उद्यानिकी (Horticulture)

खरीफ फसलों की तैयारी कैसे करें

खरीफ फसलों की तैयारी कैसे करें

खरीफ फसलों की तैयारी कैसे करें – किसानों को स्थान विशेष की मिट्टी, जलवायु, वर्षा की मात्रा एवं संसाधन के आधार पर कहाँ कौन सी फसलें करना उपयुक्त है, इसका ज्ञान होना जरूरी है क्योंकि धरती की अनुकूलता के आधार पर खेती करनी चाहिए। अगर हम राजस्थान की बात करें तो राज्य का कुल खेती योग्य क्षेत्र लगभग 20 मिलियन हेक्टेयर है, और इसमें से केवल 20 प्रतिशत भूमि सिंचित है। राजस्थान के किसानों को सिंचाई के विभिन्न स्रोतों पर निर्भर रहना पड़ता है। जिसमें ट्यूबवेल, कुएँ और टैंक शामिल हैं। कुछ भाग में नहरों से भी सिंचाई की जाती हैं लेकिन खरीफ सीजन में मुख्यतया बरसात पर ही निर्भर रहना पड़ता है।

खेत की तैयारी

सूडकरना : सूड ज्यादातर वर्षा आधारित खेती में किया जाता है क्योंकि फसल कटने के बाद से अगले मानसून आने के बीच में किसान जमीन की जुताई भूक्षरण को रोकने की वजह से जुताई नहीं करता है अत: इस बीच प्राकृतिक रूप से खेत में उग आई बेकार की खरपतवार या झाडिय़ों को खेत से निकालने की प्रक्रिया को सूड करना कहते हैं। इस प्रक्रिया में किसान द्वारा खेत में से आँकड़ी, झाडिय़ाँ तथा सीनियों के पौधे बारिश के आने से पहले काट लिये जाते हैं, जिससे खेत में हल चलाने में आसानी होती है और बीज भी अच्छी प्रकार से उगते हैं, क्योंकि बड़ी खरपतवार (काँटों) से हल चलाने वालों को परेशानी होती है ।

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कानाबन्दी : राजस्थान की तीक्ष्ण गर्म आँधियों में भूमि के जैविक कणों को उडऩे से बचाने की तकनीक को कानाबंदी कहते हैं। कानाबंदी की प्रक्रिया खेत में इकट्ठा हुए कार्बनिक कणों को गर्मियों के समय हवा के द्वारा उड़कर दूर जाने से बचाती है। ये कण खाद का काम करते हैं और भूमि की उर्वरक क्षमता को बढ़ाते हैं। यह प्रक्रिया भूमि के कटाव को भी रोकने में मदद करती है। सीनियो या झाडिय़ों को कूटकर खेत के बीच में डाल दिया जाता है, जिससे खेत की रेत खेत में रुकती है उपजाऊ रेत और उड़कर आई खाद खेत मे ठहर सकती है। साथ ही काँटे और सीनिया खाद के रूप में जमीन की उर्वरकता बढ़ाते हैं। गर्मी के दिनों में लू तथा आँधी ज्यादा चलती है इसलिये इसका महत्व ज्यादा होता है।

फसलों का चयन : जलवायु और मृदा के आधार पर हर जगह अलग-अलग फसलों की बुवाई की जाती है ऐसे पश्चिमी राजस्थान में बाजरा की खेती होती है जबकि उतरी राजस्थान में कपास में पूर्वी राजस्थान में सोयाबीन उड़द दक्षिणी राजस्थान में मक्का मुख्य रूप से होती है बुवाई करने से पहले हमें वहां की जलवायु और मिट्टी के आधार पर फसलों का चयन करना चाहिए ।

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मिट्टी के आधार पर फसलों का चयन:

रेतीली : बाजरा, तिल, अरंडी
भूरी रेतीली : मूँगफली, मूंग, मोठ, बाजरा
लाल पीली : मूंग , मोठ, मूँगफली
लाल लोमी : मक्का, गन्ना
मिश्रित लाल काली : कपास
मध्यम काली : तिलहनी फ़सलें
जलोढ़ : चावल,कपास, सोयाबीन
लवणीय : अरण्डी
मुख्य रूप से राजस्थान में 8 प्रकार की मृदा पाई जाती है उनके आधार पर फसलों का वर्गीकरण उक्त प्रकार से किया गया है

