गेहूं की उन्नत प्रजातियों से उत्पादकता बढ़ायें
लेखक: डॉ. कैलाश चन्द्र शर्मा, प्रधान वैज्ञानिक, भा.कृ.अनु.प.-भा. कृषि अनुसंधान संस्थान, क्षेत्रीय केन्द्र, इन्दौर
02 नवंबर 2024, नई दिल्ली: गेहूं की उन्नत प्रजातियों से उत्पादकता बढ़ायें –
खेत की तैयारी
खरीफ की फसल कटते ही खेत की गहरी जुताई अवश्य करें तथा फसल अवशेषों को जलायें नहीं बल्कि रोटावेटार आदि से मिट्टी में मिला दें ताकि बुवाई से पूर्व ये सड़ सकें तथा गेहूँ की फसल की पोषक तत्वों की पूत्र्ति कर सकें। इसके बाद एक या दो बार तवे वाले हैरो से जुताई करके पाटा चलायें व खेत को एक-सार करके बुवाई के लिये तैयार करें। यदि सम्भव हो तो आखिरी जुताई के समय गोबर की सड़ी खाद या कम्पोस्ट खाद 10 से 15 टन/हे. की दर से डालें ताकि जमीन में कार्बन तत्व की कमी न होने पाये।
बीज एवं बीज की बुवाई
तालिका में संसाधनों के हिसाब से तथा आवश्यकता के अनुरुप प्रजातियाँ जो मध्य प्रदेश के लिए हैं, दी गई हैं। हमेशा बीज अच्छे स्त्रोत से ही खरीदें। प्रथम बार में थोड़ी मात्रा में बीज खरीद कर, अपना बीज बनायें तथा अगले वर्षों के लिए उसे सुरक्षित रखें ताकि बार-बार महँगा बीज खरीदने से बचा जा सके। बीज दर के लिए हमेशा याद रखें कि बड़ा दाना वाला बीज की दर अधिक रखी जाती है तथा छोटे दाने के लिए कम। इसलिये 1000 दाने गिनें इसका वजन करें, जितने ग्राम वजन होगा उतने ही किलोग्राम बीज एक एकड़ क्षेत्र के लिये पर्याप्त होगा। देर से बुवाई करने पर बीज दर 20-25 प्रतिशत तक बढ़ा दें। बुवाई हमेशा लाइन में तथा लाइन से लाइन की दूरी 22.5 सेमी. पर करें। देर से बोई गई फसल की लाइन की दूरी 20 सेमी पर करें।
खाद एवं उर्वरक
वर्षा आधारित प्रजातियों में पूरी उर्वरकों की मात्रा को बुवाई के समय डाल दें। कम पानी वाली प्रजातियों में 50 प्रतिशत नत्रजन तथा स्फुर व पोटाश की पूरी मात्रा बूवाई के समय तथा आधी बची नत्रजन की मात्रा प्रथम सिंचाई पर सिंचाई पूर्व अथवा सिंचाई के बाद पर्याप्त नमी होने पर डालें। पूर्ण सिचिंत प्रजातियों में 1/3 नत्रजन तथा स्फुर व पोटाश की पूरी मात्राएं बुवाई के समय तथा नत्रजन की शेष 2/3 मात्रा प्रथम व द्वितीय सिंचाई के बाद पर्याप्त नमी होने पर प्रयोग करें।
सिंचाई
मध्य क्षेत्र में सूखे खेत में बुवाई उपरान्त तुरन्त सिंचाई की सिफारिश की जाती है। इसके बाद पानी के उपलब्धता व प्रजाति की आवश्यकता के अनुसार सिंचाई करें। एक सिंचाई उपलब्ध होने पर 35-40 दिन की फसल में सिंचाई करें, दो सिंचाई उपलब्ध हों तो पहली 35-40 दिन बाद व दूसरी 70-80 दिन बाद करें। तीन सिंचाई होने पर पहली 20-21 दिन बाद, दूसरी 50-55 दिन बाद तथा तीसरी 80-85 दिन बाद करें। पूर्ण सिंचित होने पर 20-22 दिन के अन्तराल पर सिंचाई दें।
खरपतवार नियंत्रण
गेहूँ की फसल को पहले 35 दिन तक खरपतवार विहीन रखना अति आवश्यकक है, यही समय अधिक क्रांतिक होता है। बुवाई के तुरन्त बाद पेंडीमिथालिन की 1.0 ली. सक्रिय तत्व/हे. मात्रा का छिड़काव करने से दोनों तरह के खरपतवार खत्म होते हैं। यदि आवश्यक हो तो 4 हफ्ते की फसल पर चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के लिये 2,4-ड़ी 0.75 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व या मेटसल्फ्यूरॉन मिथाइल 4 ग्राम/हे. सक्रिय तत्व का छिड़काव करें। यदि संकरी पत्ती वाले खरपतवार हैं तो क्लोडिनेफॉप प्रोपरजिल 60 ग्राम सक्रिय तत्व या सल्फोसल्फ्यूरॉन 25 ग्राम सक्रिय तत्व/हे. का छिड़काव करें। यदि दोनों प्रकार के खरपतवार हों तो रैडीमिक्स खरपतवारनाशक जैसे वेस्टा या एटलान्टिस 400 ग्राम/हेक्टेयर की दर से 400-500 लीटर पानी प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करें।
