फसलों पर मंडराया खतरा: 1 लाख नकली खाद की जब्ती से मचा हड़कंप, किसान संघ ने की उच्चस्तरीय जांच की मांग
25 जुलाई 2025, नई दिल्ली: फसलों पर मंडराया खतरा: 1 लाख नकली खाद की जब्ती से मचा हड़कंप, किसान संघ ने की उच्चस्तरीय जांच की मांग – देश भर में नकली कृषि उत्पादों के तेज़ी से फैलते नेटवर्क को लेकर राष्ट्रीय किसान प्रोग्रेसिव एसोसिएशन (आरकेपीए) ने गहरी चिंता जताई है। एसोसिएशन का कहना है कि यह संकट अब सिर्फ किसानों की आय तक सीमित नहीं है, बल्कि यह खाद्य सुरक्षा, पर्यावरणीय स्थिरता और देश की आंतरिक सुरक्षा तक को प्रभावित कर सकता है। इसे “अभूतपूर्व और खतरनाक रूप से व्यवस्थित” बताते हुए आरकेपीए ने तत्काल और कठोर कार्रवाई की मांग की है।
हापुड़ में बड़ी जब्ती, पूरे नेटवर्क का खुलासा
आरकेपीए ने बताया कि नकली उर्वरक, कीटनाशक, बीज और कृषि उपकरणों का एक बड़ा और संगठित नेटवर्क देश में सक्रिय है। यह गिरोह नियामक कमजोरियों, ढीले कानूनों और सीजनल डिमांड का फायदा उठाकर किसानों को नकली उत्पाद बेच रहा है। इसका ताज़ा उदाहरण 25 जून 2025 को उत्तर प्रदेश के हापुड़ में देखने को मिला, जहां एक लाख से ज़्यादा नकली खाद के बैग जब्त किए गए। ये खाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 22 जिलों जैसे मेरठ, गाज़ियाबाद, आगरा और मुजफ्फरनगर में भेजे जाने वाले थे।
किसानों के लिए दोहरी मार: फसल भी गई, कर्ज भी बढ़ा
प्रेस सम्मेलन में मौजूद कई किसानों ने बताया कि नकली बीजों और कीटनाशकों के कारण उनकी पूरी फसलें खराब हो गईं। ये उत्पाद वो अक्सर उधार लेकर खरीदते हैं। जब फसल नहीं होती, तो उन पर भारी कर्ज़ और मानसिक तनाव आ जाता है। किसानों ने यह भी बताया कि नकली रसायनों से मिट्टी की गुणवत्ता खराब हो रही है, जिससे अगली फसलों पर भी असर पड़ता है। यह संकट न सिर्फ आम किसानों को प्रभावित कर रहा है, बल्कि तकनीक-समझ रखने वाले उन्नत किसानों को भी नुकसान पहुंचा रहा है।
आरकेपीए ने रखी मांगे: सुरक्षा ऑडिट से लेकर QR कोड तक
आरकेपीए ने इस संकट से निपटने के लिए एक विस्तृत नीति प्रस्ताव पेश किया है। मुख्य मांगे इस प्रकार हैं:
1. 2015 से 2025 तक दिए गए सभी CIBRC अनुमोदनों का राष्ट्रीय सुरक्षा ऑडिट हो, जिसमें कंपनियों, निर्यात, शेल कंपनियों से लिंक और दोहरे उपयोग के खतरे की जांच की जाए।
2. पश्चिम एशिया, मध्य अफ्रीका जैसे ज़ोन में जाने वाले उच्च-जोखिम वाले रसायनों के निर्यात पर रोक लगाई जाए जब तक अंतिम उपयोग सत्यापित नहीं हो जाता।
3. CIBRC के ढांचे में सुधार किया जाए और गृह, रक्षा और विदेश मंत्रालयों को पंजीकरण, लेखा परीक्षा और अनुपालन में शामिल किया जाए। सभी निर्यात-उन्मुख पंजीकरणों के लिए सुरक्षा मंजूरी अनिवार्य हो।
