राष्ट्रीय कृषि समाचार (National Agriculture News)

नकली खाद के कारोबार पर नकेल !

21 जून 2025, नई दिल्ली: नकली खाद के कारोबार पर नकेल ! – हाल ही में राजस्थान के अजमेर जिला के किशनगढ़ क्षेत्र में खाद बनाने वाले देश के सबसे बड़े संस्थान इफको के साथ अनेक कम्पनियों के नाम से नकली रासायनिक खाद बनाने और बेचने का मामला प्रकाश में आया था। मार्बल स्लरी और मिट्टी से डीएपी, एसएपी, और पोटाश जैसे नकली उर्वरक बनाए जा रहे थे। कार्रवाई के दौरान बड़ी मात्रा में उर्वरक बनाने का सामान भी जब्त किया गया। राजस्थान के कृषि मंत्री डॉ. किरोड़ीलाल मीणा ने खुद छापा मारकर नकली खाद बनाने वालों का भंडाफोड़ किया था। कृषि विभाग के अधिकारियों ने नकली खाद बनाने वाले जिम्मेदारों के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई है। अकेले राजस्थान में ही नकली खाद बनाने के कई मामले सामने आ चुके हैं, जिसमें 14 कंपनियां पकड़ी गई हैं और 10 के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। नकली खाद की समस्या केवल राजस्थान तक सीमित नहीं है बल्कि यह पूरे देश में है। यदि नकली खाद का उत्पादन और किसानों तक आपूर्ति करने वाले गिरोह की ईमानदारी से जांच की जाए तो देश के हजारों किसानों को नुकसान होने से बचाया जा सकता है।

जब किसानों को खाद की किल्लत होती है, तब वे रात-रात भर जागकर सहकारी समितियों के आगे लाईन लगाकर खड़े रहने को मजबूर होते हैं। किसानों को आवश्यकतानुसार खाद अधिकृत सहकारी समितियों या अधिकृत दुकानों से नहीं मिल पाता है तब वे अन्य स्रोतों की भी तलाश करते हैं और इसी मौके का फायदा नकली खाद बनाने वाले उठाते हैं। उनके एजेंट ग्रामीण इलाकों में सक्रिय रहते हैं और वे किसानों को आसानी से उनकी आवश्यकतानुसार खाद उपलब्ध करा देते हैं। किसान इस बात से खुश हो जाते हैं कि उन्हें इफको तथा अन्य प्रतिष्ठित कम्पनियों के खाद बिना लाईन में लगे ही मिल रहा है। खाद के कट्टे हुबहू सभी आवश्यक जानकारी और चित्र कम्पनी के लोगो (चिन्ह) के साथ मिलते हैं तो किसी भी तरह के शक की कोई गुंजाईश नहीं रहती है। किसानों को नकली खाद का तब पता चलता है जब फसल पर खाद का कोई असर नहीं होता और अपेक्षित उत्पादन भी नहीं मिलता।

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ताज्जुब की बात तो यह है कि देश में नकली खाद का उत्पादन करने वाली अनेक कम्पनियों ने खाद बनाने का लायसेंस ले रखा है। ऐसी स्थिति में इन कम्पनियों पर शक नहीं किया जा सकता। कुछ कंपनियां जैविक खाद के नाम पर भी नकली खाद बेच रही हैं। एक अनुमान के अनुसार देश में वर्ष 2023-24 में करीब 1.80 लाख उर्वरक के नमूनों में से लगभग 9 हजार अर्थात् करीब पांच प्रतिशत उर्वरक मानकों के अनुरूप नहीं पाए गए।

नकली उर्वरक किसानों की उपज को नष्ट कर उनकी आर्थिक स्थिति को कमजोर करते हैं। सबसे बड़ी समस्या यह है कि किसानों के पास नकली और असली की पहचान करने का कोई त्वरित और आसान तरीका नहीं है और सरकारी निगरानी तंत्र भी उतना सशक्त नहीं है। यही कारण है कि नकली खाद बनाने वालों का कारोबार फल-फूल रहा है। इससे इस आशंका को भी बल मिलता है कि नकली खाद बनाने वालों को प्रशासनिक और राजनीतिक शह मिली हुई है।

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किसानों को नकली खादों की आपूर्ति करने वालों के खिलाफ सख्ती से कार्रवाई करने की जरूरत है। इससे किसानों और उपभोक्ताओं दोनों को ही लाभ होगा। इसके लिए किसानों को भी जागरूक रहने की जरूरत है। केंद्र और राज्य सरकारों को भी चाहिये कि वे खरीफ और रबी के मौसम के अनुसार सही अनुमान लगाकर पर्याप्त मात्रा में खादों की उपलब्धता सुनिश्चित करें। इसके अलावा खाद बनाने वाली कम्पनियों को उर्वरकों के कट्टों पर सुरक्षा मानकों के अनुरूप डिजीटल ट्रेकिंग और क्यूआर कोड प्रणाली अपनानी चाहिए ताकि किसान सही और प्रामाणिक उर्वरक खरीद सकंे। यदि क्यूआर कोड में गलत जानकारी पायी जाती है तो इससे किसान स्तर पर भी नकली और असली उर्वरकों की पहचान की जा सकती है। किसान उर्वरक की खरीदी केवल अधिकृत दुकान अथवा सहकारी समिति के माध्यम से ही करें ताकि नकली उर्वरक की खरीदी से बचा जा सके। नकली खाद के कारोबार पर पूर्णत: रोक लगाने में केवल सरकारें ही कारगर ढंग से कार्रवाई कर सकती हैं। राज्य सरकारों को मांग के अनुसार पर्याप्त मात्रा में उर्वरकों की उपलब्धता और सहकारी समितियों और पंजीकृत दुकानों के माध्यम से ही विक्रय करना अनिवार्य कर देना चाहिए। इसके अलावा उर्वरक बेचने वाली सभी दुकानों की समय-समय पर जांच और निगरानी भी करनी होगी। ऑनलाईन ट्रेकिंग सिस्टम भी प्रभावी कार्य कर सकता है। जब मांग के अनुसार उर्वरकों की सहकारी समितियों और पंजीकृत/अधिकृत दुकानों में उपलब्धता रहेगी तो किसान अन्य विकल्प के बारे में सोचेगा ही नहीं। यानी नकली खाद की बिक्री पर पूर्णत: नकेल कसना सम्भव हो सकता है। खरीफ के मौसम की शुरुआत हो चुकी है, किसान फसल की बोवनी की तैयारी कर चुके हैं.. ऐसे समय खाद की किल्लत के चलते नकली खाद का व्यवसाय फले-फूले तो इसे सरकारों की नाकामी ही कहना चाहिए।

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