राष्ट्रीय कृषि समाचार (National Agriculture News)

दिहाड़ी से भी कम है राहत राशि

मध्य प्रदेश सरकार का राहत वितरण

मप्र में अतिवृष्टि से नष्ट हुई खरीफ फसलों की क्षतिपूर्ति के लिये राज्य शासन ने लम्बी कबायद के बाद प्रशासन से आंकलित नुकशान में कॉटछाट करके शासन ने तय की गई क्षति राशि का पच्चीस फीसदी किसान के खातों में डालना प्रारंभ किया है। आंकलित नुकशान की शेष राशि या बकाया किस्तों का भुगतान कब एंव कैसे होगा? इस सम्बंध में राज्य शासन का कोई भी स्पष्ट संकेत नहीं है। प्रदेश के विभिन्न जिलो मे राज्य शासन के आंकलन से तय औसतन फसल क्षति राशि प्रति एकड़ रु. 1200 से लेकर 1600 रुपये निर्धारित की है। जो कि प्रति एकड़ बीज लागत भी नहीं है। लेकिन इससे बड़ा आघात यह है कि राज्य सरकार तय की गई क्षति राशि का मात्र 25 फीसदी ही प्रथम किस्त के रूप में देने जा रही है। जो कि प्रति एकड़ 250 से लेकर 300 रुपये के बराबर है। यह राशि एक मजदूर की एक दिन की फसल कटाई राशि भी नहीं है। राज्य सरकार की यह राशि किसानों के घावों पर मलहम लगााने के बजाये घावों को हरा करने वाली सिद्ध हो रही है। शासन की किस्त रुपी यह चरणबद्ध प्रक्रिया किसानों के लिये दु:खदायी होने के साथ शासकीय मशनरी के लिये भी कम परेशानी वाली नहीं है। चरणबद्ध रूप में यदि यह प्रक्रिया दोहरायी गई तो प्रशासनिक कार्यों में यह प्रक्रिया प्रत्येक दफा अन्य कार्यों के लिये रुकावट वाली रहेगी। यह समय किसानों के लिये खेतों में रहकर सिंचाई करने का है। यूरिया संकट वैसे भी राज्य के किसान को परेशान किये हुये। लेकिन वह मुआवजे की प्राप्ति के लिये बैंकों एंव तहसीलों के चक्कर लगाने लगा है। फसल क्षति के लिये आश्वासन के बाद किसानों की उम्मीद थी उन्हें उनकी क्षति की संन्तोषजनक राशि मिलेगी। इसी आशा से वह कृषि के लिये आवश्यक आदानों की खरीददारी कर्ज लेकर कर रहा था। लेकिन खातों में जमा की जा रही राशि किसानों के लिये सर पीटने के अलावा कुछ भी नहीं है। म.प्र. में अतिवृष्टि से हुये फसल नुकशान का आंकलन न सिर्फ राज्य के पटवारियों एवं राजस्व निरिक्षकों ने किया है, बल्कि केन्द्रीय दल ने दो बार राज्य की फसल क्षति का आंकलन किया था। लेकिन आश्चर्य राज्य एवं केन्द्र सरकार के आंकलनों में जमीन असमान का अन्तर दिखाई देता है। राज्य सरकार ने खरीफ फसलों का नुकसान करीब 60 लाख हेक्टेयर में बताकर केन्द्र से 16,700 करोड़ की मदद मांगी थी। जिसके विरुद्ध केन्द्र सरकार ने मात्र 1000 करोड़ के सहायता राशि राज्य को उपलब्ध कराई है। यही राशि राज्य सरकार नुकसान पीडि़त 55 लाख किसानों में प्रसादी के रूप में बांटने जा रही है। राज्य सरकार द्वारा केन्द्र सरकार से फसल क्षति की राशि प्राकृतिक आपदा प्रबंधन के लिये एनडीआरएफ फन्ड से मांगी थी। जबकि आपदा प्रबंधन का कहना है कि वह बाढ़ या अन्य प्राकृतिक आपदा के लिये राशि जारी करता है, अतिवृष्टि के लिय नहीं। जबकि राज्य सरकार की मांग अतिवृष्टि से हुये नुकसान के लिये है। दो विपरीत दलों की सरकार के बीच एक तकनीकि शब्द के माघ्यम से पीडि़त किसानों को मदद के बजाये राजनीति की जा रही है। राज्य के किसानों के सामने दूसरी बड़ी परेशानी फसल बीमा न मिलने की भी है। फसल बीमा प्राप्त करना किसानों का हक है। लेकिन इसको लेकर भी राजनीति हो रही है। राज्य सरकार का कहना है कि खरीफ 2019 के लिये वह अपने राज्यांश का 509 करोड़ रुपये बीमा कम्पनी को दे चुकी है। लेकिन केन्द्र सरकार अपना हिस्सा जमा करने से पूर्व पिछली राज्य सरकार का छोड़ा गया 23 सौ करोड़ रुपये मांग रही है। बीमा कंम्पनियोंं के पास पूर्ण प्रीमियम जमा न होने की बजह से राज्य का किसान अपनी फसल का बीमा क्लेम लेने से बंचित है। दो सरकारों के बीच के मनमुटाव से राज्य किसानों की मिल रही यह प्रताडऩा अति दुर्भाग्यपूर्ण है। राज्य के किसानों को असलियत से परे रखकर मात्र भावान्तमक राजनीति का खेल खेला जा रहा है जबकि सवाल यह भी है कि फसल क्षति की अगली किस्त की कैसे होगी व्यवस्था? राज्य की खरीफ फसल की भरपाई बीमा कम्पनियों द्वारा कब की जायेगी? जबकि किसान अपना प्रीमियम अदा कर चुका है। इन अनुत्तरित प्रश्नों का उत्तर केन्द्र सहित राज्य सरकार को अब देना होगा।

  • विनोद के. शाह
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