Editorial (संपादकीय)

नए बीज बिल में किसको हानि किसको लाभ

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खेती में बीज की अहम भूमिका है। कृषि से जुड़ी किसी भी नीति, फसल उत्पादन, खाद्य सुरक्षा, आजीविका की चर्चा में बीज मूल में होता है। बीज उत्पादन, बीज व्यापार पर प्रभावी नियंत्रण हेतु विभिन्न स्तरों पर निर्धारित दायित्वों के सही ढंग से सक्षम क्रियान्वयन के लिए केन्द्र सरकार ने बीज विधेयक 2019 प्रस्तुत कर आपत्तियों एवं सुझाव आमंत्रित किए हैं। इसी विषय को आगे बढ़ाता श्री आर.बी.सिंह का ये आलेख कृषक जगत के पाठक भी सीड विधेयक 2019 पर अपनी राय

ईमेल : info@krishakjagat.org  या वाट्सएप – 9826034864 पर भेज सकते हैं।               -संपादक

नया सीड बिल 2019 आ गया है। बीज अधिनियम के प्रस्ताव को सीड बिल कहते हैं और पार्लियामेन्ट के दोनों सदनों में पास होने पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर होने पर वह बीज अधिनियम कहलाएंगे। भारत में वर्ष 1966 में पहला बीज अधिनियम बना। लगभग 54 वर्ष के काल खंड में विभिन्न नई तकनीकियों जैसे बी.टी. जीन, टर्मिनेटर जीन, बीज नियंत्रण आदेश ने आकार लिया। अत: नए बीज अधिनियम की आवश्यकता महसूस की गई।

नये सीड बिल पर विचार :

नये सीड बिल पर सर्वप्रथम वर्ष 2000 में श्री साहब सिंह वर्मा सांसद की अध्यक्षता में विचार किया गया और 30 धाराओं के साथ रूपरेखा बनाई गई। इसके बाद वर्ष 2002 में कुछ सुधार कर 45 धाराओं के साथ प्रस्ताव (सीड बिल) तैयार किया गया। वर्ष 2004 में 49 धाराओं का सीड् बिल लाया गया। 2010 में कुछ और संशोधन कर पुन: सीड बिल को नया रूप दिया गया। अब सीड बिल 2019 में बीज कानून शिल्पकारियों ने 53 धाराओं के साथ मूर्तरूप दिया है।

सीड बिल के मुख्य प्रावधान: 

(1) धाराएं : बीज अधिनियम 1966 में मात्र धाराएं थी जबकि सीड बिल 2019 में धाराएं हैं जो 10 अध्यायों में विभाजित हैं।
(2)  परिभाषाएं : पूर्ववत्र्ती अधिनियम में मात्र 16 परिभाषाएं हैं। इसमें मुख्य कृषि, केन्द्रीय बीज कमेटी, सी.एस.टी.एल., राज्य प्रमाणीकरण संस्था डीलर आदि है। कृषि में कृषि, बागवानी, औषधीय फसलें, सुगंधित पौधे तथा पौधरोपण (Plantation) भी सम्मिलित है मिस ब्रांड बीज की विस्तृत परिभाषा दी गई है जबकि 1966 के अधिनियम में मिस ब्रांड बीज की कोई परिभाषा नहीं थी।

सैन्ट्रल सीड कमेटी :

केन्द्रीय सरकार को राय देने हेतु भारत सरकार अधिसूचना द्वारा सैन्ट्रल सीड कमेटी की रचना कर सकती है इसमें केन्द्रीय सरकार के 12 प्रतिनिधी 5 जोन में से प्रत्येक जोन से राज्य सरकार का सचिव, 5 राज्य बीज प्रमाणीकरण संस्थाओं के प्रतिनिधि, राज्यों से अन्य 5 प्रतिनिधि यदि उपरोक्त सचिव एवं प्रमाणीकरण में निहित न किये गये हों। प्रत्येक जोन से एक कृषक प्रतिनिधि यानी 5। एक बीज विज्ञान के प्रतिनिधि होंगे परन्तु बीज विकास क्षेत्र से दो। बीज उद्योग से पूरे देश से दो व्यक्तियों का प्रतिनिधित्व बहुत कम है और प्रत्येक जोन से 5 नहीं तो 2 प्रतिनिधी तो अवश्य होने चाहिए और वे भी निजी बीज उद्योग से। केन्द्रीय स्तर पर बनी सी.एस.सी. अपनी सुविधा हेतु अन्य उपसमितियों (Sub Committee) बना सकती है। राज्य स्तर पर राज्य सरकार एवं केन्द्रीय स्तर पर सी.एस.सी. को परामर्श देने हेतु राज्य बीज समिति बना सकती हैं।

फसलों किस्मों को पंजीकरण :

