किसानों की सफलता की कहानी (Farmer Success Story)

उन्नत कृषि तकनीक बनी वरदान

सफलता की कहानी

06 दिसम्बर 2022, देवगढ़: उन्नत कृषि तकनीक बनी वरदान – राजसमन्द जिले की आमेट तहसील के गाँव पनौतिया के किसान श्री शंकरलाल जाट कृषि विभाग के सम्पर्क में क्या आये उनकी सोच और खेती का तरीका ही बदल गया। विभागीय अनुदानित योजनाएं तथा तकनीकी जानकारी उनके लिये वरदान की तरह साबित हुई, जिससे उनके परिवार की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ और आज वे अन्य किसानों के लिये भी प्रेरणा साबित हो रहे हैं।

उन्नत कृषि तकनीक बनी वरदान

उनके परिवार की शामिलाती लगभग 5 हेक्टर भूमि सिंचित पानी की कमी के कारण लगभग आजीविका पालन तक ही सीमित थी। पारम्परिक खेती के तौर पर खरीफ में मक्का तथा रबी में सरसों फसल की बुआई कर संतोष हासिल करने वाले श्री शंकरलाल और परिजन जब कृषि विभाग की योजनाओं से रू-ब-रू हुए तो उन्होंने बुआई की छिटकवां विधि को छोड़कर लाईन में फसलों की बुआई करना प्रारंभ किया। खेत पर लगभग 500 पौधे चकैया किस्म के आंवले तथा 300 पौधे उन्नत किस्म के सीताफल के पौधे लगाये गये। सिंचित जल की व्यर्थ बर्बादी रोकने तथा जल की बचत बाबत विभागीय अनुदान पर मिनी फव्वारा तथा बून्द-बून्द सिंचाई पद्धति की स्थापना की गई।

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अच्छी अनुदान सहायता तथा पानी की काफी बचत देखकर उनके परिवारजन काफी उत्साहित हुए तथा वर्षा जल संरक्षण की उपयोगिता समझ कर वर्ष 2020-21 में उनकी धर्मपत्नी श्रीमती सुन्दर देवी द्वारा खेत पर 20 गुणा 20 मीटर लम्बाई-चौड़ई में तथा 3 मीटर गहरा फार्म पौण्ड का निर्माण करवाया गया, जिस पर उन्हें विभाग की तरफ से रुपये 63000 का अनुदान प्राप्त हुआ। फार्म पौण्ड में संरक्षित जल से गत वर्ष उनके द्वारा मुंग फसल में न सिर्फ जीवनदायिनी सिंचाई की बल्कि रबी में सरसों की फसल में भी एक सिंचाई प्राप्त की गई।

लेकिन बेसहारा पशुओं एवं जंगली जानवरों द्वारा फसलों को नुकसान की समस्या का कोई समाधान नहीं मिल रहा था। विभाग द्वारा कांटेदार तारबन्दी पर अनुदान सहायता की जानकारी प्राप्त कर वर्ष 2021-22 में श्रीमती सुन्दर देवी पत्नी श्री शंकरलाल, श्रीमती किस्तुरदेवी पत्नी श्री चुन्नीलाल तथा श्री चुन्नीलाल पुत्र श्री गोकलराम जाट द्वारा सामूहिक रूप से आवेदन कर 751 मीटर तारबन्दी का कार्य भी करवाया, जिस पर विभाग द्वारा आवेदकों को कुल 75100 रु. की अनुदान सहायता से लाभान्वित किया गया।

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कम लागत में अधिक उत्पादन और श्रम में कमी के महत्व को समझ कर इंटरक्रापिंग फसल विविधीकरण के रूप में आंवले के पौधों के बीच में ड्रिप संयंत्र पर कपास की फसल ली जा रही है साथ ही मोंगनी के पौधे रोपे गये हैं। गर्मी में खरबूजा तथा तरबूज की फसल भी ली जाती है। सीताफल के पौधों के बीच में सरसों की फसल ली जा रही है। श्री जाट बताते है कि उनके द्वारा रासायनिक उर्वरकों का नगण्य उपयोग कर अधिकाधिक कम्पोस्ट तथा गोबर की खाद का उपयोग किया जाता है।

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किसी भी तकनीकी समस्या पर कृषि विभाग द्वारा सलाह ली जाकर उस पर समय पर अमल करते है। उनकी कृषि तकनीकी सफलता में वे और परिवारजन तत्कालीन स्थानीय कृषि पर्यवेक्षक श्री रमेश यादव, श्री महेन्द्रसिंह चौधरी तथा सहायक निदेशक कृषि श्री फूलाराम का योगदान मानते है।

– फूलाराम मेघवाल

सहायक निदेशक कृषि,

देवगढ़ (राजस्थान)

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