4. राष्ट्रीय रासायनिक व्यापार और संप्रभुता आयोग का गठन किया जाए जिसमें NIA, RAW, DRDO, NCB, FSSAI और DEA जैसे संगठनों के प्रतिनिधि शामिल हों।
5. सभी बीज, उर्वरक और कीटनाशकों पर QR कोड आधारित प्रमाणीकरण प्रणाली लागू की जाए, ताकि किसान मोबाइल से स्कैन करके प्रोडक्ट की असली पहचान कर सकें।
6. कृषि विक्रेताओं, डीलरों और बिना लाइसेंस वाले कारोबारियों की कड़ी जांच की जाए, खासकर फसल सीजन से पहले छापेमारी और आकस्मिक निरीक्षण हों।
7. जो भी डीलर, सप्लायर या अधिकारी नकली उत्पादों की बिक्री में लिप्त पाया जाए, उस पर कानूनी कार्रवाई और ब्लैकलिस्टिंग की जाए।
लाइसेंसिंग की लापरवाही पर सवाल, किसानों की एकजुट आवाज
एसोसिएशन ने लाइसेंसिंग प्रक्रिया में की जा रही अचानक और बार-बार की गई ढीली संशोधन प्रक्रियाओं पर भी सवाल उठाए। उनका कहना है कि कमजोर निगरानी और गैर-जवाबदेह रवैए से नकली उत्पादों के गिरोह को बढ़ावा मिल रहा है और इसका नुकसान सीधे ग्रामीण गरीब किसानों को भुगतना पड़ रहा है। आरकेपीए ने स्पष्ट किया कि किसान किसी को दोषी ठहराने के बजाय केवल सुरक्षा, पारदर्शिता और न्याय चाहते हैं।
केंद्रीय कृषि मंत्री से टास्क फोर्स गठित करने की मांग
किसान संगठनों ने केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान से अपील की है कि वे इस संकट को गंभीरता से लें और संबंधित मंत्रालयों के बीच समन्वय स्थापित कर ठोस और किसान-हितैषी योजना तैयार करें। आरकेपीए के अध्यक्ष बिनोद आनंद ने कहा, “अगर खेतों में नकली उत्पादों का उपयोग जारी रहा, तो भारत का भविष्य बाढ़ या सूखे से नहीं, बल्कि जानबूझ कर फैलाए गए छल से तबाह होगा। ऐसे मामलों से आतंकी नेटवर्क को भी सहायता मिलती है। हमें युद्ध स्तर पर कार्रवाई करनी होगी।”
वहीं धर्मेंद्र मलिक, राष्ट्रीय प्रवक्ता, भारतीय किसान यूनियन (गैर-राजनीतिक) ने कहा, “नकली इनपुट सिर्फ आर्थिक धोखा नहीं है, यह किसानों की मेहनत और भरोसे पर सीधा हमला है। जब तक ज़मीनी स्तर पर कड़ी निगरानी और कार्रवाई नहीं होगी, गांवों को इसका नुकसान लंबे समय तक झेलना पड़ेगा।”
यह सिर्फ आर्थिक नहीं, राष्ट्रीय सुरक्षा का भी मुद्दा
आरकेपीए ने दोहराया कि यह मुद्दा सिर्फ एक छापे, एक राज्य या एक सीजन तक सीमित नहीं है। यह एक राष्ट्रीय संकट है जिसे एक फाइल में दबाकर नहीं छोड़ा जा सकता। अब वक्त आ गया है कि हम कृषि को सिर्फ उत्पादन का साधन नहीं, राष्ट्रीय गौरव और सुरक्षा का स्तंभ मानते हुए कार्रवाई करें। एसोसिएशन ने शोध, नीति सुझाव और किसानों की बात को नीति निर्माताओं तक पहुँचाने का संकल्प भी दोहराया।
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