बीज अधिनियम 1966 में किस्मों को अधिसूचित किया जाता था परन्तु प्रस्तुत बिल में नोटिफिकेशन की जगह रजिस्ट्रेशन शब्द ने स्थान ले लिया है। ब्रांड सीड केवल पंजीकृत किस्मों का ही बाजार में बिक सकेगा। राज्य स्तर पर राज्य फसलों/किस्मों तथा केन्द्रीय  स्तर पर नेशनल किस्मों का पंजीकरण होगा। राज्य तक सीमित किस्म राज्य किस्म और एक राज्य से अधिक राज्यों में उगाई जाती है वह राष्ट्रीय किस्म कहलाएगी। किस्म का पंजीकरण दस वर्ष के लिए होगा।

किस्म :

नए प्रस्तावित सीड बिल किस्म को विस्तार से परिभाषित किया है और ई.डी.वी. (Essentally Derived Variety – पुरानी लोकल किस्में) कृषक किस्म, वर्तमान किस्म, बी.टी. जीन किस्में आदि सम्मिलित की गई है।

किस्मों का विवरण, मूल्यांकन एवं क्षतिपूर्ति :

प्रस्तावित बीज अधिनियम में यह प्रावधान किया है कि उत्पादक वितरक या विक्रेता किस्म भारत सरकार द्वारा निर्धारित पद्धति से दर्शाये गए तरीके से कृषक को बेची जाने वाली किस्म के गुणों के बारे में सूचित करेगा और किस्म प्रदर्शित गुणों के आधार पर अपनी क्षमता नहीं प्रदर्शित कर पाती तो कृषक को क्षतिपूर्ति का अधिकार होगा और कृषक उपभोक्ता संरक्षण न्यायालय से अपनी क्षतिपूर्ति ले सकेगा। सीड बिल 2010 में क्षतिपूर्ति का प्रावधान क्षतिपूर्ति समिति Compensation Committee का गठन कर उसके माध्यम से देने का प्रावधान रखा गया था वह बीज उद्योग के लिए तथा कृषकों के हित में था परन्तु यह दायित्व पुन: उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत रखा गया है उपभोक्ता न्यायालयों में विभिन्न विषयों के बाद आने से निर्णय में अधिक समय लगता है जबकि क्षतिपूर्ति समिति से कम्पैनशेसन लेने में कम मामले होने से सुविधा मिल जाती।

उत्पादन एवं प्रोसेसिंग ईकाई का पंजीकरण :

बीज उत्पादन एवं बीज प्रोसेसिंग प्लांट ईकाई का पंजीकरण बीज प्रमाणीकरण संस्थाओं में न होकर राज्य सरकार के साथ हेागा तथा योग्यता प्राप्त स्टाफ के साथ होगा अर्थात् प्रासेसिंग प्लांट के पंजीकरण के लिए बी.एस.सी. एग्री., एमएससी. एग्री. योग्यता प्राप्त श्रमशक्ति रखना आवश्यक हो जायेगा तथा प्रमाणित एवं लेबल बीजों का सभी विवरण राज्य सरकार को देना होगा।

बीज विक्रेता :

सभी बीज विक्रेताओं का पंजीकरण राज्य सरकार के पास होगा। बीज विक्रेताओं का पंजीकरण पहले 3 वर्ष के लिए होता था जो अब 5 वर्ष कर दिया गया है वास्तव में यह कीटनाशी अधिनियम की तरह अनन्त काल तक होना चाहिए। एक हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र को फ्रूट नर्सरी का भी पंजीकरण होना आवश्यक है।

बीज प्रमाणीकरण :

बीज अधिनियम 1966 में बीज प्रमाणीकरण स्वैच्छिक था और नये बिल में भी यही प्रावधान रखा गया है इससे पहले समाचार पत्रों द्वारा यह भ्रम फैलाया गया था कि शत-प्रतिशत बीजों का प्रमाणीकरण होगा जो सत्य नहीं है। एक राज्य में एक प्रमाणीकरण संस्था स्थापित करने का प्रावधान किया गया है परन्तु वर्ष 2004 के बिल से एक से ज्यादा प्रमाणीकरण संस्थाएं हो सकती हैं। वर्तमान बिल में अन्य सरकारी संस्थाओं को बीज प्रमाणीकरण के लिए मान्य (Accreditation) किया जा सकता है परन्तु निजी संस्थाओं को ऐसी अनुमति प्रदान करने का प्रावधान नहीं है। राज्य बीज प्रमाणीकरण संस्थाओं के पास स्टाफ नहीं है या नाममात्र का है। अधिनायकवादी प्रवृतियों पर प्रमाणीकरण की सेवाएं दी जाती है।

आकस्मिक परिस्थितियों में दर निर्धारण :

