इक्रीसेट ने सोलर-पावर्ड जलकुंभी हार्वेस्टर के लिए पहली औद्योगिक डिजाइन ग्रांट हासिल की
11 दिसंबर 2024, हैदराबाद, भारत: इक्रीसेट ने सोलर-पावर्ड जलकुंभी हार्वेस्टर के लिए पहली औद्योगिक डिजाइन ग्रांट हासिल की – इक्रीसेट(ICRISAT) ने भारत में अपना पहला औद्योगिक डिज़ाइन ग्रांट प्राप्त किया है। यह ग्रांट उसके वैज्ञानिकों द्वारा विकसित सोलर-पावर्ड जलकुंभी हार्वेस्टर के लिए दिया गया है। यह हार्वेस्टर सरल, किफायती और अर्ध-कुशल या अकुशल व्यक्तियों द्वारा भी आसानी से संचालित किया जा सकता है।
इक्रीसेट द्वारा इन-हाउस डिज़ाइन और निर्मित यह सौर ऊर्जा संचालित उपकरण मात्र ₹2,00,000 से कम लागत में उपलब्ध है, जो ग्रामीण कृषि समुदायों के लिए आदर्श है। इसकी कीमत उन्नत मशीनों की तुलना में 10 गुना कम है। यह उपकरण लागत, समय और श्रम में 50–60% तक की बचत करता है और स्वच्छ ऊर्जा के उपयोग को प्राथमिकता देता है।
जलकुंभी की समस्या का समाधान
ग्रामीण तालाबों में जलकुंभी की अधिकता से पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित होता है, मत्स्य पालन को नुकसान होता है, और नहरों में अवरोध उत्पन्न होता है। यह तेजी से फैलने वाला पौधा अपने बीजों के कारण लंबे समय तक जीवित रहता है। केवल 8–10 पौधे 6–8 महीनों में 6 लाख से अधिक पौधों में बदल सकते हैं।
रासायनिक और जैविक विधियों से जलकुंभी हटाने में काफी खर्च होता है और ये केवल अल्पकालिक समाधान प्रदान करते हैं। जलकुंभी पर स्थायी नियंत्रण पाने का एकमात्र तरीका इसका नियमित रूप से मैनुअल या यांत्रिक कटाई है।
इक्रीसेट के कार्यवाहक महानिदेशक डॉ. स्टैनफोर्ड ब्लेड ने कहा, “जलकुंभी का संक्रमण एक वैश्विक पर्यावरणीय चुनौती है। यह किफायती हार्वेस्टर ग्रामीण समुदायों की जरूरतों को ध्यान में रखकर पर्यावरण अनुकूल समाधान प्रदान करने की हमारी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।”
‘वेस्ट टू वेल्थ‘ में नई पहल
इक्रीसेट का यह हार्वेस्टर “वेस्ट टू वेल्थ” परियोजना का हिस्सा है, जिसे ओडिशा सरकार के कृषि और किसान सशक्तिकरण विभाग के समर्थन से विकसित किया गया है। इस परियोजना का उद्देश्य जलकुंभी बायोमास का एरोबिक कंपोस्टिंग के माध्यम से स्थायी उपयोग करना है।
इक्रीसेट के अनुसंधान कार्यक्रम निदेशक डॉ. एम.एल. जाट ने कहा, “हमारे प्रयोगों से पता चला कि यह हार्वेस्टर मात्र 2-3 दिनों में 3 एकड़ (1.2 हेक्टेयर) तालाब से 72,000 किलोग्राम बायोमास हटा सकता है। वहीं, मैनुअल कटाई में 10–20 मजदूरों को 18–20 दिन लगते हैं।”
हार्वेस्टर से प्राप्त बायोमास को स्थानीय स्तर पर प्रोसेस करना आवश्यक है।
डॉ. अरविंद कुमार पाढ़ी, प्रमुख सचिव, कृषि एवं किसान सशक्तिकरण विभाग, ओडिशा सरकार ने कहा, “महिला स्वयं सहायता समूह (SHGs) बायोमास को कंपोस्ट, मछली चारे या हस्तनिर्मित कागज में बदलने में अहम भूमिका निभा सकते हैं। यह महिला-प्रमुख उद्यम वैकल्पिक आजीविका के साथ-साथ आंतरिक मत्स्य पालन को बढ़ावा दे सकते हैं, जिससे सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय प्रभाव बढ़ेंगे।”
इस नवाचार के पीछे की टीम
इस हार्वेस्टर के विकास का नेतृत्व परियोजना के प्रमुख अन्वेषक डॉ. अविराज दत्ता ने किया, जिनका समर्थन इक्रीसेट के डॉ. मंगी लाल जाट, डॉ. रमेश सिंह, श्री हरिओम सिंह, श्री संतोष कुमार राजा, श्री योगेश कुमार, और श्री जिनिथ महाजन ने किया।
इक्रीसेट के इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी (IP) कार्यालय ने डिज़ाइन रजिस्ट्री, भारत के साथ आवेदन प्रक्रिया को सुनिश्चित किया और पूरी प्रक्रिया में सावधानी बरती।
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