पिछले 10 सालों में यूरिया का उत्पादन 35% बढ़ा, डीएपी और एनपीके में भी 44% का इजाफा : केंद्र सरकार
24 अगस्त 2025, नई दिल्ली: पिछले 10 सालों में यूरिया का उत्पादन 35% बढ़ा, डीएपी और एनपीके में भी 44% का इजाफा : केंद्र सरकार – देश में किसानों को समय पर और पर्याप्त मात्रा में उर्वरक उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी उर्वरक विभाग (डीओएफ) की है। हर फसल सीजन से पहले कृषि और किसान कल्याण विभाग (डीएएंडएफडब्ल्यू) राज्यों की जरूरत के हिसाब से उर्वरक की मांग का अनुमान लगाता है। इन अनुमानों के आधार पर, उर्वरक विभाग हर महीने राज्यों और कंपनियों के हिसाब से आपूर्ति की योजना बनाता है।
पिछले 10 सालों में भारत ने घरेलू उर्वरक उत्पादन और अंतरराष्ट्रीय सहयोग में बड़ी प्रगति की है, जिससे देश की खाद्य सुरक्षा मजबूत हुई है। यूरिया का उत्पादन 2013-14 में 227.15 लाख मीट्रिक टन था, जो 2024-25 में बढ़कर 306.67 लाख मीट्रिक टन हो गया है। यह 35 प्रतिशत की बढ़त को दिखाता है। इसी तरह, डीएपी और एनपीकेएस का कुल उत्पादन 110.09 लाख मीट्रिक टन से बढ़कर 158.78 लाख मीट्रिक टन हो गया है, जो 44 प्रतिशत की वृद्धि है। यह सरकार के आत्मनिर्भरता बढ़ाने के प्रयासों को दर्शाता है।
वैश्विक चुनौतियों के बीच भारत में उर्वरकों की रिकॉर्ड आपूर्ति
हाल की अंतरराष्ट्रीय स्थिति ने भारत में उर्वरकों की आपूर्ति को प्रभावित किया है। लाल सागर में चल रहे संकट की वजह से उर्वरकों की आपूर्ति में रुकावट आई है। शिपमेंट को केप ऑफ गुड होप के रास्ते भेजना पड़ा, जिससे रास्ता 6,500 किलोमीटर लंबा हो गया और माल पहुंचने में ज्यादा समय लगने लगा, खासकर डीएपी के मामले में। इसके अलावा, रूस-यूक्रेन युद्ध और इजराइल-ईरान युद्ध ने भी अंतरराष्ट्रीय बाजार में उर्वरकों की कीमतों को बढ़ा दिया है।
इन चुनौतियों के बावजूद भारत सरकार ने सूझबूझ और दूरदर्शिता दिखाई है। समय पर कूटनीतिक बातचीत, लॉजिस्टिक प्रबंधन और दीर्घकालिक समझौते (एलटीए) से यह सुनिश्चित किया गया है कि किसानों को किसी तरह की कमी का सामना न करना पड़े। भारत की उर्वरक कंपनियों और मोरक्को के संघ के बीच 25 लाख मीट्रिक टन डीएपी और टीएसपी की आपूर्ति तय की गई है। इसके अलावा, जुलाई 2025 में भारत और सऊदी अरब के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर हुए हैं, जिसके तहत 2025-26 से शुरू होकर अगले पांच वर्षों तक हर साल 31 लाख मीट्रिक टन डीएपी की आपूर्ति की जाएगी।
खरीफ 2025 में उर्वरकों की स्थिति संतोषजनक
ये अंतरराष्ट्रीय सहयोग भारत की लंबी अवधि की उर्वरक जरूरतों को पूरा करने और समय पर आपूर्ति सुनिश्चित करने में मदद करते हैं। खरीफ सीजन 2025 में अब तक उर्वरकों की उपलब्धता संतोषजनक बनी हुई है। 143 लाख मीट्रिक टन यूरिया की जरूरत के मुकाबले 183 लाख मीट्रिक टन यूरिया उपलब्ध है, और अब तक 155 लाख मीट्रिक टन की बिक्री हो चुकी है। डीएपी के मामले में, 45 लाख मीट्रिक टन की जरूरत थी, जबकि 49 लाख मीट्रिक टन उपलब्ध है और 33 लाख मीट्रिक टन की बिक्री हुई है। एनपीके की जरूरत 58 लाख मीट्रिक टन थी, जबकि उपलब्धता 97 लाख मीट्रिक टन रही और अब तक 64.5 लाख मीट्रिक टन की बिक्री हो चुकी है।
इन आंकड़ों से साफ है कि इस सीजन में उर्वरकों की पर्याप्त उपलब्धता रही है। 20 अगस्त 2025 तक, यूरिया की बिक्री पिछले साल की इसी अवधि के मुकाबले 13 लाख मीट्रिक टन ज्यादा रही है। बिक्री में इस बढ़त के बावजूद, उर्वरक विभाग ने घरेलू उत्पादन और अंतरराष्ट्रीय खरीद के जरिए यूरिया की निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित की है।
किसानों को महंगी कीमतों से बचाने के लिए सब्सिडी योजना
भारत सरकार किसानों को महंगे अंतरराष्ट्रीय दामों से बचाने के लिए भारी सब्सिडी दे रही है। इसका मकसद यह है कि उर्वरक किसानों को सही समय पर और किफायती दामों में मिल सके। यूरिया 45 किलोग्राम के एक बैग पर अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) 242 रुपये तय किया गया है (नीम कोटिंग और टैक्स को छोड़कर)। इसी तरह, डीएपी को 1350 रुपये प्रति बैग की दर से उपलब्ध कराने के लिए सरकार ने विशेष पैकेज दिया है, जिसमें लागत की भरपाई, जीएसटी रिफंड, मुनाफे का प्रावधान और अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत बढ़ने की भरपाई शामिल है।
सरकार हर उभरती चुनौती से निपटने के लिए राज्य सरकारों, बंदरगाह अधिकारियों, रेल मंत्रालय और उर्वरक कंपनियों के साथ लगातार संपर्क में है। राज्यों को उर्वरकों की कालाबाजारी, जमाखोरी, अधिक दाम वसूलने और गलत इस्तेमाल के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की सलाह दी गई है। अप्रैल 2025 से अब तक 1,99,581 निरीक्षण और छापेमारी की गई है। 7,927 कारण बताओ नोटिस जारी किए गए हैं, 3,623 लाइसेंस रद्द या निलंबित हुए हैं और 311 एफआईआर आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत दर्ज की गई हैं।
भारत सरकार की पूरी कोशिश है कि सभी किसानों को समय पर और समान रूप से उर्वरक मिल सके। यह न सिर्फ कृषि क्षेत्र की स्थिरता और किसानों के हित में है, बल्कि देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में सरकार की मजबूत प्रतिबद्धता को भी दर्शाता है।
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