उपराष्ट्रपति की चिंता जायज है, सरकार ध्यान दें
18 जनवरी 2025, नई दिल्ली: उपराष्ट्रपति की चिंता जायज है, सरकार ध्यान दें – उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने पिछले सप्ताह राजस्थान के धारवाड़ में कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय के अमृत महोत्सव और पूर्व छात्र मिलन समारोह के उद्घाटन समारोह में कहा कि किसानों के मुद्दों का समय पर समाधान और उनकी समस्याओं पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। उपराष्ट्रपति का मानना है कि कृषि उपज पर आधारित सभी उद्योग जैसे कपड़ा, खाद्य पदार्थ, खाद्य तेल, प्रसंस्करण आदि समृद्ध हो रहे हैं । उद्योगों को हो रहे लाभ किसानों को समान रूप से देना चाहिए। इन उद्योगों को हो रहे लाभों का कुछ भाग किसान के कल्याण एवं कृषि क्षेत्र के अनुसंधान के लिए खर्च करना चाहिए। उन्हें इस दिशा में उदारता से सोचना चाहिए कि कृषि उपज उनकी जीवन रेखा है । उन्होने सुझाव दिया कि हमें तीन काम करने हैं: पहला, किसानों को खुश रखें। दूसरा, हमारे किसानों को खुश रखें और तीसरा, हमारे किसानों को किसी भी कीमत पर खुश रखें।
पिछले दिनों संसद सत्र में उपराष्ट्रपति श्री धनखड़ ने कृषि एवं किसान कल्याण तथा ग्रामीण विकास मंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान से कहा था कि कृषि मंत्री जी, आपका एक-एक पल भारी है। मेरा आपसे आग्रह है और भारत के संविधान के तहत दूसरे पद पर विराजमान व्यक्ति आपसे अनुरोध कर रहा है कि कृपया करके मुझे बताएं कि किसान से क्या वादा किया गया था? जो वादा किया गया था, वह निभाया क्यों नहीं गया? इसके जवाब में श्री चौहान ने बताया था कि हम कृषि में लागत का 50 फीसदी जोड़कर न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करेंगे और अधिसूचित कृषि उपज खरीदेंगे। किसानों की सेवा पूरी सामर्थ्य से करेंगे। उपराष्ट्रपति स्वयं किसान परिवार से ताल्लुक रखते हैं और वे जानते हैं कि किसानों की वे कौन – कौन सी समस्याएं हैं जिनका तत्काल निराकरण आवश्यक है।
जब संविधान के दूसरे सर्वोच्च पद पर पदासीन उपराष्ट्रपति किसानों की समस्याओं की चिंता सार्वजनिक रूप से और स्वयं कृषि मंत्री से जाहिर कर रहे हैं तो यह समझ लेना चाहिये कि किसानों की समस्याएं कितनी गम्भीर है ? इसी बीच किसान आंदोलन का मसला भी सुलझने के बजाए उलझते जा रहा है। किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल के आमरण अनशन के दौ महीने पूरे होने जा रहे हैं, एक बार फिर खनौरी बॉर्डर पर हलचल तेज हो गई है। आंदोलन स्थल पर 111 किसानों के एक समूह ने अपने नेता डल्लेवाल के साथ एकजुटता दिखाते हुए आमरण अनशन शुरू कर दिया है। किसान फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एम.एस.पी.) की कानूनी गारंटी सहित विभिन्न मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे हैं। श्री डल्लेवाल की हालत लगातार बिगड़ते जा रही है। किसानों के संगठनों ने सरकार से कहा है कि सरकार किसानों से उनकी मांगों को लेकर बात करे लेकिन सरकार की ओर से अभी तक बातचीत के कोई संकेत नहीं मिले हैं। पिछले साल 2024 में भी जब किसानों ने फिर से दिल्ली मार्च का आह्वान किया था तो तीन केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल, अर्जुन मुंडा और नित्यानंद राय आंदोलनकारी किसान नेताओं के साथ दो दौर की वार्ता करने के लिए चंडीगढ़ गए थे। उस समय वार्ता सफल सफल नहीं रही थी तब से गतिरोध जारी है। केंद्र सरकार फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी दर्जा देने और कृषि ऋण माफी सहित अन्य मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे किसानों से बातचीत करने से कतरा रही है।
फिलहाल किसान आंदोलन शांति से चल रहा है लेकिन श्री डल्लेवाल के स्वास्थ्य में लगातार गिरावट को देखते हुए कुछ अनहोनी की आशंका बलवती हो रही है। इसलिए सरकार को तुरंत आंदोलनरत किसानों के प्रतिनिधियों से बात करने की पेशकश करनी चाहिये। किसान नेताओं को भी अपने रूख में नरमी रखनी होगी। यदि दोनो अर्थात किसान और सरकार अपने – अपने रूख पर कायम रहते हैं तो किसानों की मांग का कभी भी कोई सर्वमान्य निराकरण नहीं हो सकेगा। यदि कोई अनहोनी होती है और किसान आंदोलन, जो अभी केवल पंजाब और हरियाणा तक ही सीमित है, देशव्यापी आंदोलन बनने में जरा भी देर नहीं लगेगी तब पूरी जिम्मेदारी और जवाबदारी केंद्र सरकार की होगी।
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