राष्ट्रीय कृषि समाचार (National Agriculture News)

किसानों के हितों के खिलाफ: कृषि रसायनों पर डेटा संरक्षण समिति भंग करने की मांग

14 दिसंबर 2024, नई दिल्ली: किसानों के हितों के खिलाफ: कृषि रसायनों पर डेटा संरक्षण समिति भंग करने की मांग – कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा हाल ही में कृषि रसायनों के लिए डेटा संरक्षण उपायों पर विचार करने के लिए एक बहु-मंत्रालयी समिति का गठन किया गया है, जिसकी अध्यक्षता संयुक्‍त सचिव (प्लांट प्रोटेक्शन) श्री फैज़ अहमद किदवई कर रहे हैं। इस कदम ने किसानों और स्वदेशी कृषि रसायन निर्माताओं के बीच भारी विवाद को जन्म दिया है। भारतीय कृषक समाज के अध्यक्ष कृष्ण बीर चौधरी ने इस समिति को तुरंत भंग करने की मांग करते हुए इसे किसानों के हितों के खिलाफ बताया है।

कृष्ण बीर चौधरी, अध्यक्ष, भारतीय कृषक समाज

चौधरी ने चेतावनी दी कि यह समिति बहुराष्ट्रीय कंपनियों (एमएनसी) को भारतीय कृषि रसायन बाजार पर एकाधिकार स्थापित करने का मौका देगी, जिससे किसानों पर वित्तीय बोझ बढ़ेगा। उन्होंने कहा कि जिन उत्पादों के पेटेंट की अवधि 20 साल पहले समाप्त हो चुकी है, उनके लिए डेटा संरक्षण देने से विदेशी कंपनियां मनमाने दाम पर कृषि रसायन बेचकर किसानों का शोषण करेंगी। यह कदम न केवल भारतीय कृषि अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाएगा बल्कि ‘मेक इन इंडिया’ के दृष्टिकोण के भी विपरीत है।

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चौधरी ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार, पेटेंट संरक्षण केवल 20 वर्षों के लिए होता है और इसके बाद डेटा संरक्षण का प्रावधान करना अनुचित और अवैध है। यह कदम एमएनसी को अनावश्यक लाभ देगा और किसानों को सस्ते विकल्पों से वंचित करेगा।

भारत में कृषि रसायनों के आयात में चिंताजनक वृद्धि को उजागर करते हुए चौधरी ने कहा कि 2019-2020 में ₹9,041 करोड़ के आयात की तुलना में 2022-23 में यह आंकड़ा ₹14,315 करोड़ से अधिक हो गया। उन्होंने बताया कि विदेशी कंपनियों द्वारा बेचे जाने वाले उत्पादों की अत्यधिक कीमतों से यह स्पष्ट है कि आयात पर नियंत्रण की तत्काल आवश्यकता है।

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उन्होंने कुछ उदाहरण प्रस्तुत करते हुए बताया कि इमामेक्टिन बेंजोएट, जिसे 2007 में एक एमएनसी द्वारा ₹10,000 प्रति किलोग्राम की दर से बेचा गया था, भारतीय कंपनियों द्वारा उत्पादन शुरू करने के बाद ₹2,000 प्रति किलोग्राम पर उपलब्ध हो गया। इसी तरह, सल्फोसुल्फ्यूरोन जो 2001 में ₹48,000 प्रति किलोग्राम पर बेचा गया था, अब ₹14,800 प्रति किलोग्राम में उपलब्ध है। एसिटामिप्रिड, जिसे 2001-2002 में ₹6,400 प्रति किलोग्राम पर बेचा गया था, अब ₹800 प्रति किलोग्राम में उपलब्ध है, जो 87% की कमी को दर्शाता है।

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सायपरमेथ्रिन, जिसे 30 साल पहले $80-100 प्रति किलोग्राम के दर से आयात किया जाता था, आज भारतीय कंपनियां $8 प्रति किलोग्राम में उत्पादित कर रही हैं और इसे $10 प्रति किलोग्राम पर वैश्विक बाजार में निर्यात कर रही हैं। चौधरी ने कहा कि ये उदाहरण यह साबित करते हैं कि भारतीय कंपनियां उच्च गुणवत्ता वाले कृषि रसायन किफायती दरों पर किसानों को उपलब्ध कराने में सक्षम हैं।

उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि कुछ भारतीय कंपनियां विदेशी एमएनसी के लिए बिचौलिए के रूप में काम कर रही हैं और ऐसी नीतियों की वकालत कर रही हैं जो किसानों के लिए हानिकारक हैं। चौधरी ने कहा कि यह समूह प्रशासनिक अधिकारियों को गुमराह करके नीतिगत ढांचे में बदलाव कराने का प्रयास कर रहा है, जो भारतीय किसानों और उद्योगों के लिए खतरनाक साबित होगा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के “मेक इन इंडिया” दृष्टिकोण का हवाला देते हुए चौधरी ने डेटा संरक्षण समिति को तुरंत भंग करने की मांग की। उन्होंने कहा कि भारतीय कृषि रसायन निर्माता सस्ते और प्रभावी उत्पाद उपलब्ध कराने में सक्षम हैं, और ऐसी नीतियां किसानों के लिए सस्ती और सुलभ कृषि रसायनों को सुनिश्चित करेंगी।

चौधरी ने कहा कि सरकार को किसानों के कल्याण को प्राथमिकता देनी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसी कोई भी नीति जो किसानों पर बोझ डालती है, लागू न हो। उन्होंने यह भी कहा कि किसानों को सस्ती दरों पर गुणवत्तापूर्ण कृषि रसायन उपलब्ध कराना भारतीय कृषि को दीर्घकालिक स्थिरता और आर्थिक मजबूती की ओर ले जाएगा।

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