उद्यानिकी (Horticulture)

मुर्गियों की गर्मियों में देखभाल

मुर्गी दाना कम खाती है और इससे प्राप्त ऊर्जा का बड़ा हिस्सा उनके शरीर की गर्मी बरकरार रखने हेतु खर्च हो जाता हैं अत: उनका अण्डा उत्पादन कम हो जाता हैं। अण्डों का आकार तथा वजन भी कम हो जाता है। अण्डों का कवच (छिलका) पतला हो जाता हैं। इन सबके कारण अण्डों को कम बाजार मूल्य प्राप्त होता हैं।
सभी विपरीत प्रभाव गर्मी के कारण होते हैं अत: गर्मी का असर कम करने के लिए ये उपाय करें।

बाड़े में ज्यादा तादाद में मुर्गियां न रखे। इतनी ही मुर्गियां रखें ताकि वहां ज्यादा भीड़ न हो।

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बाड़े के इर्दगिर्द घने, छायादार वृक्ष लगायें। मुर्गीफार्म के चारों और सुबबूल या मेहंदी या संपूर्ण वर्ष में ज्यादातर हरे-भरे रहने वाली वनस्पति की बाड़ लगायें। इससे गर्म हवाओं के थपेड़ों की तीव्रता कम हो जाती हैं और मुर्गीफार्म के आसपास का वातावरण ज्यादा गर्म नहीं होता।

अगर मुर्गीफार्म के आसपास पेड़ पौधे नही हैं तो चारों ओर छत से सटकर कम से कम दस बारह फीट चौड़ा हरे रंग के जालीदार कपड़े का मंडप लगवाये। इससे धूप की तीव्रता कुछ कम होगी और वहां का सूक्ष्म वातावरण ज्यादा गर्म नहीं होगा।

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मुर्गीघर का छत ज्यादा गर्म नहीं होने वाली चीज से बना हो जैसे कवेलू, घांसफूस, बांबू (बांस)। अगर छत टीन की हैं तो ऊपर की सतह पर सफेद रंग लगवायें। इससे छत ज्यादा गर्म नहीं होती तथा मुर्गीघर का भीतरी तापमान में चार डिग्री सेंटीग्रेड की कमी आती हैं।

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अगर मुमकिन हैं तो छत के ऊपर टाट/बोरियां बिछा दें तथा उनको पानी की फुहार छोड़कर गीला रखें। इससे छत का तापमान कम हो जाता हैं तथा मुर्गीघर के भीतरी तापमान में चार से चौदह डिग्री सेंटीग्रेड तक कमी आ सकती हैं। इसका मतलब बाहरी वातावरण का तापक्रम अगर 44 डिग्री सेंटीग्रेड भी है तो वह घटकर 30 डिग्री सेंटीग्रेड तक नीचे आ जायेगा। आगे अगर मुर्गीघर के भीतर पंखा या फॉगर लगाया तो यह तापक्रम और भी 2 से 3 डिग्री सेंटीग्रेड से कम किया जा सकता हैं। आखिर में 27 डिग्री सेंटीग्रेड तक तापमान आ गया तो वह मुर्गियों के लिये काफी हद तक बर्दाश्त करने लायक हो जायेगा और मुर्गियों को गर्मी से तकलीफ नहीं होगी।

  • बाड़े के ईर्द गिर्द घांस के लॉन (क्यारियां) लगवाये तथा उन पर फुहार पद्धति सिंचाई करें तो आसपास के वातावरण का तापक्रम काफी कम होगा।
  • बाड़े के बगलों पर टाट/बोरियों के परदे लगवाये तथा छिद्रधारी पाईप द्वारा उन पर पानी की फुहार दिनभर पड़ती रहेगी ऐसी व्यवस्था करें। इसके लिये छत के ऊपर एक पानी की टंकी लगवायें तथा वह पाइप उससे जोड़ दें तो गुरुत्वाकर्षण दबाव से पानी पर्दों पर गिरता रहेगा। इससे कूलर लगाने जैसा प्रभाव पड़ेगा और मुर्गीघर का भीतरी तापमान काफी कम होगा जो मुर्गियों के लिये सुहावना होगा।
  • अगर मुर्गियां सघन बिछाली पद्धति में रखी हैं तो भूसे को सबेरे शाम उलट-पुलट करें।
  • बाड़े के ऊपर स्थित पानी की टंकियों को सफेद रंग लगवायें। अगर छोटे पैमाने पर मुर्गीफार्म हैं तो बड़ी मिट्टी की नांद या बड़े मटकों में रात्रि में पानी भरकर रखें। दूसरे दिन तक पानी ठंडा होगा तो वह मुर्गियों को प्रदान करें।
  • पीने के पानी में ईलेक्ट्रोलाईट पाउडर घोलकर प्रवाहित करें ताकि मुर्गियों को वह उपलब्ध हो सकें।
  • मुर्गियों के दाने को (मँश को) पानी को हल्के छींटे मारकर मामूली सा गीला करें।
  • दाने में (मॅश में) प्रोटीन की मात्रा बढ़ायें ताकि मुर्गियों के शरीर भार में, पोषण स्तर में और अण्डों का आकार, छिलका, वजन सामान्य रहें।
  • मुर्गियों के पीने के पानी में विटामीन ‘सीÓ एक हजार मुर्गियों के दाने में दस ग्राम इस अनुपात में मिलाकर खिलायें।

इस प्रकार प्रबंधन करें तो मुर्गियों को गर्मी के प्रकोप से काफी हद तक बचाया जा सकता हैं तथा इससे अण्डा उत्पादन तथा आकार और वजन में कमी नहीं होगी। अण्डों का छिलका पतला नहीं होगा और वे अनायास नहीं टूटेंगे। नुकसान कम होगा और अण्डा उत्पादन व्यवसाय किफायती होगा।

नुस्ख
भारत में कई लोग अण्डा उत्पादन हेतु मुर्गीपालन करते हैं। अण्डा उत्पादक मुर्गियां विदेशी या संकर हैं तो उन पर गर्मियों का असर ज्यादा पड़ता हैं। उनके सांस की गति, दिल की धड़कने तथा उनके शरीर का अंदरूनी तापक्रम बढ़ जाते हैं। उनका दाना ग्रहण कम हो जाता है तथा पानी ज्यादा पीती हैं। ज्यादातर मुर्गियां पीने के पानी के बर्तन के ईद-गिर्द ही खड़ी रहती हैं। सघन बिछाली पद्धति में मुर्गियां रखी हैं तो मुर्गियां बाड़े में तितर-बितर होकर दूर-दूर खड़ी रहती हैं। कुछ मुर्गियां लगातार चोंच खोलती हैं तथा बंद करती हैं। कुछ मुर्गियां गर्मी का असर कम करने हेतु अपने पिछले हिस्से पर चोंच मारकर पंख तोडऩे की कोशिश करती हैं। ज्यादातर मुर्गियां सुस्त दिखाई देती हैं तथा पंख फुलाकर खड़ी रहती हैं। अत्यधिक गर्मी पड़े तो कुछ मुर्गियां बेहोश भी हो सकती हैं क्योंकि उनके मस्तिष्क में स्थित शरीर का तापक्रम नियंत्रित करने वाली प्रणाली ठीक से कार्य नहीं कर सकती।

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