फसल सुरक्षा
यदि बीज उचित स्थान/संस्था से खरीदा गया है तो गेहूँ की फसल में प्राय: कीट व व्याधि का प्रकोप नहीं होता है। इस समय पुरानी अधिकतर गेहूँ की प्रजातियाँ बीमारियों विशेषकर तना एवं पत्तियों के रतुआ के प्रति प्रतिरोधक क्षमता खो चुकी हैं तथा ब्लाइट (पत्तियों) का प्रकोप भी देखा जा रहा है। यदि पत्तियों या तने का रतुआ (रस्ट) का प्रकोप हो तो तुरन्त 10 दिन के अंतराल पर 0.1 प्रतिशत का प्रोपिकोनाजोल (टिल्ट 25 ईसी) का छिड़काव कम से कम दो बार करें। यह दवा ब्लाइट के लिये भी प्रभावी है। कीट पर अन्य व्याधि का प्रकोप हो तो तुरन्त विशेषज्ञ सलाह से उपचार करें।
कटाई एवं मडा़ई
चन्दौसी/शरबती गेहूँ की प्रजातियों को पकने के बाद अधिक समय तक खड़ा न छोडं़े, इसके झडऩे की समस्या हो सकती है। अत: फसल सूखनी शुरु होने पर दांत के नीचे दाने से कट की आवाज आने पर तुरन्त कटाई कर लें। 4-5 दिन अच्छी धूप खेत में ही लगाने के बाद अच्छे थ्रेसर से थ्रेसिंग कर लें, जिसमे दाना टूटे नहीं व कचरा भी न आये। इससे बाजार में भाव कम मिलते हैं।
उपज व भण्डारण
वर्षा आधारित प्रजातियों की पैदावार 18-25 क्विंटल, सीमित सिंचाई वाली प्रजातियों भी 25-40 क्विंटल तथा पूर्ण सिंचित फसल की औसतन पैदावार 45-55 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती हैं। यदि थोड़े समय के लिये भण्डारण करना हो तो नमी मुक्त तथा प्रकाशयुक्त स्थान में पॉलीथिन थैलों में बीज का भण्डारण करें। वहीं 6 महीने या अधिक के लिये भण्डारण करना हो तो उन्हें ऐसे साधन में करें जिसे वायु अवरुध किया जा सके तथा उसमें सल्फॉस की टिकिया सूती कपड़े में बांधकर रखें। इसके लिए गेहूँ को थोड़े बड़े छेद वाले छलनें से छान लें।
गेहूँ की उन्नतशील प्रजातियाँ एवं सस्य क्रियाएं | ||||
बुवाई का समय | प्रजातियाँ | खाद की मात्रा (नत्रजनः स्फुरः पोटाश कि.ग्रा./हे.) | सिंचाई की संख्या | |
शरबती/चन्दौसी (एस्टीवम) | मालवी/कठिया (डयूरम) | |||
अ) समय पूर्व (अगेती) बुवाई 20 अक्टूबर से 5 नवम्बर | एचआई 1500 (अमृता) एचआई 1531 (हर्षिता) एचआई 1605 (पूसा उजाला) एचडी.2987 (पूसा बहार) एम-पी-3288, जी-डब्ल्यू 273 डीबीडब्लू 110 एचआई 1655 (पूसा हर्षा | एचआई 8627 (मालवकीर्ति) एच.आई. 8777 (पूसा हीट 8777 (आई) एचआई 8802, एचआई 8805 एचआई 8823 (पूसा प्रभात) एचआई 8830 (पूसा कीर्ति) | 60:30:15 100:50:25 | 1-3 सिंचाई |
(ब) समय से बुवाई (10 से 25 नवम्बर) | एचआई 1544 (पूर्णा) जीडब्ल्यू 322 जीडब्ल्यू 366 एचआई 1636 (पूसा वकुला) एचआई 1650 (पूसा ओजस्वी | एचआई 8663 (पोषण) एचआई 8713 (पूसा मंगल) एचआई 8737 (पूसा अनमोल) एचआई 8759 (पूसा तेजस) | शरबती/चन्दौसी 120:60:30 मालवी/कठिया 140:70:35 | 4-5 सिंचाई |
(स) देर से बुवाई (पिछेती) (1 दिसम्बर- 05 जनवरी) | एचआई 1633 (पूसा वाणी) एचआई 1634 (पूसा अहिल्या) एचडी 2932 (पूसा 111) जी-डब्ल्यू 173 एचडी 2864 | – | 100:50:25 | 4-5 सिंचाई |
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