राष्ट्रीय कृषि समाचार (National Agriculture News)

खरपतवार प्रबंधन पर सामयिक राष्ट्रीय नीति की मांग, खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित हो

विशेषज्ञों, नीति निर्माताओं और एग्रो केमिकल उद्योग के शिखर नेतृत्व ने भारतीय कृषि में खरपतवार प्रबंधन की भूमिका पर चर्चा की

12 जून 2025, नई दिल्ली: खरपतवार प्रबंधन पर सामयिक राष्ट्रीय नीति की मांग, खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित हो – पीएचडी चैम्बर ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज़ (PHDCCI) की एग्रीबिजनेस समिति द्वारा चैम्बर मुख्यालय में आयोजित एक शीर्ष स्तरीय राउंडटेबल में उद्योग, शिक्षा जगत और सरकार के प्रमुख हितधारक एकत्र हुए, ताकि एक अत्यंत गंभीर मुद्दे- खरपतवार प्रबंधन पर राष्ट्रीय नीति की तत्काल आवश्यकता पर विचार किया जा सके।

‘खरपतवार प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय नीति: किसानों की आय और खाद्य सुरक्षा के लिए अनिवार्य’ विषय पर केंद्रित इस बैठक का उद्देश्य एक ऐसी रणनीति को आकार देना था जो भारतीय कृषि में बढ़ते खरपतवार संकट से निपटने के लिए समयानुकूल और प्रभावी हो।

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सामयिक कार्रवाई की पुकार

कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए, पीएचडीसीसीआई की एग्रीबिजनेस समिति के अध्यक्ष और धानुका एग्रीटेक लि. के चेयरमैन एमेरिटस डॉ. आर. जी. अग्रवाल ने इस बात पर बल दिया कि, ‘आज की कृषि में खरपतवारनाशकों के बिना उत्पादन नहीं बढ़ सकता।’ उन्होंने एफएओ के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि कीटों और खरपतवारों के कारण वैश्विक स्तर पर लगभग 40त्न फसल क्षति होती है।

उन्होंने कहा, ‘भारत में कीटनाशकों और खरपतवारनाशकों के विवेकपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देना चाहिए। नवाचार ही खरपतवार नियंत्रण का भविष्य है, लेकिन इसके लिए मज़बूत डेटा संरक्षण और बौद्धिक संपदा प्रणाली आवश्यक है।’

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सरकार का समेकित और दूरदर्शी दृष्टिकोण

मुख्य अतिथि डॉ. पी. के. सिंह, कृषि आयुक्त, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, ने कहा कि ‘नवीन किस्मों, सिंचाई, मिट्टी स्वास्थ्य और पौध सुरक्षा से ही भारत का खाद्यान्न उत्पादन 2024-25 में 354 मिलियन टन तक पहुँचा है।’

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उन्होंने कहा कि ‘हमें रबी-खरीफ की पारंपरिक सोच से आगे बढ़कर बागवानी और हाई-डेंसिटी पौधरोपण को अपनाना होगा, जिससे खरपतवारों को भी रोका जा सके।’ डॉ. सिंह ने यह भी सवाल उठाया कि, ‘नई खरपतवारनाशक रसायनों को भारत में लाने में देर क्यों होती है? उद्योग 20 साल पुरानी तकनीकें ला रहे हैं। क्यों उन्होंने पहले पेटेंट नहीं किया? इसमें जवाबदेही होनी चाहिए।’

इसके पूर्व पीएचडीसीसीआई की सहायक महासचिव सुश्री मिली दुबे ने विशिष्ट अतिथियों का स्वागत करते हुए संगठन की जमीनी बदलाव लाने की प्रतिबद्धता दोहराई। उन्होंने कहा, ‘खरपतवार प्रबंधन पर उद्योग और नीति निर्माताओं दोनों को तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।’

इस महती आयोजन का मीडिया पार्टनर कृषक जगत था।

जमीनी अनुभव और शोध निष्कर्ष

थीम प्रेजेंटेशन में किसान विज्ञान फाउंडेशन के अध्यक्ष श्री विजय सरदाना ने कहा, ‘आज भी राष्ट्रीय कृषि योजनाओं में गेहूं और धान पर अधिक ध्यान है, जबकि हम अपनी 70 प्रतिशत खाद्य तेल और दालें आयात करते हैं।’ उन्होंने चेताया कि ‘भूमि का औसत स्वामित्व घटकर 0.1 हेक्टेयर हो गया है, और जल्द ही यह 0.08 हेक्टेयर तक आ सकता है। ऐसे में खाद्य सुरक्षा के सभी पहलुओं, विशेष रूप से खरपतवारों पर ध्यान देना आवश्यक है।’

आईसीएआर-निदेशालय, खरपतवार अनुसंधान (जबलपुर) के निदेशक डॉ. जे. एस. मिश्रा ने अपने मुख्य वक्तव्य में कहा, ‘भारतीय किसानों के लिए सबसे बड़ा संकट खरपतवार हैं। जलवायु परिवर्तन और फसल प्रणाली में बदलाव के कारण नए खरपतवार प्रजातियाँ उभर रही हैं।’

