राष्ट्रीय कृषि समाचार (National Agriculture News)फसल की खेती (Crop Cultivation)

मैदानी इलाकों में सेब की बागवानी: अब नहीं रहेगी सिर्फ पहाड़ों की फसल

04 सितम्बर 2024, नई दिल्ली: मैदानी इलाकों में सेब की बागवानी: अब नहीं रहेगी सिर्फ पहाड़ों की फसल – मैदानी क्षेत्रों में सेब की बागवानी के लिए विदेशी शोध संस्थानों द्वारा कुछ विशेष प्रजातियां विकसित की गई थीं, लेकिन इनके उपोष्ण जलवायु में परीक्षण या मूल्यांकन के अभाव में किसान इनसे अनजान थे। भारतीय कृषि प्रणाली अनुसंधान संस्थान ने सेब की फसल को मैदानी क्षेत्रों में लोकप्रिय बनाने के लिए संस्थान के प्रक्षेत्र में इन प्रजातियों का मूल्यांकन किया। इसमें उन प्रजातियों का परीक्षण किया गया, जिनकी पुष्पन के लिए केवल 250-300 घंटों की शीतलन इकाइयों की आवश्यकता होती है। इस अध्ययन ने यह भ्रांति दूर कर दी कि सेब की बागवानी केवल पहाड़ी क्षेत्रों में ही संभव है। यह अध्ययन उपोष्ण क्षेत्रों में कृषि और बागवानी के विविधीकरण के लिए एक नया विकल्प पेश करता है।

सेब की उन प्रजातियों के नाम जो कम शीतलन की आवश्यकता रखती हैं, इस प्रकार हैं: अन्ना, डॉर्सेट गोल्डन, एचआर एमएन-99, इन शेमर, माइकल, बेवर्ली हिल्स, पार्लिन्स ब्यूटी, ट्रॉपिकल ब्यूटी, पेटेगिल, तम्मा आदि। संस्थान में अन्ना, डॉर्सेट गोल्डन और माइकल प्रजाति के पौधों पर चार सालों के अध्ययन से सफल अनुभव प्राप्त हुआ है।

Advertisement
Advertisement

अन्ना: यह सेब की एक दोहरी उद्देश्य वाली प्रजाति है, जो गर्म जलवायु में भी अच्छी तरह से विकसित होती है और जल्दी पक जाती है। पर्वतीय क्षेत्रों में उगने वाली सेब की प्रजातियों को पुष्पन और फलन के लिए कम से कम 450-500 घंटे की शीतलन इकाइयों की आवश्यकता होती है। अन्ना प्रजाति के फल जून माह में परिपक्व हो जाते हैं। फलों का रंग पीली सतह पर लाल आभा के साथ विकसित होता है, जो देखने में गोल्डन डिलीशियस जैसे लगते हैं। यह शीघ्र और अधिक फलन वाली किस्म है। जून माह में सामान्य तापमान पर इन्हें लगभग 7 दिनों तक सुरक्षित रखा जा सकता है। अन्ना सेब एक स्वयं बांझ (सेल्फ स्टेराइल) प्रजाति है, इसलिए इसकी बागवानी के दौरान परागण दाता प्रजाति का प्रावधान करना जरूरी होता है।

डॉर्सेट गोल्डन: यह भी सेब की ऐसी प्रजाति है, जो गर्म क्षेत्रों के लिए विकसित की गई है और जहां शीत ऋतु में 250-300 घंटे का शीतलन उपलब्ध होता है। अन्ना किस्म की सफल बागवानी में, यदि उचित दूरी पर 20% पौधे डॉर्सेट गोल्डन प्रजाति के लगाए जाएं तो अच्छे परिणाम मिलते हैं।

Advertisement8
Advertisement

पौध रोपण की तैयारी और जानकारी: सबसे पहले, सरकारी पौधशाला या राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड द्वारा मान्यता प्राप्त पौधशाला से पौधों की अग्रिम उपलब्धता सुनिश्चित करनी चाहिए। बागवानी करने वाले किसानों को सलाह दी जाती है कि सेब की बागवानी के लिए आदर्श पीएच मान 6-7 होना चाहिए, मृदा में जलजमाव नहीं होना चाहिए और उचित जल निकास वाली मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। इन्हें सूर्य के प्रकाश की कम से कम 6 घंटे की आवश्यकता होती है। प्रति पौधा 15 किलो सड़ी गोबर की खाद का इस्तेमाल किया जा सकता है। सेब की प्रजातियों को वर्गाकार 5×5 या 6×6 मीटर की दूरी पर लगाना चाहिए। पौध रोपण के समय यह ध्यान रखना जरूरी है कि मूलवृंत और साकुर के जोड़ का स्थान, जो एक गांठ के रूप में दिखाई देता है, कभी भी भूमि में नहीं दबना चाहिए।

Advertisement8
Advertisement

पादप वृद्धि, पुष्पन और फलन: नवंबर से जनवरी तक पौधों की लगभग 60% पत्तियां गिर जाती हैं। पत्तियों के गिरने पर किसानों को चिंता नहीं करनी चाहिए, क्योंकि यह पौधों को शीत ऋतु के न्यूनतम तापमान को सहने और अगले मौसम में पुष्पन के लिए तैयार करने की एक स्वाभाविक प्रक्रिया है।

कीट और रोग: हानिकारक कीटों में अगस्त-सितंबर में हेयर कैटरपिलर का प्रकोप होता है, जिससे बचाव के लिए डाइमेथोएट-2 मिलीलीटर की दर से तुरंत छिड़काव करना चाहिए। जुलाई के महीने में बारिश के साथ कुछ फलों में सड़न की समस्या दिखाई देती है, जिसके उपचार के लिए कार्बेन्डाजिम या थियोफेनेट मिथाइल का 0.1% की दर से छिड़काव किया जा सकता है। बेहतर होगा कि बारिश से पहले ही फलों की तुड़ाई कर ली जाए।

(नवीनतम कृषि समाचार और अपडेट के लिए आप अपने मनपसंद प्लेटफॉर्म पे कृषक जगत से जुड़े – गूगल न्यूज़,  टेलीग्रामव्हाट्सएप्प)

(कृषक जगत अखबार की सदस्यता लेने के लिए यहां क्लिक करें – घर बैठे विस्तृत कृषि पद्धतियों और नई तकनीक के बारे में पढ़ें)

कृषक जगत ई-पेपर पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:

www.krishakjagat.org/kj_epaper/

कृषक जगत की अंग्रेजी वेबसाइट पर जाने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:

Advertisement8
Advertisement

www.en.krishakjagat.org

Advertisements
Advertisement5
Advertisement