Industry News (कम्पनी समाचार)

पॉलीहैलाइट से सोयाबीन होगी मजबूत और बेहतर होगी उपज

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  • डॉ. यू. एस. तेवतिया
    मुख्य प्रबंधक- कृषि सेवाएं, नई दिल्ली
  • नीतेश शर्मा, क्षेत्रीय प्रबंधक (म.प्र.)
    इंडियन पोटाश लि., मो. : 9826800810

14 जुलाई 2021, भोपाल ।  पॉलीहैलाइट से सोयाबीन होगी मजबूत और बेहतर होगी उपज – सोयाबीन मध्यप्रदेश की एक महत्वपूर्ण व्यावसायिक फसल है और इसकी पैदावार में थोड़ी बढ़ोतरी भी किसानों के लिए बहुत फायदेमंद हो सकती है। भारत में सोयाबीन का औसत उत्पादन लगभग 1 टन प्रति हेक्टेयर के आस पास है जबकि इसका उत्पादन 3-3.5 टन प्रति हेक्टेयर तक लिया जा सकता है। भारत में सोयाबीन की खेती अधिकांशत: वर्षा आधारित है इसलिए किसान इसकी उर्वरक जरूरतों को अक्सर नजरअंदाज कर देते हैं और इसी वजह से फसल में पोषक तत्वों की कमी होने पर उतपादन कम हो जाता है।

पोषण प्रबंधन और उर्वरक उपयोग

सोयाबीन की उच्च पैदावार के लिए उचित पोषण प्रबंधन और उर्वरक उपयोग बहुत आवश्यक है। सोयाबीन में पोषक तत्वों की मांग बीज भराव के दौरान अधिकतम होती है। सोयाबीन के बीज में प्रोटीन की मात्रा बहुत अधिक होती है। इसलिए बीज बनने के दौरान सोयाबीन में समुचित प्रोटीन निर्माण के लिए सल्फर और नाइट्रोजन पोषण में संतुलन बहुत ही महत्वपूर्ण है।

सोयाबीन के पौधे वायुमंडलीय नाइट्रोजन का उपयोग नोड्यूल फिक्सेशन के माध्यम से करते हैं इसलिए सोयाबीन की फसल में नोड्यूल बनने के बाद नाइट्रोजन उर्वरक प्रयोग का सोयाबीन की उपज पर कोई प्रभाव नहीं दिखता है। सोयाबीन की खेती में नाइट्रोजन का उपयोग फसल की शुरुआती जरूरत को ध्यान में रख कर ही किया जान चाहिये। इसलिए फसल की प्रारंभिक अवस्था में नाइट्रोजन की पूर्ति के लिए सोयाबीन में 20-25 किलो प्रति हेक्टेयर नाइट्रोजन उपयोग की सलाह दी गई है।

फलीदार (लेगुमिनॉस) फसलों में उर्वरक उपयोग अक्सर फास्फोरस आधारित होता है क्योंकि यह जड़ों के बेहतर विकास, नोड्यूलेशन और पार्यप्त मात्रा में नाइट्रोजन फिक्सेशन के लिए महत्वपूर्ण है। सोयाबीन की फसल में बुवाई के समय 60-80 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से फास्फोरस उपयोग की सिफारिश की गई है।

भारत में सोयाबीन की खेती सामान्यत: अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में होती है जहाँ विशेष रूप से वर्टिसोल और इससे संबद्ध मृदा होती हैं। इन मृदाओं में पोटेशियम का स्तर अधिक पाया जाता है, इसीलिए भारत में पहले सोयाबीन की फसल में पोटाश पोषण पर ध्यान नहीं दिया गया परन्तु इसके अपटेक (101-120 किलो प्रति हेक्टेयर) को देखते हुए सोयाबीन की फसल में बुआई के समय 40-50 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से पोटेशियम का उपयोग करना अब बेहद जरुरी है।

सोयाबीन में सल्फर का महत्व और सल्फर उर्वरक उपयोग

सोयाबीन की गुणवत्ता और उत्पादकता में वृद्धि के लिए सल्फर बहुत आवश्यक पोषक तत्व है। ञ्जस्ढ्ढ /स्न्रढ्ढ /ढ्ढस्न्र संगोष्ठी (2006) में प्रस्तुत तथ्यों के अनुसार सोयाबीन की फसल में उचित मात्रा में सल्फर (स्) उपयोग कर 12द्मद्द प्रति किलो स् की दर से अतिरिक्त उपज ली जा सकती है। वर्तमान में यह योगदान और भी अधिक हो सकता है। सोयाबीन की फसल में दाने बनने के समय सल्फर की उचित मात्रा सोयाबीन में प्रोटीन और तेल प्रतिशत में सुधार के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है। सोयाबीन की फसल में बुआई के समय 20-25 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से सल्फर उपयोग बहुत लाभदायक है।

