हल्दी की ये किस्में देती ज्यादा मुनाफा
18 जून 2022, भोपाल । हल्दी की ये किस्में देती ज्यादा मुनाफा –
भूमि – हल्दी की खेती जीवांश युक्त रेतीली या दोमट मटियार मिट्टी में उचित जल निकास की व्यवस्था का होना नितान्त आवश्यक है भारी मृदाओं में, जहां जल निकास का उचित प्रबंध नहीं होता है। वहां पर हल्दी की खेती मेड़ों पर की जाती है हल्दी के लिए पर्याप्त उर्वर भूमि की आवश्यकता होती है इसकी खेती के लिये तालाब के जल द्वारा सिंचित काली मिट्टी उपयुक्त रहती है उन मृदाओं में जहां पर जंगली किस्में उगती पाई जाती हैं, मृदा प्राय: लाल चिकनी या मटियार दोमट होती है इन मृदाओं में पत्तियों की खाद अधिक पाई जाती है, ऊसर या क्षारीय मृदाओं में इसकी खेती सफलतापूर्वक नहीं की जा सकती लेकिन मृदा में थोड़ी बहुत अम्लीयता का पाया जाना हल्दी के लिये अच्छा रहता है भूमि का पी.एच. मान 5-6 हो और भूमि की सतह कठोर हो।
खेत की तैयारी
मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करने के बाद 3-4 बार देशी हल या कल्टीवेटर चला दें यदि ऐसा संभव नहीं हो तो 5-6 बार देशी हल से जुताई कर दें ढेलों और खरपतवारों को नष्ट कर दें जुताई के बाद पाटा चलायें जिससे खेत में नमी सुरक्षित रहे, अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में खेत तैयार करने के उपरांत मेड़ें और नालियां बनाई जाती हैं।
रोपण समय
हल्दी के रोपण का उचित समय अप्रैल एवं मई होता है। हल्दी की बुवाई मानसून के ऊपर निर्भर करती है वर्षा के अनुसार इसकी बोवाई अप्रैल के दूसरे पखवाड़े से लेकर जुलाई के प्रथम सप्ताह तक की जाती है।
उपयुक्त किस्में
सीओ1, सुगंधा, सुवर्णा, सुरोमा, सुगना, कृष्ण, बीएसआर।
बीज बुवाई
हल्दी की बुवाई मानसून के ऊपर निर्भर करती है वर्षा के अनुसार इसकी बुवाई अप्रैल के दूसरे पखवाड़े से लेकर जुलाई के प्रथम सप्ताह तक की जाती है।
बीज
बीज के लिये हल्दी की गांठें पिछली फसल से ली जाती हैं, बोने के लिये केवल प्राथमिक घनकंद बड़े आकार के और सुविकसित आंखों वाले हो अधिक लम्बा होने पर घनकंदों को छोटे-छोटे टुकड़ों में एक या दो सुविकसित आंखें अवश्य हो।
बीज मात्रा
बीज की मात्रा घनकंदों के आकार व बोने की विधि पर निर्भर करती है। यदि मिलवां फसल बोई जाती है तो 8-10 क्विंटल घनकंद प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होते हैं जबकि शुद्ध बोई जाने वाली फसल के लिए 12-14 क्विंटल घनकंद पर्याप्त होते हैं। घनकंद बोने के लगभग 1 महीने बाद अंकुरित हो जाते हैं जबकि सिंचित भूमि में अंकुरण 15-20 दिन में हो जाता है।
सिंचाई एवं जल निकास
हल्दी की फसल को अधिक सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है बुवाई से वर्षा ऋतु आरम्भ होने तक 4-5 सिंचाइयों के लिए पर्याप्त नमी का होना अति आवश्यक है, यदि मेड़ों में नमी होने पर शीघ्र ही फसल भूमि को ढंक लेती है और वर्षा ऋतु के उपरांत प्रत्येक 20-25 दिन के अंतर पर सिंचाईयां करना लाभप्रद होता है। नवम्बर में पत्तियों का विकास होता है और घनकंद भी मोटाई में बढऩा प्रारंभ हो जाते हैं। इस समय मेड़ों पर मिट्टी चढ़ा देना लाभदायक होता है। हल्दी की फसल में जल्द निकास होना बहुत जरूरी है। खेत में पानी भरे रहने से घनकंदों का विकास सुचारू रूप से नहीं हो पाता उचित जल निकास के लिए 50 से.मी. चौड़ी और 60 से.मी. गहरी नाली बना दी जाती है।
उपज
सिंचित क्षेत्रों में 150-200 क्विंटल और असिंचित क्षेत्रों में 60-90 क्विंटल कच्ची हल्दी प्राप्त होती है। कच्ची हल्दी सुखाने पर 15 से 25 प्रतिशत रह जाती है।
पौध संरक्षण
कीट नियंत्रण- हल्दी की फसल को कीटों से अधिक हानि तो नहीं पहुंचती लेकिन कुछ कीट इसकी फसल को हानि पहुंचाते हैं जो निम्न हैं-
तना बेधक- यह कीट पौधे के नए बढ़ते हुए भागों पर लगता है और इसका रस चूस लेता है जिससे कि पौधा सूख जाता है।
रोकथाम- जिन शाखाओं पर इसका प्रकोप हो गया उनको नष्ट कर दें और नीम का काढ़ा या गौमूत्र का माइक्रोझाइम के साथ मिलाकर छिडक़ाव करें।
थ्रिप्स – यह भी पत्तियों का रस चूसता है जिससे पौधे सूख जाते हैं।
रोकथाम- रोकथाम के लिये गौ मूत्र या नीम का काढ़ा या दोनों माइक्रोझाइम के साथ मिलाकर छिडक़ाव करें।
रोग-नियंत्रण
पर्ण चित्ती – यह रोग टैफरीना मैक्युलैस नामक फफूंद के कारण होता है इस रोग में पत्तियों के ऊपरी सिरे लाल- भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हंै जो कि पूरे पत्ती पर फैल जाते हैं फलत: पत्ते सूख जाते हैं।
रोकथाम- नीम का काढ़ा या गौमूत्र का छिडक़ाव माइक्रोझाइम के साथ मिलाकर करें।