को बचाना।
- मानव स्वास्थ्य संबंधी बीमारियों को दूर करना।
- उत्पादन को अधिक और लागत को कम करना।
जैविक खेती के कई फायदे होते हैं । इससे भूमि की उर्वरक क्षमता बनी रहती है ।और जैविक खाद का प्रयोग करने से मिट्टी की उर्वरक क्षमता की गुणवत्ता में निरंतर सुधार होता रहता है। इस प्रकार की खेती में सिंचाई की आवश्यकता कम होती है और भूमि की जल धारण क्षमता भी बढ़ती है ।जैविक खाद के प्रयोग से वातावरण प्रदूषण से मुक्त होता है । अनेक बीमारियों से इंसान पशु पक्षियों का बचाव होता है। फसल की अच्छी पैदावार होती है। जैविक खेती के द्वारा उगाया गया अनाज उच्च गुणवत्ता लिए होता है ,जो स्वास्थ्य की दृष्टि से अति उत्तम होता है। जैविक खेती के द्वारा उगाए गए अनाज का मूल्य भी अधिक होता है। जिससे किसान की आमदनी में बढ़ोतरी होती है यानि कम लागत में अच्छा मुनाफा। मिट्टी की दृष्टि से भी जैविक खाद लाभ प्रद होता है। भूमि की जल धारण क्षमता बढ़ती है भूमि से पानी का वाष्पीकरण कम होता है । जैविक खाद का प्रयोग करने से मित्र कीट भी नष्ट नहीं होते तथा मित्र कीटों व जीवाणु की संख्या में बढ़ोतरी होती है। जो भूमि की गुणवत्ता में निरंतर सुधार करते रहतें हैं । भूमि में नाइट्रोजन स्थिरीकरण बढ़ता है तथा मिट्टी का कटाव भी कम होता है।
जैविक खेती पर्यावरण की दृष्टि से भी बहुत लाभकारी है। इससे भूमि के जल स्तर में वृद्धि होती है ।मिट्टी खाद्य पदार्थ और जमीन में पानी के माध्यम से होने वाले प्रदूषण में कमी आती है। खाद बनाने के लिए कचरे का उपयोग करने से बीमारियों में भी कमी आती है। फसल उत्पादन की लागत में कमी और आय में वृद्धि होती है।
भारत को कृषि प्रधान देश माना जाता है। भारत में कृषि परंपरा का इतिहास बहुत पुराना है और इस देश की 70% जनता अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर है । जैविक खेती रसायनों से होने वाली दुष्प्रभाव से पर्यावरण का बचाव करती है। भूमि की उपजाऊ क्षमता में वृद्धि करती है। फसलों की पैदावार में बढ़ोतरी होती है ।अतः हमें खेतों में उपलब्ध जैविक साधनों की मदद से खाद ,कीटनाशक दवा, चूहा नियंत्रण के लिए दवा इत्यादि बनाकर उनका उपयोग करना चाहिए। इन तरीके के उपयोग से फसल में भी अधिक पैदावार मिलेगी और अनाज फल सब्जियां भी विष मुक्त व उत्तम होंगी। जिससे हमारा स्वास्थ्य भी उत्तम रहेगा।
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