सघन खेती और पूर्व में कम सल्फर युक्त उर्वरक प्रयोगों के कारण आज लगभग सभी मृदाओं में सल्फर (स्) का स्तर कम हो गया है। इसलिए अब सभी फसलों में सल्फर उपयोग पर जोर दिया जा रहा है। सोयाबीन की फसल में सल्फर आपूर्ति के लिए मुख्यत: बेंटोनाइट सल्फर और परम्परागत सल्फर युक्त उर्वरकों का उपयोग किया जाता हैं। परन्तु इन उर्वरकों से पौधों को तुरंत और पर्याप्त सल्फर नहीं मिल पाता क्योंकि पौधे सल्फर का अपटेक सिर्फ सल्फेट (स्श4) के रूप में ही करते हैं। इसलिए सोयाबीन जैसी कम दिनों की फसलों में सल्फर की तुरंत और लगातार आपूर्ति के लिए सल्फेट सल्फर उर्वरक ज्यादा असरदार और प्रभावी हैं।

सोयाबीन के अच्छे उत्पादन के लिए पॉलीहैलाइट की उपयोगिता

Nutrient composition
K2O   13.5%
       18.5%
MgO   5.5%
CaO   16.5%

पॉलीहैलाइट सोयाबीन की फसल में सल्फर के साथ कैल्शियम, मैग्नीशियम और पोटाश आपूर्ति का एक अच्छा और प्रभावी उर्वरक है। इसमें सल्फर, सल्फेट रूप में है और इसका धीमा रिलीज पैटर्न मिटटी में सल्फर और अन्य तत्वों की उपलब्धता लंबे समय तक बनाये रखता है। पॉलीहैलाइट की यह विशेषता फसल की बेहतर बढ़वार, उपज, गुणवत्ता और मुनाफे में सुधार के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। सोयाबीन की फसल में पॉलीहैलाइट का प्रयोग कर लगभग 15-20 त्न उपज में वृद्धि के साथ प्रोटीन और तेल प्रतिशत में भी सुधार किया जा का सकता है। पॉलीहैलाइट जैविक खेती के लिए भी उपयुक्त है। जैविक खेती में इसके उपयोग से मृदा की उर्वरा क्षमता में सुधार होगा जिससे फसल को मजबूती मिलेगी और बेहतर होगी उपज। सोयाबीन में S, Ca & Mg अपटेक के आधार पर बुवाई के समय 50 -100 किलो प्रति एकर पॉलीहैलाइट का उपयोग कर बेहतर उपज और लाभ कमाया जा सकता है।

बीज उत्पादकों के लिए कुछ महत्वपूर्ण बातें व सुझाव
  • बीज खरीदने के साथ मिले टैग, बैग, बिल या केश मेमो व अन्य कागजात को सम्भालकर रखें जिससे सहायक बीज प्रमाणीकरण अधिकारी के निरीक्षण के दौरान इन चीजों को दिखा सकें।
  • इस निरीक्षण के बाद निरीक्षक फसल व किस्म के निर्धारित मानकों के आधार पर अवांछित पौधे, अलगाव दूरी, आपत्तिजनक बीमारी व खरपतवार आदि का निरीक्षण करता है।
  • सामान्यत: फसल का प्रथम निरीक्षण पुष्पावस्था में तथा द्वितीय निरीक्षण परिपक्वता की अवस्था में किया जाता है।
  • निरीक्षण के दौरान फसल निर्धारित मानकों के अनुरूप न पाये जाने पर फसल कार्यक्रम निरस्त किया जा सकता है।
  • निरस्तीकरण की स्थिति में कृषकों के आवेदन पर पुन: निरीक्षण किया जा सकता है बशर्ते वह पुन: निरीक्षण शुल्क भरने के साथ फसल को निर्धारित मानकों के अनुरूप तैयार कर लें।
  • सफल मानकों के अनुरूप होने पर फसल की कटाई, गहाई व सफाई के बाद बीजों को बड़ी सावधानीपूर्वक साफ सुथरे बोरे में भरकर सुरक्षित स्थान पर रखा जाता है।
  • प्रत्येक बोरे में लाट नम्बर, फसल, किस्म एवं श्रेणी लिखकर प्रक्रिया केन्द्रों पर पहुंचाया जाता है जिससे केन्द्र में बीज को सुखाकर छनाई, ग्रेडिंग व बिनाई कराकर बीज को निर्धारित आकार की बोरियों में भरकर सिल दिया जाता है तथा उस पर लाट नम्बर जाति श्रेणी लिखकर रख दिया जाता है।
  • बीज प्रक्रिया के तुरन्त बाद उक्त लाट के तीन नमूने बीज निरीक्षक द्वारा बीज उत्पादक के सामने लिये जाते हैं। इसमें एक लाट बीज परीक्षण प्रयोगशाला, दूसरा बीज निरीक्षक कार्यालय व एक उत्पादक को भेज दिया जाता है।

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