नए बीज बिल से यह प्रस्ताव रखा है कि आकस्मिक, अप्रत्याशित, अनअपेक्षित, आपत्तिक दशाओं (Emergent Condition) में बीज की दरों का निर्धारण राज्य किस्मों के लिए राज्य तथा राष्ट्रीय किस्मों के लिए राज्य सरकार कर सकेगी। केवल (Emergent Condition) में ही दर निर्धारण नहीं बल्कि हमेशा ऐसी विक्रय दर में गैर अनुपातिक अन्तर न हो जैसे सरसों की साधारण किस्म की दर 40 रू. किलो से 700 रू. किलो असंगत है और कृषकों को इन कम्पनियों की ठगी से बचाना आवश्यक है।

बीज नियन्त्रण आदेश से मुक्ति :

बीज की परिभाषा बढऩे और उत्पादक, डीलर सभी का सरकार से पंजीकरण के कारण आवश्यक वस्तु अधिनियम (E.C. Act  ) से मुक्ति मिल जायेगी तथा सरकारी अधिकारियों की एफ.आई.आर. दर्ज कराने की धमकी से निजात मिलेगी।
परीक्षण शालाएं : पहले की तरह राज्य सरकार एक या एक से अधिक सीड टैस्टिंग लैब स्थापित कर या किसी स्थापित लैब को सीड टैस्टिंग लैब घोषित कर सकती है। बीज नीति 2002 के उदारीकरण के उद्देश्य तथा शासकीय निजी भागीदारी को चिरतार्थ करने हेतु निजी बीज परिक्षणशालाओं को मान्यता (Accreditation) का प्रावधान है। 6 बीज कम्पनियों को एक्रीडीटेशन दी जा चुकी है। कृषकों में विभिन्न साधनों से जागृति आने से आये दिन बीज सम्बन्धी विवाद बढ़ते जा रहे हैं तथा केन्द्रीय स्तर पर मात्र एक लैब वाराणसी में है अत: जन हितार्थ भारत सरकार द्वारा बीज के 5 जोन में 5 सी.एस.टी.एल. स्थापित करनी चाहिए।

अपील :

राज्य सरकार, बीज प्रमाणीकरण संस्थाओं, किस्म पंजीकरण संस्थाओं से असहमति होने पर केन्द्र सरकार द्वारा नियुक्त अपीली प्राधिकरण (Appellate Authority) को अपील की जा सकती है। पूर्ववर्ती अधिनियम में राज्य सरकार अपीलीय न्यायालय गठित कर सकती थी परन्तु अब केवल भारत सरकार अपीलीय प्राधिकरण का गठन कर सकेगी।

बीज निरीक्षक एवं बीज गुणवत्ता अधिकारी :

बीज अधिनियम 1966 में बीज गुणवत्ता नियंत्रण की जिम्मेदारी बीज निरीक्षक पर थी परन्तु वर्तमान बिल में राज्य सरकार द्वारा बीज निरीक्षक तथा केन्द्र सरकार द्वारा नियुक्त बीज गुणवत्ता निगरानी अधिकारी द्वारा गुणवत्ता नियंत्रण के दायित्वों का निर्वाहण किया जायेगा अर्थात् द्विस्तरीय नियन्त्रण होने से बीज गुणवत्ता का स्तर बढ़ जायेगा परन्तु बीज विक्रेता दोहरे अंकुश से बुरी तरह हतोत्साहित होंगे।

दण्ड :

(क) प्रस्तुत सीड बिल के अनुसार राज्य बीज समिति, रजिस्ट्रेशन सब कमेटी, प्रमाणीकरण संस्था, बीज गुणवत्ता निगरानी अधिकारी, बीज निरीक्षक को कार्यपालन से रोकते हैं बाधा पंहुचाते है तो उनको न्यायालय में गुनाह सिद्ध होने पर 25 हजार से एक लाख रूपये तक का दण्ड दिया जा सकता है।
(ख) यदि बीज भौतिक शुद्धता, अंकुरण, बीज स्वास्थ्य, बी.टी. जीन का मानदण्ड पूरा नहीं करता या आवश्यक दस्तावेज नहीं बनाता उस विक्रेता को 25 हजार से एक लाख रूपये तक के दण्ड लगेगा।
(ग) यदि लेबल पर मानक में अलग-अलग सूचनाएं जैसे आनुवांशिक सूचनाएं, मिस ब्रांड बीज की आपूर्ति, नकली बीज बेचना सिद्ध होने पर एक वर्ष का कारावास एवं 5 लाख रूपये तक अर्थ दण्ड। अर्थात् पहले बीज अधिनियम से दिये गए 500 रू. अर्थ दण्ड को सीधे हजार गुणा करना असंगत हैं साथ ही अन्य कृषि आदान जैसे कीटनाशी अधिनियम 1968 में प्रथम अपराध सिद्ध होने पर अधिकतम 50 हजार और द्वितीय अपराध होने पर 75 हजार दण्ड की अपेक्षा बहुत है। बीज अधिनियम 1966 में प्रथम एवं द्वितीय अपराध था प्रस्तुत बिल में उसका भी लोप है। अत: दंड कम किया जाए।

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