राष्ट्रीय कृषि समाचार (National Agriculture News)

“किसानों को खुद फैसला करने का अधिकार है”: जीन एडिटेड धान लाइनों पर लगे पक्षपात के आरोपों पर ICAR का जवाब

27 नवंबर 2025, नई दिल्ली: “किसानों को खुद फैसला करने का अधिकार है”: जीन एडिटेड धान लाइनों पर लगे पक्षपात के आरोपों पर ICAR का जवाब – भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने ‘कोएलिशन फॉर ए जीएम-फ्री इंडिया’ द्वारा लगाए गए उन आरोपों को सख्ती से खारिज कर दिया है, जिनमें कहा गया था कि जीन एडिटेड धान की दो लाइनों—पुसा DST-1 और DRR धन 100 (कमला)—के मूल्यांकन में पक्षपात किया गया। ICAR ने स्पष्ट किया कि आरोप “ग़ैर-वैज्ञानिक, भ्रामक और तथ्यों के विपरीत” हैं।

AICRPR क्या है और ट्रायल कैसे होते हैं?

ICAR ने बताया कि ऑल इंडिया कोऑर्डिनेटेड रिसर्च प्रोजेक्ट ऑन राइस (AICRPR) देश में धान किस्मों के मूल्यांकन की सबसे विश्वसनीय और पारदर्शी व्यवस्था है, जो 1965 से लगातार चल रही है। हर वर्ष देशभर के वैज्ञानिक लगभग 1,200 धान की नई लाइनों को परीक्षण के लिए भेजते हैं। इन सभी प्रविष्टियों को ब्लाइंड-कोड करके लगभग 100 परीक्षण केंद्रों पर भेजा जाता है ताकि किसी भी प्रकार का पूर्वाग्रह न रहे।

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हर लाइन को 2–3 वर्षों तक विभिन्न जलवायु क्षेत्रों और परिस्थितियों में जांचा जाता है। केवल उन केंद्रों का डेटा शामिल किया जाता है जहाँ ट्रायल विशेषज्ञ टीम की निगरानी में सही तरीके से संचालित हुए हों और आंकड़े सांख्यिकीय रूप से विश्वसनीय हों। भारत में आज उगाई जा रही लगभग हर प्रमुख धान किस्म इसी प्रक्रिया के तहत विकसित और रिलीज हुई है।

पुसा DST-1 और DRR धन 100 को NIL/GEL ट्रायल में उनके मूल अभिभावक किस्मों के साथ तुलना कर मूल्यांकित किया गया, और यह मूल्यांकन मुख्य रूप से उनके टार्गेट परफॉर्मेंस एनवायरनमेंट (TPE) यानी उन राज्यों/क्षेत्रों में किया गया जहाँ मूल किस्में (MTU1010 और सांबा महासुरी) पहले से अधिसूचित और लोकप्रिय हैं।

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पुसा DST-1 का प्रदर्शन: साधारण परिस्थितियों में समकक्ष, तनाव में स्पष्ट रूप से बेहतर

पुसा DST-1, लोकप्रिय दक्षिण भारतीय किस्म MTU1010 का जीन एडिटेड संस्करण है, जिसे क्षारीयता और लवणता सहनशीलता के लिए विकसित किया गया है। ICAR के अनुसार सामान्य परिस्थितियों में इस लाइन का मूल किस्म के बराबर रहना स्वाभाविक है, जबकि असली लाभ तनावग्रस्त खेतों में देखा जाता है।

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AICRPR के दक्षिणी क्षेत्र (Zone VII), जो इसका TPE है, में पुसा DST-1 ने क्षारीयता, इनलैंड सॉलिनिटी और तटीय लवणता जैसी परिस्थितियों में MTU1010 की तुलना में स्पष्ट और सांख्यिकीय रूप से महत्वपूर्ण उपज बढ़त दिखाई। क्षारीय स्थितियों में पुसा DST-1 की औसत उपज 3731 किग्रा/हेक्टेयर रही, जबकि MTU1010 की 3254 किग्रा/हेक्टेयर।

ICAR ने कहा कि GM-फ्री कोएलिशन ने देशभर के आंकड़ों को मिलाकर गलत निष्कर्ष निकाले, जबकि वैज्ञानिक मूल्यांकन हमेशा TPE आधारित होता है।

DRR धन 100 (कमला): अधिक उपज और जल्दी परिपक्वता

Samba Mahsuri के जीन एडिटेड संस्करण DRR धन 100 (कमला) का तीन सीज़न—खरीफ 2023, रबी 2023-24 और खरीफ 2024—के दौरान मूल्यांकन किया गया। इसके परिणाम लगातार सकारात्मक रहे, विशेष रूप से Zone VII (TPE) में।

खरीफ 2023 में DRR धन 100 ने औसत 5270 किग्रा/हेक्टेयर उपज दी, जबकि Samba Mahsuri की उपज 4829 किग्रा/हेक्टेयर थी। इसके अलावा यह लगभग 12 दिन पहले परिपक्व हुआ—जो किसानों के लिए काफी लाभकारी है। रबी 2023-24 में भी इसने 21.95% अधिक उपज दर्ज की और जल्दी फूल आने का लाभ भी देखा गया।

ICAR के अनुसार कोएलिशन ने रबी सीज़न के सभी सकारात्मक आंकड़ों को अनदेखा कर भ्रम पैदा करने की कोशिश की।

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डेटा चयन, पारदर्शिता और प्रक्रिया पर ICAR का रुख

ICAR ने स्पष्ट किया कि NIL/GEL परीक्षणों में सिर्फ उन्हीं लोकेशनों का डेटा इस्तेमाल होता है, जहाँ तनाव स्तर उपयुक्त हों और परीक्षण प्रक्रिया सही तरीके से पूरी हुई हो। पूरे देश का औसत लेकर तुलना करना वैज्ञानिक दृष्टि से गलत है, क्योंकि कोई भी किस्म पूरे भारत में एक समान प्रदर्शन नहीं करती।

ICAR ने यह भी बताया कि पूरे ट्रायल का डेटा सार्वजनिक रूप से उपलब्ध है और हजारों किसान, वैज्ञानिक, नीति निर्माता और मीडिया प्रतिनिधि खुद इन प्रदर्शन प्लॉट्स का दौरा कर चुके हैं।

“अंतिम फैसला किसानों का होना चाहिए”

ICAR ने कहा कि जीन एडिटेड तकनीक का विरोध करना और वैज्ञानिक मूल्यांकन प्रणाली पर सवाल उठाना किसानों के हित में नहीं है। संस्था के अनुसार, “इन नई किस्मों का असली मूल्यांकन खेतों में किसान ही करेंगे। उन्हें यह अधिकार है कि वे अपने अनुभव के आधार पर इन किस्मों को अपनाएँ या न अपनाएँ।”

संस्था ने यह भी चेतावनी दी कि किसानों तक इन किस्मों की पहुँच रोकना “किसानों के प्रति अन्याय” होगा, क्योंकि इससे उन्हें अपनी परिस्थितियों में उपयुक्त तकनीक चुनने का अवसर नहीं मिलेगा।

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