Horticulture (उद्यानिकी)

कम लागत में पैरा मशरूम की खेती

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  •  विजय कुमार , डॉ. रंजीत सिंह राजपूत
  • डॉ. हरिशंकर , डॉ. केशव चंद्र राजहंस,  कृषि विज्ञान केंद्र -कोरिया
    (इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़)

28  मई 2021, रायपुर, छत्तीसगढ़ । कम लागत में पैरा मशरूम की खेती – पैरा मशरूम का वैज्ञानिक नाम – Volvariella volvacea है। भारत में इसे ‘चीनी मशरूम’, धान का पुवाल मशरूम, पैरा मशरूम एवं गर्मी मशरूम के नाम से भी जाना जाता है। सबसे अधिक उष्ण कटिबंधीय और उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में अनुकूलित है।पैरा मशरूम का वैज्ञानिक नाम – Volvariella volvacea है। भारत में इसे ‘चीनी मशरूम’, धान का पुवाल मशरूम, पैरा मशरूम एवं गर्मी मशरूम के नाम से भी जाना जाता है। सबसे अधिक उष्ण कटिबंधीय और उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में अनुकूलित है। पैरा मशरूम एक खाद्य मशरूम है। दुनिया भर में, स्ट्रॉ मशरूम तीसरे सबसे अधिक खपत मशरूम हैं। धान-पुआल मशरूम (पैरा मशरूम) एक स्वादिष्ट, पौष्टिक भोजन और समृद्ध प्रोटीन से परिपूर्ण है। इसकी उत्पादन लागत कम है और लगभग 40-45 दिनों की फसल अवधि है – जो इसे उगाने वाले किसानों के लिए गरीबी उन्मूलन का एक प्रभावी साधन है। धान का पुआल इस मशरूम को उगाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले सबसे प्रचलित सबस्ट्रेट्स में से एक है। यह प्रजाति कई सेल्यूलोसिक सब्सट्रेट पर अच्छी तरह से बढ़ती है, जैसे कि धान का पुआल, गन्ना बैगस, केले के पत्ते, जलकुंभी, कपास की अपशिष्ट आदि पैरा मशरूम उत्पादन अत्याधुनिक तकनीकों के विकास के साथ तेज किया जा सकता है।

इतिहास

सर्वप्रथम इसकी खेती चीन में सन् 1822 में की गईं थी। शुरूआत में पुआल मशरूम की खेती बौद्ध अनुयायियों द्वारा स्वंय उपयोग के लिए की गई थी और सन् 1875 के बाद यह शाही परिवार को उपहार स्वरूप भेट की जानें लगी। ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि इस मशरूम की खेती की शुरूआत लगभग 300 वर्श पूर्व अठारहवी शताब्दी में हुई तथा सन् 1932 से 1935 के दौरान इस मशरूम की खेती फिलीपिन्स, मलेशिया तथा अन्य दक्षिणी एशियाई देशों में भी शुरू की गई। भारत वर्ष में इस मशरूम की खेती सर्वप्रथम सन् 1940 में की गई, हालांकि व्यवस्थित ढंग से इसकी खेती का प्रयास 1943 मे किया गया। वर्तमान में यह मशरूम समुद्रतटीय राज्यों जैसे कि उड़ीसा, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडू, केरल तथा पश्चिम बंगाल मे सर्वाधिक लोकप्रिय है। छत्तीसगढ़ में जांजगीर चांपा, महासमुंद, बिलासपुर, मुंगेली, रायपुर, धमतरी, कोरिया, जशपुर क्षेत्रों में भी उत्पादन किया जाता है। पैरा मशरूम उगाने का सही समय भारत मे धान पुवाल मशरूम माह अप्रैल के मध्य से माह सितम्बर तक उगाई जाती है तथा इस मशरूम को प्राकृतिक रूप से सड़े गले धान के पुआल में जुलाई से सितंबर तक पाई जाती है।

जलवायु

इसके लिए तापमान बीज फैलाव हेतु (सेल्सियस) 32-38, एवं फलन हेतु (सेल्सियस) 28-32 तथा नमी 80-85 (प्रतिशत) तक हो।

