खाद्य पदार्थों में मिलावट से निजात के लिए कुशल और विश्वसनीय तकनीकी की आवश्यकता
22 अक्टूबर 2024, नई दिल्ली: खाद्य पदार्थों में मिलावट से निजात के लिए कुशल और विश्वसनीय तकनीकी की आवश्यकता – अक्टूबर-नवंबर के महीने भारत में त्योहारी महीने होते हैं। वर्तमान में दीपावली का त्योहार नजदीक है और दीपावली के अवसर पर आजकल खाद्य पदार्थों में मिलावट जैसे आम हो गई है। दीपावली के त्योहार पर दूध,पनीर,मावा, खाद्य तेल, मसालों,घी, शहद और विशेषकर मिठाइयों में मिलावट की सबसे ज्यादा आशंका बनी रहती है। आइए सबसे पहले हम समझते हैं कि आखिर यह मिलावट होती क्या है ? दरअसल, खाद्य पदार्थों में मिलावट से तात्पर्य जानबूझकर खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता को खराब करने के कृत्य से है, जिसमें या तो खाद्य पदार्थों में अघोषित वैकल्पिक घटकों को मिलाया जाता है या प्रतिस्थापित किया जाता है, या कुछ मूल्यवान घटकों को हटा दिया जाता है। दूसरे शब्दों में यह बात कही जा सकती है कि खाद्य अपमिश्रण का तात्पर्य खाद्य पदार्थों में अघोषित वैकल्पिक घटकों को जोड़कर या बदलकर या कुछ मूल्यवान घटकों को हटाकर जानबूझकर खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता को खराब करने के कार्य से है। यह आमतौर पर किसी दिए गए खाद्य उत्पाद की लागत कम करने या उसका थोक बढ़ाने के लिए किया जाता है। दीपावली का त्योहार हिंदुओं का सबसे बड़ा त्योहार है और दीपावली पर हर परिवार कुछ न कुछ खरीदारी अवश्य ही करता है और मिलावट के फेर में आसानी से फंस जाता है। यह बहुत ही दुखद है कि आज बाजार में अमानक, अपमिश्रण मिलावटी, स्वास्थ्य के लिहाज से बहुत ही हानिकारक खाद्य पदार्थ धड़ल्ले से बिकते हैं। सच तो यह है कि दालें, अनाज से लेकर सब्जी व फल तक कोई भी खाद्य पदार्थ आज मिलावट से अछूते नहीं रहे हैं। हर तरफ मिलावट का जहर है। वास्तव में खाद्य अपमिश्रण, मिलावट से किसी भी उत्पाद/प्रोडक्ट्स की गुणवत्ता काफी कम हो जाती है और वह स्वास्थ्य को बहुत नुकसान पहुंचाते हैं, विशेषकर खाद्य पदार्थों में सस्ते रंजक, रासायनिक पदार्थ इत्यादि। मिलावट करने से कोई भी उत्पाद आकर्षक व सुंदर तो दिखने लगता है, परंतु उसकी पोषकता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।खाद्य अपमिश्रण से आंखों की रोशनी जाना, हृदय संबन्धित रोग, लीवर खराब होना, कुष्ठ रोग, आहार तंत्र के विभिन्न रोग, पक्षाघात व कैंसर जैसे खतरनाक व भयंकर रोग हो सकते हैं। आज के समय में अनेक स्वार्थी उत्पादक एवं व्यापारी कम समय में अधिक लाभ कमाने के लिए खाद्य सामग्री में अनेक सस्ते अवयवों की मिलावट करते हैं, जो हमारे शरीर पर दुष्प्रभाव डालते हैं। सच तो यह है कि व्यापार में बढ़ती प्रतिस्पर्धा के कारण मिलावट आज हर जगह देखने को मिलती है। कहीं दूध में पानी की मिलावट होती है, तो कहीं मसालों में रंगों की मिलावट होती है। यहां तक कि सब्जियां व फल भी रसायनों के प्रयोग से पकाये जाते हैं, नेचुरल सब्जियां व फल तो जैसे बाजार में अब रहे ही नहीं हैं, डिमांड भी बढ़ती जनसंख्या के कारण कुछ ज्यादा ही है, आपूर्ति करना कोई हंसी-खेल नहीं है। जानकारी देना चाहूंगा कि आज कैल्शियम कार्बाइड, सोडियम साइक्लामेट, साइनाइड और फार्मेलिन जैसे खतरनाक रसायनों का व्यापक रूप से हरे उष्णकटिबंधीय फलों को पकाने, उन्हें ताज़ा रखने और बिक्री तक संरक्षित