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उन्होंने सुझाव दिया कि भारत में एक हर्बीसाइड रेसिस्टेंस एक्शन कमेटी का गठन किया जाए, नई रासायनिक संरचनाओं को प्रोत्साहित किया जाए, माइनर फसलों को भी ष्टढ्ढक्चक्रष्ट में लेबल दावों में शामिल किया जाए, और हरित रसायन व जैव-खरपतवारनाशकों को बढ़ावा दिया जाए।

नीति और उद्योग का दृष्टिकोण

KAKV के संचालन परिषद सदस्य और वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. आर. के. मलिक ने कहा, ‘एक समय ऐसा भी था जब खरपतवारनाशकों का वितरण पुलिस सुरक्षा में करना पड़ा था।’ उन्होंने कहा, ‘अब हर किसान 2-3 बार स्प्रे करता है। हमें तकनीक आधारित सटीक छिड़काव अपनाना होगा और रजिस्ट्रेशन प्रक्रियाओं को तेज़ करना होगा।’

महाराष्ट्र के किसान नेता और KAKV के परिषद सदस्य श्री अनिल घनवत ने छोटे किसानों के लिए यंत्रीकरण बढ़ाने की मांग की।

महिको प्रा. लि. के चेयरमैन श्री राजू बारवाले ने कहा, ‘किसान इंतज़ार नहीं कर रहे हैं, वे पहले से जीएम पपीता जैसी तकनीकें आयात कर रहे हैं। लेकिन नीति निर्माता पीछे हैं।’

पीआई इंडस्ट्रीज के डॉ. आर. डी. कपूर, हेड – एग्री सपोर्ट और एलायंसेज़ ने बताया कि 6,000 करोड़ रुपये का खरपतवारनाशक क्षेत्र हर साल 10 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। उन्होंने चेताया कि ‘गलत इस्तेमाल से रेसिस्टेंस बढ़ता है, इसलिए KAKV को सही एप्लिकेशन अनुसंधान को अनिवार्य बनाना चाहिए।Ó
सहयोग, नवाचार और गति चाहिए

राउंडटेबल में एकमत से निष्कर्ष हुआ कि Integrated Weed Management (IWM) एक व्यावहारिक रणनीति है और इसे सभी राज्यों में प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

अन्य सुझाव

विश्वविद्यालय परीक्षणों के आधार पर राज्य सरकारों को बिक्री नियंत्रण की अनुमति

  • ड्रोन-विशिष्ट एसओपी
  • फ्लैट-फैन नोजल जैसे सटीक छिड़काव उपकरणों की उपलब्धता बढ़ाना
    बैठक में इमाज़ेथापयर-टॉलरेंट धान किस्मों की चर्चा भी हुई, जो किसानों को प्रति हेक्टेयर रु. 8,000-10,000 तक की बचत करा रही हैं।
    कार्यक्रम का निष्कर्ष था कि खरपतवार प्रबंधन अब कृषि नीति का हाशिये का विषय नहीं, बल्कि खाद्य और पोषण सुरक्षा का केंद्रीय स्तंभ बन चुका है। ङ्कद्बह्यद्बशठ्ठ 2047 की तैयारी में अब भारत को एक वैज्ञानिक, व्यावहारिक और किसान-केंद्रित राष्ट्रीय खरपतवार प्रबंधन नीति की आवश्यकता है।
    कार्यक्रम का समापन इस संकल्प के साथ हुआ कि इन अनुशंसाओं को नीति निर्माताओं तक पहुँचाया जाएगा और सामयिक हस्तक्षेप किए जाएंगे जो किसानों की आय और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा दोनों की रक्षा करें।

खरपतवार नियंत्रण और भारत की खाद्य सुरक्षा: एक राष्ट्रीय आवश्यकता

यह राउंडटेबल ऐसे समय में आयोजित हुआ है जब भारत 2047 में अपनी आज़ादी के 100 वर्ष पूरे करने की ओर अग्रसर है। अनुमान है कि तब तक देश की जनसंख्या 1.6 अरब से अधिक हो जाएगी, जबकि कृषि योग्य भूमि सीमित ही रहेगी। ऐसी स्थिति में उत्पादकता बढ़ाने का एकमात्र तरीका मौजूदा ज़मीन का बेहतर उपयोग है। खरपतवार एक ऐसा घटक है जो अभी भी उपेक्षित है, जबकि यह खरीफ फसलों में 25-26त्न और रबी में 18-25त्न तक पैदावार में कमी का कारण बनता है।

कार्यक्रम के नॉलेज पार्टनर किसान विज्ञान फाउंडेशन (KAKV) के संचालन परिषद के महासचिव श्री एन.के. अरोरा ने संस्था के उद्देश्यों को साझा करते हुए कहा, ‘हम खाद्य सुरक्षा से जुड़े अहम विषयों पर काम कर रहे हैं और जहाँ ज़रूरत है, वहाँ नीति निर्माताओं और क्रियान्वयन एजेंसियों को समय रहते चेतावनी दी है। हम उद्योग संगठनों के साथ मिलकर नीतिगत अवरोधों को दूर करने और अनुमोदनों में तेजी लाने का कार्य कर रहे हैं।’

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