आवश्यक सामग्री

धान का पुआल: पैरा मशरूम की खेती में धान का पुआल सबसे महत्वपूर्ण है। यह धान के पौधे का उप-उत्पाद है। बिस्तर सामग्री के लिए इस्तेमाल किया जाता है। 1.5 फीट लंबे एवं 1/2 फीट चौड़े बंडल 1-2 किलो ग्राम पैरा बंडल की 16 से 20 बंडल की 1 बेड बनाने के लिए जरूरत होती है।
मशरूम स्पॉन: ‘स्पॉन’ या ‘मशरूम बीज पूरी प्रक्रिया की पहली आवश्यकता है। हमेशा उस पर सफेद माइसेलियम के साथ स्वस्थ स्पॉन खरीदें। अवांछित रंग जैसे, गहरे भूरे, काले और हरे रंग के साथ स्पॉन को त्यागें।

फॉर्मेलिन और कैल्शियम कार्बोनेट: पैरा को उपचारित करने के लिए 100 लीटर पानी के लिए 135 मिलीलीटर फॉर्मेलिन एवं कैल्शियम कार्बोनेट पैरा के पीएच को कम करने के लिए 100 लीटर पानी में 200 ग्राम डाला जाता है।
बेसन ( चना/लाकडी ): 150 से 200 ग्राम प्रति बेड।
पारदर्शी पॉलीथिन शीट: पॉलीथिन शीट का उपयोग स्पॉन वाले मशरूम बेड को ढंकने के लिए किया जाता है।
पानी की टंकी या प्लास्टिक ड्रम: जरूरत के हिसाब से पानी की टंकी का आकार और संख्या बढ़ाई जा सकती है। 12म4म2 फीट के मानक आकार के टैंक को प्राथमिकता दी जाये। सीमेंट और ईंटों का उपयोग करके एक स्थायी टैंक का निर्माण किया जाता है।
पानी का स्रोत: हमेशा साफ पानी का उपयोग करें। कुंआ बोरवेल, नदी का ताजा पानी, मीठे पानी का अन्य स्रोत।

पैरा मशरूम उगाने की विधि

खुले में पैरा मशरूम की खेती: इस विधि से खेती करने के लिए 100 सेमी लंबीम60 सेमी चौड़ीम15 – 20 सेमी ऊंची ईंटों की या क्यारियाँ बनाते हैं सीधी धूप तथा बारिश से बचाने के लिए इसके ऊपर शेड बना दिया जाता है। बाहरी खेती में बारिश, हवा या उच्च तापमान के संपर्क में आने के जोखिम होते हैं, जो उपज को कम करते हैं।
कमरे के अंदर पैरा मशरूम की खेती: कमरे के अंदर बाँस या लोहे के एंगल से रैक बनाये। एक के ऊपर एक 45-50 सेमी ऊंची चार रैक बनाये और सबसे नीचे वाली रैक जमीन से 20-30 सेमी ऊपर हो। इस विधि में एक विशेष प्रकार के कंपोस्ट खाद तैयार की जाती है। यह महंगी विधि है।
जगह – समान्य तौर पर 7-10 स्क्वायर फीट प्रति बेड की आवश्यकता होती है ।

पैरा मशरूम उत्पादन के तरीके
  • धान पैरा के 1.5 फीट लंबे एवं 1/2 फीट चौड़े बंडल 1-2 किलो ग्राम के एक बंडल तैयार करें उस बंडल के दोनों किनारे को बांधे रखें। एक क्यारी बनाने के लिये 12-16 बंडल की जरूरत होती है।
  • इस बंडल को 14-16 घंटों तक 200 ग्राम कैल्शियम कार्बोनेट, 135 मि. ली. फार्मेलिन प्रति 100 लीटर साफ पानी में भिगाते है उसके बाद पानी को निथार देते हैं।
  • उपचारित बंडलों से पानी निथार जाने के 1 घंटे बाद प्रति बेड 120-150 ग्राम पैरा मशरूम की बीज मिलाते हैं। बिजाई करते समय 4 बंडल को आड़ा बिछाकर उसके किनारे में बीज डालते हैं और उसमे थोड़ा बेसन उसके ऊपर 4 बंडल को तिरछा बिछाते है फिर उसके बाद बीज और बेसन मिलाते हैं। ऐसे ही चार परत तक इस विधि को दोहराते हैं। तब कहीं जाकर एक क्यारी बनता है।
  • बीज युक्त बंडलों को अच्छी तरह से चारों ओर से पालीथिन से 8-10 दिनों के लिये ढंक देते हैं।
  • कवकजाल फैल जाने के बाद पालीथिन सीट को हटाया जाता है। उसके बाद 5-6 दिनों तक हल्का पानी का छिड़काव सुबह शाम करते हैं।
  • पैरा मशरूम की कलिकायें 2-3 दिन में बनना प्रारम्भ हो जाती है।
  • 4-5 दिनों के भीतर मशरूम तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है।
अनचाहे मशरूम/इंकीकैप (कोप्रीनस प्रजाति) 