करने के लिए उपयोग किया जाता है। बहरहाल, जानकारी देना चाहूंगा कि भारत सरकार द्वारा खाद्य सामग्री की मिलावट की रोकथाम तथा उपभोक्ताओं को शुद्ध आहार उपलब्ध कराने के लिए सन् 1954 में खाद्य अपमिश्रण अधिनियम (पीएफए एक्ट 1954) लागू किया गया था। वास्तव में, उपभोक्ताओं के लिए शुद्ध खाद्य पदार्थों की आपूर्ति सुनिश्चित करना स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की अहम् जिम्मेदारी है। भारत सरकार द्वारा 1954 में जो खाद्य अपमिश्रण रोकथाम अधिनियम बनाया गया, उसके मुख्य उद्देश्यों में क्रमशः जहरीले एवं हानिकारक खाद्य पदार्थों से जनता की रक्षा करना, घटिया खाद्य पदार्थों की बिक्री की रोकथाम करना तथा धोखाधड़ी प्रथा को नष्ट करके उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करना को शामिल किया गया है। हालांकि ऐसा भी नहीं है कि जिला स्तर पर जिला प्रशासन व खाद्य सुरक्षा विभाग की टीम आमजन को मिलावटी खाद्य पदार्थों से निजात दिलाने के लिए समय समय पर अभियान नहीं चलाती है, लेकिन मिलावट करने वाले राजनेताओं, रसूखदार लोगों, प्रशासन से मिलीभगत करके किसी न किसी बहाने से पुलिस की गिरफ्त से छूट जाते हैं और मिलावट का धंधा ज्यों का त्यों चलता रहता है और आमजन इसका शिकार बन जाता है और यही कारण है कि इस आशय की खबरें आये दिन अखबार व मीडिया की सुर्खियों में पढ़ने को मिलती रहती हैं। यहां पाठकों को यह भी जानकारी देना चाहूंगा कि खाद्य अपमिश्रण के परीक्षण के लिए मैसूर, पुणे, गाजियाबाद एवं कोलकाता में भारत सरकार द्वारा चार केन्द्रीय प्रयोगशालाएं व्यवस्थित रूप से स्थापित की गई हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि खाद्य पदार्थों में मिलावट की जांच के लिए इन केंद्रीय प्रयोगशालाओं के अतिरिक्त राज्य सरकार के खाद्य निरीक्षक, भोज्य पदार्थों के नमूने को सरकारी/ लोक विश्लेषक के पास भेजते हैं। आज खाद्यान्न गुड़, दालों, में कंकड़, पत्थर, मिट्टी,रेत, लकड़ी का बुरादा , सरसों के तेल में आर्जिमोन तेल, चना/अरहर की दाल/बेसन में खेसरी दाल, बेसन और हल्दी में पीला रंग/ मेटानिल, बादाम के तेल में मिनरल तेल, दालों में टेलकम पाउडर या एस्बेस्टस पाउडर, लाल मिर्च में रोडामाइन बी, हल्दी में लेड क्रोमेट/सिंदूर पेय पदार्थों में निषिद्ध रंग व रंजक, चांदी की वर्क के स्थान पर एल्युमिनियम की वर्क, चायपत्ती व काफी में लौह चूर्ण या रंग मिलाया जाना आम है। कुछ समय पहले ब्रांडेड मसालों में भी विभिन्न रसायनों की मात्रा जरूरत से ज्यादा पाई गई थी। आज दूध में सबसे ज्यादा मिलावट देखने को मिलती है क्यों कि दूध में पानी, स्टार्च, वाशिंग पाउडर, यूरिया तक मिलाया जाता है। केसर आज मिलावट आती है। काली मिर्च में पपीते के सूखे बीजों को मिलाया जाता है। साधारण नमक में चाक पाउडर, हींग में मिट्टी व रेत, नारियल तेल में खनिज तेल, जीरा में घास के बीज, चीनी के बूरे में चाक पाउडर, यहां तक कि चावलों तक में मिलावट का जहर घुला रहता है। जानकारी देना चाहूंगा कि चावल में प्लास्टिक और आलू से बने नकली चावलों की मिलावट होती है। लाल मिर्च में तो मिलावट के तौर पर ईंट या कबेलू का बारीक पिसा हुआ पाउडर प्रयोग किया जाता है, जिसमें कृत्रिम रंग भी मिला हुआ होता है। दालचीनी में मिलावट के तौर पर अमरूद की छाल मिलाई जाती है।
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