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बीज का चयन :

कृषि उत्पादन में बीज का महत्वपूर्ण योगदान है। जैसा बोओगे वैसा काटोगे यह मर्म किसानों की समझ में आना चाहिए किसानों को उन्नत बीज का चयन करना चाहिए । बीज हमेशा अधिकृत दुकानदार से ही ले । उत्तम गुणवत्ता वाला बीज सामान्य बीज की अपेक्षा 20 से 25 प्रतिशत अधिक कृषि उपज देता है। अत: शुद्ध एवं स्वस्थ प्रमाणित बीज अच्छी पैदावार का आधार होता है। प्रमाणित बीजों का उपयोग करने से अच्छी पैदावार मिलती है।

फसल चक्र :

फसल चक्र अपनाना एक अच्छे और प्रगतिशील किसान की पहचान होती है भूमि की उर्वराशक्ति बनाए रखने तथा अधिक पैदावार प्राप्त करने के लिए किसानों को फसल चक्र अपनाना जरूरी है। दलहनी फसलों को फसल चक्र में शामिल करना चाहिए जिससे खेत की उर्वराशक्ति बनी रहे। एक फसल एक ही खेत मे बार बार नहीं लेनी चाहिए।

भूमि उपचार :

भूमि उपचार करने से भूमि जनित रोगों और कीटों की समस्या से छुटकारा मिल सकता है। दीमक एक मुख्य समस्या है जहाँ भी दीमक का प्रकोप है वहां पर क्विनालफॉस 1.5 प्रतिशत चूर्ण 25 किग्रा/हे. की दर से भूमि में बुवाई से पूर्व मिलाना चाहिए दीमक को कम करने के लिए खेत में सूखे फसल अवशेष हटा देने चाहिए। कच्चा खाद भी खेत में नहीं डालना चाहिए। जिससे दीमक में काफी हद निजात मिल सकती है।

बीजोपचार :

बचाव के उपाय की तर्ज पर अगर हमे फसलों को रोगों से बचाना है तो बीज को उपचारित करके काम लेना चाहिए। जिससे काफी हद तक फसलों को रोगों से बचाया जा सकता है जो बीज हम घर का काम मे लेते हैं उसे आवश्यक रूप से उपचारित करना चाहिए। बीजोपचार सबसे पहले बीज को फफूंदनाशी फिर कीटनाशी और सबसे बाद में कल्चर से उपचारित करना चाहिए।

बुवाई का तरीका :

सामान्यत: बुवाई आज भी किसानों द्वारा छिटकवां विधि ही काम में ली जा रही है जिसमें सिंचाई, निराई- गुड़ाई में भी समस्या का सामना करना पड़ता है बुवाई की सर्वोत्तम विधि है कतार में इसमें किसान को सीडड्रिल का उपयोग करना चाहिए जिससे कि हम बीज की उचित मात्रा डाल सकें। इसमें कतार से कतार और पौधे से पौधे की दूरी निश्चित कर सकते हैं जो विभिन्न कृषि कार्य में लाभदायक होती है ।

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बीजदर:

बाजरा 4 किग्रा/हे.
ज्वार 9-10 किग्रा/हे.
कपास 12 किग्रा/हे.
अमेरिकन कपास 24 किग्रा/हे.
बीटी कपास 1.8 किग्रा/हे.
मूंगफली गुच्छेदार 100 किग्रा/हे.
मूंगफली फैलने वाली 60-80 किग्रा/हे.
तिल 2-2.5 किग्रा/हे.
अरंडी 12-15 किग्रा/हे.
मूंग 15-20 किग्रा/हे.
ग्वार 15-20 किग्रा/हे.
मोठ 8-10 किग्रा/हे.

जहाँ सिंचाई संसाधनों की कमी है या बरसात का औसत कम रहता है वहां पर कम पानी वाली किस्मों का चयन करना चाहिए जो कम पानी में कम समयावधि में पक कर तैयार हो।

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