भारत में धान के पुआल मशरूम की खेती में एक तरह की खरपतवार हैं। कॉपरिनस प्रजाति के कारण होने वाली क्षति, धान के पुआल मशरूम में सबसे बड़ी समस्या है। स्ट्रॉ मशरूम की तुलना में छोटी अवधि (1 सप्ताह) में अपने जीवन चक्र को पूरा करता है। इंकीकैप शुरू में लंबे, पतले और सफेद होते हैं और बाद में काला रंग के होकर इसका कैप खुल जाता है जिससे असंख्य बीजाणु निकलते हैं। जिससे पैरा मशरूम की बेड में फैल जाता है और बीज के कवकजाल को फैलने से रोकता है जिससे उपज में कमी या फिर मशरूम उगते ही नहीं है। कारण – पैरा के बंडल का सही तरीका से पाश्चुरीकरण का ना होना, नमी का कम ज्यादा होना और तापमान का प्रबंधन अच्छा से नहीं कर पाने के कारण होता है।

प्रबंधन: सब्सट्रेट की नमी को 60 से 65 प्रतिशत के बीच रखें, क्योंकि उच्च नमी कोप्रीनस की वृद्धि का बढ़ावा देता है। इंकीकैप शुरू में दिखाई दे तो तुरंत निकालकर उसे गढ्ढा खोद कर मिट्टी में दबा देना चाहिए । पैरा के बंडल का सही तरीका से पाश्चुरीकरण करने से नियंत्रित करने के लिए सबसे प्रभावी उपायों में से एक है। पैरा के बंडल को गर्म या भाप विधि से उपचारित करें।
कार्बेन्डाजिम (75 पीपीएम) और फॉर्मेलिन (500 पीपीएम) मिश्रित भूसे के बंडलों को 10 मिनट के लिए मिश्रित करने से पहले पुआल के आंशिक कीटाणुशोधन का उपयोग बीमारियों और मोल्ड को कम करने के लिए भी किया जाता है। पैरा मशरूम की खेती में होने वाली बीमारियों और मोल्ड के प्रबंधन के लिए जिनेब (0.2 प्रतिशत) या कैप्टान (0.2 प्रतिशत) के पुआल और छिड़काव करके रोका जा सकता हैं।

फल और कटाई

अनुकूल नमी और तापमान की स्थिति में लगभग 20-25 दिनों के बाद मशरूम की कटाई होती है। अकेले धान के पुआल में, 15-18 किलोग्राम/100 किलोग्राम गीला सब्सट्रेट प्राप्त किया जा सकता है। मशरूम की कटाई तब की जाती है जब वोल्वा सिर्फ टूटता है और मशरूम अंदर से बाहर निकलता है। धान के पुआल मशरूम प्रकृति में बहुत नाजुक होते हैं और केवल 2-3 दिनों के लिए रेफ्रिजरेटर के स्थिति में संग्रहीत किए जा सकते हैं। मशरूम को छाया या धूप में सुखाया जा सकता है।
उपज – प्रति बेड लगभग 4-5 किलो तक प्राप्त होती है।

फसल चक्र – लगभग 40-45 दिनों की होती है। भंडारण – रेफ्रिजरेटर मे 2-3 दिन तक रख सकते हैं।

आर्थिक विश्लेषण

उपज – प्रति बेड लगभग 4-5 किलो।
मूल्य – लगभग 150 – 250 रू. प्रति किलो ग्राम की दर से बाजारों में बिकता है।
खर्च – प्रति बेड लगभग 100-150 रुपये खर्च होती है।
आय – शुद्ध लाभ प्रति बेड लगभग 250 से 350 रुपये होती है।

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