Farmer Success Story (किसानों की सफलता की कहानी)

धर्मेंद्र ने जैविक खेती से जमाई धाक

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सफलता की कहानी

इंदौर। जैविक खेती धीरे-धीरे लोकप्रियता की ओर अग्रसर है. उज्जैन विकासखंड के ग्राम मतानाखुर्द निवासी श्री धर्मेंद्र सिंह पिता श्री कमलसिंह पंवार गत तीन वर्षों से जैविक खेती कर रहे हैं .रासायनिक खाद और दवाइयों का उपयोग नहीं करते हैं। गत खरीफ की सोयाबीन फसल में भी जैविक औषधियों के उपयोग से रासायनिक की तुलना में 4100 रुपए का अतिरिक्त लाभ हुआ।

श्री धर्मेंद्र ने कृषक जगत को बताया कि इस साल खरीफ में सोयाबीन की फसल अतिवृष्टि से प्रभावित हुई , जिससे औसत उत्पादन 1 क्विंटल / बीघा रहा.खरीफ में कोई रासायनिक का इस्तेमाल नहीं किया.अभी 3 बीघे में से आधे -आधे बीघे में लहसुन, काले गेहूं, बंशी देसी गेहूं लगाए हैं, जबकि शेष डेढ़ बीघे में शुगर फ्री गेहूं लगाया है। पहले बाजार में उपलब्ध महंगे जैविक पदार्थ उपयोग करते थे. लेकिन बाद में भोपाल में आयोजित श्री सुभाष पालेकर में जैविक शिविर में भाग लेने के बाद घर पर ही जैविक कीटनाशक बनाने लगे। जिनमें नीमास्त्र, ब्रह्मास्त्र , जीवामृत , घन जीवामृत आदि शामिल हैं। इसमें गाय के गोबर , गोमूत्र , विभिन्न पत्तों, गुड़ और बेसन का उपयोग किया जाता है। दस पशुधन में एक भैंस के अलावा शेष गाये हैं. यूँ तो इनकी खेती का रकबा 26 बीघा है, जिसे धीरे – धीरे पूर्णरूप से जैविक करने हेतु श्री पंवार प्रयत्नशील हैं। उज्जैन विकासखंड के वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी श्री एस.के. पाठक ने बताया कि जीरो बजट फार्मिंग के तहत श्री धर्मेंद्र सिंह को प्रोत्साहित किया. ये जैविक उर्वरक, जैविक पौध संरक्षण औषधि का उपयोग कर गोपालन के साथ जैविक खेती कर रहे हैं। खरीफ में सोयाबीन में भी किसी रसायन का उपयोग नहीं किया। नरवाई भी नहीं जलाते हुए उसका उपयोग खेत में ही करते हैं.सोयाबीन में जैविक खेती से मृदा की उर्वरा शक्ति को नुकसान पहुंचाए बिना रासायनिक की तुलना में 4100 रुपए का लाभ हुआ। गेहूं की फसल कीट और पादप रोग मुक्त है।

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